बैंकों के फंसे कर्ज पर सरकार के रवैये से सुप्रीम कोर्ट नाराज
इसका सबसे बड़ा उदाहरण विदेश फरार हो चुके उद्योगपति विजय माल्या की परिसंपत्तियों का है। बैंकों की तमाम कोशिशों के बावजूद इन्हें नहीं बेचा जा सका है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने अगर फंसे कर्जे (एनपीए) की वसूली को लेकर सरकार पर जो सख्ती दिखाई है वह बेवजह नहीं है। साल दर साल सरकारी क्षेत्र के बैंक फंसे कर्जे की दलदल में फंसते जा रहे हैं और इन बैंकों को उबारने के लिए आम कर दाता के पैसे का इस्तेमाल हो रहा है लेकिन रसूखदारों से कर्ज वसूली का कोई भी ठोस रास्ता नहीं निकाला जा सका है। पिछले पांच वर्षों के दौरान पूर्व यूपीए सरकार और मौजूदा एनडीए सरकार कर्ज वसूली का कोई भी नया तरीका नहीं खोज सकी है। यही नहीं बड़े रसूखदार कर्जदारों की जब्त परिसंपत्तियों को बेचने का रिकार्ड भी बेहद खराब है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण विदेश फरार हो चुके उद्योगपति विजय माल्या की परिसंपत्तियों का है। बैंकों की तमाम कोशिशों के बावजूद इन्हें नहीं बेचा जा सका है।
कर्ज वसूली के सारे तंत्र के असफल होने पर दैनिक जागरण ने पहले भी कई रिपोर्ट प्रकाशित की है। लेकिन 29 दिसंबर, 2016 को आरबीआइ की तरफ से जारी एक नई रिपोर्ट इसकी पोल फिर खोल रही है। वर्ष 2015-16 की बात करें तो लोक अदालतों, ऋण वसूली प्राधिकरणों (डीआरटी) और प्रतिभूति कानून (एसएआरएफएईएसआइ एक्ट) के पास बैंकों ने कुल 4429.48 अरब रुपये के फंसे कर्जे के मामले ले कर आये थे और इसमें से सिर्फ 455.36 अरब रुपये की वसूली ही संभव हो पाई थी। यह कहानी पिछले पांच-छह वर्षो से दोहराई जा रही है। इन वसूली तंत्रों के पास जितनी राशि के फंसे कर्जे लाये जाते हैं उसका 10 से 20 फीसद ही वसूल हो पाता है। जबकि इस दौरान सरकार डीआरटी को ज्यादा अधिकार दे चुकी है और प्रतिभूति कानून में कई बार संशोधन कर चुकी है ताकि इसे मजबूत बनाया जा सके।
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वित्तीय स्थायित्व पर आरबीआइ की ताजी रिपोर्ट बताती है कि सरकार चाहे जो भी दावा करे अगले दो वित्त वर्षों तक एनपीए की समस्या दूर होने नहीं जा रही है। अगर देश की अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार नहीं हुआ और विभिन्न उद्योगों की मांग नहीं बढ़ी एनपीए की जाल में सरकारी बैंक और जकड़ेंगे। सितंबर, 2016 तक के आंकड़ों के मुताबिक देश के 41 बैंकों का शुद्ध एनपीए का आकार 5.657 लाख करोड़ रुपये है। देश के इतिहास में एनपीए का आकार इतना ज्यादा कभी नहीं हुआ है। एनपीए बढ़ने का असर यह हो रहा है कि इन बैंकों को अपने मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा अलग करना पड रहा है जिससे इनका कुल मुनाफे की राशि कम होती जा रही है।
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