काबुल धमाका: दिल में दर्द, दिमाग में गुस्सा और एक सवाल आखिर कब तक
काबुल में एक तेज धमाके की आवाज ने सभी के होश उड़ा दिए। यह एक आत्मघाती हमला था जिसका निशाना जर्मनी दूतावास था। लेकिन इसके मायने कई थे।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। अफगानिस्तान का डिप्लोमेटिक एंक्लेव बुधवार की सुबह अचानक धमाकों से दहल गया। यह धमाका उस वक्त हुआ जब काबुल की सड़कों पर चहल-पहल की शुरुआत हो रही थी। हमेशा की ही तरह कुछ लोग सड़कों पर अपने ऑफिस की राह पकड़ते दिखाई दे रहे थे तो सिक्योरिटी में तैनात जवान की निगाहें हर किसी पर अपनी पैनी नजर जमाए हुए थे। इसी दौरान जर्मनी दूतावास की तरफ बढ़ती तेज रफ्तार कार और एक धमाके ने सभी के होश उड़ा दिए।
कुछ ही पल में काबुल स्थित इस हाई स्क्यिोरिटी डिप्लोमेटिक एंक्लेव का नजारा पूरी तरह से बदल गया। धुंए का गुबार इतना जबरदस्त था कि वहां पर कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। धमाके से कुछ दूरी पर इंसानी चिथड़े सड़कों पर जहां-तहां गिरे हुए दिखाई दे रहे थे। कुछ ही देर में वहां पर पुलिस और सुरक्षाबलों के दस्ते और सायरन बजाती हुई गाडि़यों की आवाज सुनाई देने लगी। इस इलाके की खामोशी पूरी तरह से खत्म हो चुकी थी। बस कुछ था तो इन्हीं गाडि़यों की आवाजें और आसपास मौजूद घायल लोग। इसके अलावा थी तो वह थी दहशत। इन सभी के बीच घायल लोगों के दिल और दिमाग में यह सवाल जरूर था कि आखिर ये कब तक।
इलाके में हैं कई बड़े ऑफिस मौजूद
अफगानिस्तान स्थित जर्मन दूतावास के बाहर हुए एक आत्मघाती हमले में करीब 80 लोगों की जान चली गई और करीब 300 से अधिक घायल हो गए है। जिस जगह आज आतंकियों ने यह हमला किया है वहां से कुछ किमी के दायरे में अमेरिकी, ईरान, चीन, स्पेन, ब्रिटेन, इंडोनेशिया, कनाडा और भारतीय दूतावास के अलावा प्रेजीडेंशियल पैलेस, नेशनल डायरेक्ट्रेट ऑफ सिक्योरिटी का ऑफिस, अफगानिस्तान का रेडियो टीवी प्रसारण केंद्र, आईएसएएफ हैडक्वार्टर, अफगानिस्तान जियोलॉजिकल सर्वे का ऑफिस स्थित है। यह पूरा इलाका बेहद हाई सिक्योरिटी जोन है। आतंकियों ने इस हमले के विस्फोटक से भरी कार का इस्तेमाल किया था। आशंका जताई जा रही है कि इस हमले में मारे गए और हताहत हुए लोगों की संख्या में इजाफा भी हो सकता है। गौरतलब है कि 22 अप्रैल 2017 को आतंकियों ने अफगानिस्तान के शहर मजार-ए-शरीफ के नजदीक अमेरिकी सैन्य ठिकाने पर हमला किया था।
धमाके का वक्त
आतंकियों ने इस धमाके के लिए वह वक्त चुना जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी विदेशी यात्रा के तहत जर्मनी गए हुए थे। इस हमले का तय वक्त इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि आतंकी न सिर्फ जर्मनी बल्कि भारत को भी अपने हमलों से डराना चाहते हैं। यहां पर एक बात और ध्यान देने वाली यह भी है कि अपनी जर्मनी यात्रा के दौरान पीएम मोदी ने आतंकवाद को खत्म करने के लिए एकजुट होकर इसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की बात कही थी।
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विदेशी दूतावास क्यों बन रहे निशाना
अ फगानिस्तान में लगातार विदेशी दूतावास और इनमें काम करने वाले लोग आतंकियों के निशाने पर रहे हैं। इसकी वजह यहां पर अलकायदा समेत आईएसआईएस का दखल है जो लगातार यहां पर होने वाले हमलों के पीछे रहा है। यदि पिछले कुछ हमलों पर गौर किया जाए तो आतंकियों के निशाने पर अमेरिकी, भारतीय और जर्मनी दूतावास रहे हैं। जर्मनी दूतावास पर हुए इस हमले की एक बड़ी वजह वजह यह भी है कि यहां नाटो के रेजोल्यूट सपोर्ट अभियान के तहत जर्मनी के करीब हजार जवान यहां पर तैनात हैं। इनमें से अधिकतर बल्ख प्रांत में ही हैं। यह जवान लगातार यहां पर आतंकी संगठनों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं।
अमेरिका और भारतीय दूतावास भी निशाने पर
अफगानिस्तान में केवल जर्मनी दूतावास ही निशाने पर नहीं है, बल्कि भारतीय और अमेरिकी दूतावास भी लगातार निशाने पर है। इसकी दो बड़ी वजह हैं। अमेरिका के संदर्भ में पहली बड़ी उसकी सेना की यहां मौजूदगी और अफगानिस्तान की सेना को ट्रेनिंग देना है। यहां मौजूद आतंकी संगठनों को यह किसी सूरत से भी गवारा नहीं हो रहा है। वहीं अमेरिका न सिर्फ उन्हें ट्रेनिंग दे रहा है बल्कि उनको हथियार भी उपलब्ध करवा रहा है। वहीं भारत से अफगानिस्तान के दोस्ताना संबंध हमेशा से ही आतंकियों को नागवार रहे हैं।
अफगानिस्तान को बढ़ा भारतीय सहयोग
बीते कुछ वर्षों में अफगानिस्तान से भारत का सहयोग सामरिक क्षेत्र में भी बढ़ा है। इतना ही नहीं भारत के सहयोग से ही वहां की पार्लियामेंट का भी निर्माण किया गया है। इसके निर्माण के लिए भारत के दो बिलियन की मदद भी अफगानिस्तान को की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 दिसंबर 2015 को अफगान संसद की नई इमारत का उद्घाटन भी किया था। इस दौरान अपने भाषण में पीएम मोदी ने पाकिस्तान को आतंकवाद की नर्सरी बताया था। यह बात न तो आतंकी संगठनों को और न ही अफगानिस्तान के करीब पाकिस्तान को हजम हो रही है।
अफगानिस्तान में दूतावासों पर कब कब हुए हमले
अफगानिस्तान में ऐसा पहली बार नहीं है कि जब किसी दूतावास को आतंकियों ने निशाना बनाया हो। यहां पर लगातार विदेशी दूतावास आतंकियों के निशाने पर रहे हैं। पिछले वर्ष नवंबर में भी आतंकियों ने जर्मनी दूतावास को निशाना बनाते हुए धमाके किए थे। आज हुए आत्मघाती हमले की तरह ही उस वक्त भी इसके लिए एक कार का इस्तेमाल किया गया था। इस हमले में करीब 60 लोग घायल हुए थे। वहीं जर्मनी दूतावास से करीब डेढ़ किमी की दूरी पर स्थित भारतीय दूतावास की खिड़कियों के शीशे इस धमाके में पूरी तरह से टूट गए थे।
सेना के अस्पताल पर हमला
इससे पहले आतंकियों ने मार्च 2016 में काबुल स्थित अमेरिकी दूतावास के समीप मिलिट्री अस्पताल को टारगेट किया था। इस धमाके में 30 लोगों मारे गए थे। इसके अलावा इसी दौरान एक हमला देश की सुप्रीम कोर्ट के नजदीक भी किया गया था। इस आत्मघाती हमले में लगभग 19 लोगों की मौत हो गई थी। इसी तरह से फरवरी 2016 में भी अमेरिकी दूतावास जाने वाली एक सड़क पर आत्मघाती हमला किया गया था।
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भारतीय काउंसलेट को बनाया निशाना
4 जनवरी 2 016 को आतंकियों ने अफगानिस्तान स्थित भारतीय काउंसलेट को निशाना बनाकर आतंकी हमला किया था। यह काउंसलेट मजार-ए-शरीफ में स्थित है। पिछले वर्ष ही पीएम मोदी भी इंडियन काउंसलेट गए थे। यह हमला ऐसे समय किया गया था पंजाब के पठानकोट के एयरफोर्स स्टेशन पर पाकिस्तानी आतंकवादियों ने हमला किया था। 2008 में अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में भारतीय दूतावास पर चरमपंथी हमला हुआ था। भारत ने इसके लिए पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की जिम्मेदार ठहराया था।
भारत अफगानिस्तान संबंध
भारत और अफगानिस्तान के संबंधों की मजबूती को इस तरह से भी आंका जा सकता है कि वर्ष 2011 में अफगानिस्तान के साथ सामरिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद से पिछले चार सालों में भारत अफगानिस्तान की 2,000 करोड़ रुपए की मदद कर चुका है। लोकसभा के आंकड़ो के मुताबिक साल 2011 से लेकर साल 2014 तक में वित्तिय सहायता राशि में 80 फीसदी की वृद्धि हुई है। साल 2011-12 में यह आंकड़े 327 करोड़ दर्ज किए गए थे जबकि साल 2013-14 में यह बढ़कर 585 करोड़ दर्ज किए गए है। वहीं पश्चिम अफगानिस्तान के हेरात इलाके में 1,500 करोड़ रुपए की लागत से बांध निर्माण सहित, अफगानिस्तान के कई निर्माण कार्यों में भारत ने सहायता की है। बांध बन जाने के बाद यह 42 मेगावाट (एमडब्लू) बिजली बनाने सहायक होगी।
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अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज की वापसी
अफगानिस्तान में लगातार हो रहे आतंकी हमलों के पीछे अमेरिकी सेना में कमी और उसका चरणबद्ध तरीके से वहां से हटना है। पहले अफगानिस्तान में अधिकतर अमेरिकी फौज थी जिसने यहां पर सुरक्षा का जिम्मा संभाला हुआ था। लेकिन अब चरणबद्ध तरीके से अमेरिका अपनी फौज को वापस कर रहा है साथ ही यहां के स्थानीय फौज को ट्रेनिंग भी दे रहा है।
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