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    चाय पर शीला दीक्षित से मिले माकन और लवली

    By Jagran News NetworkEdited By:
    Updated: Fri, 12 Dec 2014 10:24 AM (IST)

    सूबे की कांग्रेस में वर्चस्व को लेकर सूरमाओं के बीच जारी अदावत के फौरी तौर पर थमने के संकेत हैं। पार्टी हाईकमान के कड़े निर्देशों के मद्देनजर पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने आपस में हाथ मिला लिए हैं।

    अजय पांडेय, नई दिल्ली। सूबे की कांग्रेस में वर्चस्व को लेकर सूरमाओं के बीच जारी अदावत के फौरी तौर पर थमने के संकेत हैं। पार्टी हाईकमान के कड़े निर्देशों के मद्देनजर पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने आपस में हाथ मिला लिए हैं। दिल्ली के इन तीनों कांग्रेसी दिग्गजों को साथ लाने में नवनियुक्त प्रभारी महासचिव पीसी चाको की अहम भूमिका बताई जा रही है।

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    पार्टी सूत्रों ने बताया कि हाल ही में दीक्षित, माकन और लवली एक साथ बैठे और चाय की चुस्कियों के बीच आपसी गिले-शिकवे दूर किए। इस दौरान यह भी तय किया गया कि विधानसभा की सियासी लड़ाई मिलजुलकर लड़ी जाए ताकि पार्टी की स्थिति मजबूत हो सके। इनमें से एक नेता ने इस मुलाकात की पुष्टि भी की है।

    बताया जाता है कि आने वाले दिनों में ये तीनों नेता एक मंच पर भी दिखने वाले हैं ताकि कार्यकर्ताओं और कांग्रेस समर्थकों को पार्टी की एकजुटता का संदेश दिया जा सके। गौरतलब है कि दिल्ली का प्रभार संभालने के बाद चाको ने दीक्षित, माकन, लवली सहित सूबे के तमाम कांग्रेसियों से मुलाकात की थी और कहा था कि वह चाहते हैं कि पार्टी के सभी मजबूत नेता मिलकर चुनाव का सामना करें, तभी कांग्रेस की दिल्ली में वापसी होगी। बताया जाता है कि इस मामले में पार्टी हाईकमान ने भी इन तीनों नेताओं से कहा था कि वे मतभेद खत्म करें।

    संदीप के लिए मजबूत सियासी जगह चाहती हैं शीला
    सियासी जानकारों की मानें तो दीक्षित के सामने सबसे बड़ा सवाल अपने पुत्र व पूर्व सांसद संदीप दीक्षित को दिल्ली की सियासत में एक मजबूत जगह दिलवाने का रहा है और माकन व लवली जैसे नेताओं के लिए संदीप दीक्षित की मजबूती कतई अच्छी नहीं है। इन नेताओं की आपसी लड़ाई भी इसी बात की रही है लेकिन अब यह सियासी लड़ाई थमती नजर आ रही है।

    कभी शीला के करीबी थे माकन और लवली
    बता दें कि दिल्ली की सियासत में माकन और लवली किसी जमाने में पूर्व मुख्यमंत्री दीक्षित के बेहद करीबी नेताओं में गिने जाते थे। दीक्षित जब मुख्यमंत्री बनीं तो माकन पहले उनके संसदीय सचिव बनाए गए और फिर उनके मंत्रिमंडल के अहम सदस्य बन गए।

    परिवहन और ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय उन्होंने देखे। लेकिन बाद में दोनों नेताओं के बीच जबर्दस्त मतभेद पैदा हो गए। जब माकन को दिल्ली विधानसभा का अध्यक्ष बनाया गया तो ऐसे कयास लगाए जाने लगे थे कि कॅरियर के शुरुआती दिनों में ही माकन पर एक ऐसे पद की जिम्मेदारी थोप दी गई है जिससे उनके आगे का रास्ता बंद हो जाएगा।

    हालांकि, माकन ने अपनी प्रतिभा के दम पर ऐसे कयासों को गलत साबित कर दिया। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष लवली भी दीक्षित की सरकार में लगातार मंत्री रहे हैं और उनकी गिनती पूर्व मुख्यमंत्री के बेहद विश्वसनीय मंत्री के तौर पर होती रही। लेकिन कई मुद्दों पर दोनों के बीच अंदरखाने मतभेद भी रहे और बीते कुछ वर्षो से लवली दीक्षित से ज्यादा माकन के करीबी समझे जाते रहे हैं।

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