खाद्य सुरक्षा बिल पर संसद में बहस चाहते हैं पवार
मुंबई [जागरण संवाददाता]। कृषि मंत्री शरद पवार ने विपक्ष के सुर में सुर मिलाते हुए खाद्य सुरक्षा विधेयक पर संसद में चर्चा कराने की मांग की है। संप्रग सरकार के सहयोगी व राकांपा प्रमुख पवार ने कहा कि उन्होंने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक का विरोध कभी नहीं किया, लेकिन वह चाहते हैं कि यह विधेयक संसद में चर्चा के बाद पास किया जाए। पवार के मुताबिक विपक्षी दलों का भी इस कानून को लेकर कोई विरोध नहीं है, लेकिन वे भी चाहते हैं कि विधेयक पर चर्चा के बाद कुछ और चीजें शामिल की जाएं।
मुंबई [जागरण संवाददाता]। कृषि मंत्री शरद पवार ने विपक्ष के सुर में सुर मिलाते हुए खाद्य सुरक्षा विधेयक पर संसद में चर्चा कराने की मांग की है। संप्रग सरकार के सहयोगी व राकांपा प्रमुख पवार ने कहा कि उन्होंने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक का विरोध कभी नहीं किया, लेकिन वह चाहते हैं कि यह विधेयक संसद में चर्चा के बाद पास किया जाए। पवार के मुताबिक विपक्षी दलों का भी इस कानून को लेकर कोई विरोध नहीं है, लेकिन वे भी चाहते हैं कि विधेयक पर चर्चा के बाद कुछ और चीजें शामिल की जाएं।
कांग्रेस के विधेयक लाने को लेकर अड़ने की स्थिति में राकांपा के रुख पर पवार ने कहा, ऐसे निर्णय सामूहिक रूप से लिए जाते हैं। कुछ समय पहले विधेयक का विरोध करते हुए पवार ने कहा था कि अनाजों पर बहुत ज्यादा अनुदान देने से खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी और किसानों के हित प्रभावित होंगे। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़ाकर उत्पादन बढ़ाने की जरूरत है। साथ ही खाद व बिजली की उपलब्धता पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। गौरतलब है कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक जल्द अमल में लाना चाहती है। कांग्रेस को संदेह है कि लोकसभा में इस पर बहस कराने से विधेयक लटक सकता है।
यह विधेयक बजट सत्र के दौरान लोकसभा में पेश किया गया था, लेकिन विपक्ष द्वारा संसद की कार्यवाही ठप करने के कारण इस पर चर्चा नहीं हो सकी। हाल के उपचुनावों पर पवार ने कहा कि नतीजों से गुजरात में भाजपा की स्थिति मजबूत जरूर दिखाई दे रही है, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि पार्टी लोकसभा चुनाव के बाद सरकार बनाने की स्थिति में होगी। पवार ने तीसरे मोर्चे की संभावना को खारिज करते हुए कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस या भाजपा के बिना कोई सरकार बनती नहीं दिख रही है। इसलिए तीसरे मोर्चे का प्रश्न ही नहीं उठता।
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