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    स्टिंग ऑपरेशन में सामने आया दुर्गा के निलंबन का सच

    By Edited By:
    Updated: Sat, 03 Aug 2013 11:45 AM (IST)

    आइएएस दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन के मामले में समाजवादी पार्टी अपने ही नेताओं के बयानों से घिरती जा रही है। शुक्रवार को एक निजी खबरिया चैनल के स्टिंग ऑपरेशन ने इस कयास को और पुख्ता कर दिया कि आइएएस का निलंबन खनन माफिया के दबाव में किया गया है। यह खुलासा किया है सपा नेता नरेंद्र भाटी के छोटे भाई

    नोएडा, जागरण संवाददाता। आइएएस दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन के मामले में समाजवादी पार्टी अपने ही नेताओं के बयानों से घिरती जा रही है। शुक्रवार को एक निजी खबरिया चैनल के स्टिंग ऑपरेशन ने इस कयास को और पुख्ता कर दिया कि आइएएस का निलंबन खनन माफिया के दबाव में किया गया है। यह खुलासा किया है सपा नेता नरेंद्र भाटी के छोटे भाई कैलाश भाटी ने।

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    कैलाश भाटी ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी में सीनियर मैनेजर के पद पर तैनात हैं। एक खबरिया चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में इस खुलासे से सपा के लिए और मुसीबत खड़ी हो गई है। स्टिंग ऑपरेशन के दौरान पूरी तरह से खुलासा हो गया कि दुर्गा शक्ति का निलंबन अवैध खनन में रोड़ा अटकाने के चलते किया गया है। कैलाश के बयान से सपा जिलाध्यक्ष फकीरचंद नागर और महानगर अध्यक्ष सूबे सिंह यादव भी संदेह के घेरे में आ गए हैं।

    यहां तक कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव का भी नाम लेकर कैलाश भाटी ने साबित करने का प्रयास किया कि जो कुछ हो रहा है यह सब उनके इशारे पर चल रहा है। स्टिंग ऑपरेशन के दौरान कैलाश भाटी ने खुलासा किया कि आइएएस अधिकारी अवैध खनन के मामले में किसी की सिफारिश नहीं सुनती थीं। पार्टी से जुड़े लोगों की गाड़ी व डंपर पकड़े जाते थे, तो पार्टी के स्थानीय नेताओं की भी नहीं सुनती थीं।

    हकीकत से दूर खुफिया इनपुट :-

    आइएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन को खुफिया विभाग के जिस प्रारंभिक रिपोर्ट को मुख्यमंत्री आधार बता रहे हैं, वह हकीकत से दूर था। एलआइयू व खुफिया प्रकोष्ठ ने कादलपुर गांव से संबंधित जो प्रारंभिक इनपुट शासन को भेजा, उसमें जमीनी हकीकत नहीं थी। जबकि इन्हीं रिपोर्ट को तकनीकी आधार मानकर प्रदेश के मुख्यमंत्री आइएएस अधिकारी के निलंबन को जायज बता अपने फैसले पर अड़े हुए हैं।

    सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक खुफिया विभाग ने कादलपुर गांव में विवाद की आशंका जताई थी। जबकि गांव में सांप्रदायिक तनाव या विवाद जैसी कोई बात न पहले थी और न अब है। गांव के लोगों ने प्रशासनिक हस्तक्षेप के बाद स्वयं ही धार्मिक स्थल के लिए बनाई जा रही दीवार तोड़ी थी। प्रदेश में शासन को दो स्तर पर खुफिया रिपोर्ट मिलती हैं। स्थानीय स्तर पर एलआइयू रिपोर्ट देती है। एलआइयू के अधिकारी एसएसपी को रिपोर्ट देते हैं और यह रिपोर्ट डीएम के माध्यम से शासन को जाती है।

    वहीं दूसरा माध्यम खुफिया प्रकोष्ठ है। इस प्रकोष्ठ के अधिकारी सीधे मुख्यमंत्री से जुड़े होते हैं और उन्हीं को रिपोर्ट करते हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार एलआइयू व खुफिया प्रकोष्ठ दोनों ने प्रारंभिक रिपोर्ट में गांव में तनाव होने की आशंका जताई थी। जबकि हकीकत में मौके पर ऐसा माहौल था ही नहीं। बाद के दिनों में भी सौहार्द वहां बना रहा। एसडीएम दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन के बाद चारों तरफ से घिरी सरकार अब इन्हीं रिपोर्टो का हवाला दे रही है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लगातार इन्हीं रिपोर्ट को आधार मानकर अपना बचाव कर रहे हैं।

    सूत्रों का कहना है कि पुलिस की स्टेशन डायरी में कादरपुर में सांप्रदायिकता का जिक्र नहीं है। थाना क्षेत्र में हर गतिविधि की समय वार एंट्री स्टेशन डायरी में होती है। अगर कादरपुर में सांप्रदायिक तनाव होता, तो उसकी इंट्री स्टेशन डायरी में होती।

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