सुप्रीम कोर्ट का रिटर्निग अफसर के स्वैच्छिक अधिकार पर आदेश देने से इन्कार
याचिका में मांग की गई थी कि ऐसी कोई व्यवस्था बनाई जाए, जिसमें पर्चियों पर लिखी बातें कम से कम दो साल तक सुरक्षित रहे। ...और पढ़ें

नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें वीवीपैट मशीन से निकलने वाली पर्चियों की गणना के मामले में रिटर्निग अफसर के स्वैच्छिक अधिकार को सीमित करने की मांग की गई थी।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्र की बेंच ने कहा कि इस मामले में समय पूर्व कोई व्यवस्था नहीं दी जा सकती है। भविष्य में विवाद पैदा होता है तो चुनाव याचिका के माध्यम से इस अधिकार को चुनौती दी जा सकती है। गुजरात जन चेतना पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में इस आशय की याचिका दायर की थी। गुजरात चुनाव के परिपेक्ष्य में मांग की गई थी कि अदालत वीवीपैट मशीनों को लेकर एक व्यवस्था बनाए।
याचिकाकर्ता मनुभाई छावड़ा की तरफ से पेश अधिवक्ता देवदत्त कामत ने चुनाव नियमावली 1961 की धारा 56 (डी)(2) का विरोध किया था। इसके तहत रिटर्निग अफसर को असीमित अधिकार मिल जाते हैं। वीवीपैट मशीनों को लेकर कोई विवाद पैदा होता है तो उस स्थिति में मशीन से निकलने वाली पर्चियों की गणना की जाए या नहीं, यह अफसर का स्वैच्छिक अधिकार होता है। छावड़ा ने कहा कि यह नियम नागरिकों के मूल अधिकारों का हनन कर रहा है।
गौरतलब है कि दस नवंबर को सुप्रीम कोर्ट उस याचिका की सुनवाई करने पर सहमत हो गया था, जिसमें कहा गया था कि वीवीपैट मशीनों से निकलने वाली पर्चियां कुछ समय बाद खराब हो जाती है। उनमें दर्ज सूचना कुछ समय बाद अपने आप गायब होने लग जाती है।
याचिका में मांग की गई थी कि ऐसी कोई व्यवस्था बनाई जाए, जिसमें पर्चियों पर लिखी बातें कम से कम दो साल तक सुरक्षित रहे। इसमें ही मांग की गई थी कि वीवीपैट मीशन से निकलने वाली पर्चियों की गणना विधानसभा व संसदीय क्षेत्र के अनुसार की जाए। याचिका में कहा गया है कि वीवीपैट मशीनों का इस्तेमाल ईवीएम से हो सकने वाली धांधली को रोकने के लिए ही अनिवार्य बनाया गया था।

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