Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    स्पीकर का फैसला अंतिम नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    By Edited By:
    Updated: Thu, 26 Jan 2012 08:44 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले से विधायिका और न्यायपालिका के बीच अधिकारों की नई बहस छेड़ दी है। कोर्ट ने कहा है कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट संसद एवं विधानसभा सदस्यों की अयोग्यता के बारे में स्पीकर के आदेश की न्यायिक समीक्षा कर सकते हैं। इस संबंध में स्पीकर का फैसला अंतिम नहीं माना जाएगा।

    नई दिल्ली [माला दीक्षित]। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले से विधायिका और न्यायपालिका के बीच अधिकारों की नई बहस छेड़ दी है। कोर्ट ने कहा है कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट संसद एवं विधानसभा सदस्यों की अयोग्यता के बारे में स्पीकर के आदेश की न्यायिक समीक्षा कर सकते हैं। इस संबंध में स्पीकर का फैसला अंतिम नहीं माना जाएगा।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    न्यायमूर्ति अल्तमश कबीर एवं न्यायमूर्ति सीरिक जोसेफ की पीठ ने कर्नाटक के भाजपा एवं निर्दल विधायकों को अयोग्य ठहराने वाले विधानसभा अध्यक्ष [स्पीकर] के आदेश को गलत करार देते हुए बुधवार को इसके कारण बताए। हालांकि कोर्ट गत वर्ष 13 मई को ही इस संबंध में फैसला सुना चुका था। अब विस्तार से जारी फैसले में कोर्ट ने कहा है कि स्पीकर संविधान की दसवीं अनुसूची में सदस्यों की अयोग्यता के बारे में अर्ध न्यायिक प्राधिकरण की तरह फैसला करता है। ऐसे में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट उसके अंतिम आदेश की न्यायिक समीक्षा कर सकते हैं। अब यह कानूनन तय हो चुका है कि स्पीकर का अंतिम आदेश संविधान में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को मिले अधिकार पर रोक नहीं लगाता।

    सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 32 एवं 136 और हाई कोर्ट अनुच्छेद 226 के तहत स्पीकर के आदेश की न्यायिक समीक्षा कर सकते हैं। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट को इन अनुच्छेदों में विशेष सन्निहित शक्तियां मिली हुई हैं।

    कोर्ट ने कहा कि निर्दल विधायकों को सरकार से समर्थन वापस लेने और किसी और को समर्थन देने के आधार पर दलबदल कानून के तहत अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता। कानून में उनके समर्थन देने या वापस लेने पर कोई रोक नहीं है। सत्ताधारी दल को समर्थन देने या उसकी बैठकों और रैलियों में निर्दलियों के भाग लेने से यह साबित नहीं होता कि वे उस राजनीतिक दल में शामिल हो गए हैं। इसलिए उनके महज सरकार में शामिल होने या मंत्री बनने से उसके राजनीतिक दल ज्वाइन करना साबित नहीं होता।

    कोर्ट ने पक्षकारों की उन दलीलों को ठुकरा दिया जिनमें कहा गया था कि किसी सदस्य की अयोग्यता के बारे में स्पीकर का फैसला संवैधानिक प्रावधानों में अंतिम माना जाता है। कोर्ट ने कहा कि कर्नाटक के स्पीकर का विधायकों का अयोग्य ठहराने का आदेश दुर्भावनापूर्ण था। तथ्यों को देखने से पता चलता है कि स्पीकर सिर्फ फ्लोर टेस्ट के पहले विधायकों को अयोग्य ठहराना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने इतनी जल्दबाजी में कार्यवाही की जिससे विधायकों को अपनी बात रखने का पर्याप्त मौका नहीं मिला।

    विधायिका बनाम न्यायपालिका

    -विधायकों को सरकार से समर्थन वापस लेने और किसी और को समर्थन देने के आधार पर दलबदल कानून के तहत अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता

    -सत्ताधारी दल को समर्थन देने या उसकी बैठकों और रैलियों में निर्दलीयों के भाग लेने से यह साबित नहीं होता कि वे उस राजनीतिक दल में शामिल हो गए हैं

    विधायिका बनाम न्यायपालिका

    -सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 32 एवं 136 और हाई कोर्ट अनुच्छेद 226 के तहत स्पीकर के आदेश की न्यायिक समीक्षा कर सकते हैं

    -विधायकों को सरकार से समर्थन वापस लेने और किसी और को समर्थन देने के आधार पर दलबदल कानून के तहत अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता

    -सत्ताधारी दल को समर्थन देने या उसकी बैठकों और रैलियों में निर्दलियों के भाग लेने से यह साबित नहीं होता कि वे उस राजनीतिक दल में शामिल हो गए हैं

    मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर