कुलभूषण केस में पाक पर पहली विजय, इंटरनेशनल कोर्ट में भारत कामयाब
कुलभूषण जाधव की फांसी पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने रोक लगा दी है। इस फैसले को पाकिस्तान के ऊपर भारत की कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। कुलभूषण जाधव नाम का एक भारतीय शख्स ईरान के चाबहार में व्यापार करता है। उसे ईरान में अगवा कर बलूचिस्तान में बेच दिया जाता है। पाक की खुफिया एजेंसी आइएसआइ उसे भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ की एजेंट बताती है। पाक की तरफ से दावा किया जाता है कि वो बलूचिस्तान में आतंकी गतिविधियों में शामिल है। पाकिस्तान के टेलीविजन जाधव का कबूलनामा दिखाते हैं और पाकिस्तान की न्यायिक प्रक्रिया में अति सक्रियता दिखाई देने लगती है। पाक की सैन्य अदालत अपील और दलील को नजरंदाज करते हुए एकतरफा कार्रवाई में कुलभूषण को आतंकी घोषित कर फांसी की सजा मुकर्रर करती है। बदनीयती के सागर में डूबा हुआ पाक सच का सामना नहीं करता चाहता है। लेकिन भारत की रणनीतिक कोशिश तब कामयाब होती हुई नजर आई जब भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव की फांसी पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने फिलहाल रोक लगा दी । आइए जानने की कोशिश करते हैं कि न्यायालय के फैसले के बाद भारत सरकार की तरफ से पहली प्रतिक्रिया क्या थी।
विदेश मंत्री के बोल
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि भारत की तरफ से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में कुलभूषण जाधव के पक्ष को रख रहे हैं।
Mr.Harish Salve, Senior Advocate is representing India before International Court of Justice in the #KulbhushanJadhav case.
— Sushma Swaraj (@SushmaSwaraj) May 9, 2017
उन्होंने कुलभूषण की मां को जानकारी दे दी है।
I have spoken to the mother of #KulbhushanJadhav and told her about the order of President, ICJ under Art 74 Paragraph 4 of Rules of Court.
— Sushma Swaraj (@SushmaSwaraj) May 9, 2017
भारत ने 16 बार कुलभूषण तक पहुंच बनाने के लिए पाकिस्तान से कांसुलर एक्सेस की मांग की। लेकिन पाकिस्तान ने इन्कार कर दिया। पाकिस्तान का आरोप है कि चाबहार में कुलभूषण द्वारा व्यापार करने की बात पूरी तरह से बेसिर पैर की है। हकीकत में वो भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के लिए काम कर रहा था। बलूचिस्तान में वो पाक विरोधी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार थाष वो पाकिस्तान को तोड़ने पर आमादा था।
पाक पीएम नवाज शरीफ के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने कहा कि एक पल के लिए अगर मान लिया जाए कि वो चाबहार में रहकर व्यापार कर रहा था तो उसे हिंदू और मुस्लिम नाम से पासपोर्ट रखने की जरूरत क्या थी। पाकिस्तान के आरोपों पर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कुलभूषण इंडियन नेवी का अधिकारी नहीं है। वो एक भारतीय है जो ईरान के चाबहार में रहकर व्यापार कर रहा था। एक भारतीय नागरिक को न्याय दिलाने की पूरी जिम्मेदारी है।
एक नजर में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग है। इसका मुख्यालय दि हेग (नीदरलैंड) में स्थित है। इसकी स्थापना 26 जून 1945 को सैन फ्रांसिस्को में हस्ताक्षरित विधेयक के अनुरूप हुई थी, जो संयुक्त राष्ट्र चार्टर का ही एक अभिन्न भाग है। सभी संयुक्त राष्ट्र सदस्य इसके अनुमोदक हैं। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में 15 न्यायाधीश होते हैं, जिनका चुनाव 9 वर्षीय कार्यकाल के लिए महासभा एवं सुरक्षा परिषद द्वारा स्वतंत्र रूप से किया जाता है। एक-तिहाई स्थानों के लिए प्रति तीन वर्षों के बाद चुनाव होते हैं। न्यायाधीश विभिन्न राष्ट्रीयताओं से संबद्ध होते हैं तथा स्थायी विवाचन न्यायालय (1899 व 1907 के हेग सम्मेलनों द्वारा स्थापित) में मौजूद राष्ट्रीय समूहों द्वारा नामांकित किये जाते हैं।
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का अधिकार क्षेत्र
कोई भी सदस्य देश किसी मामले को न्यायालय की सुनवाई हेतु प्रस्तुत कर सकता है। फिर भी किसी भी देश को अपने विवाद को न्यायालय के सामने रखने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। अन्य देश अपने मामलों को सुरक्षा परिषद द्वारा तय की गयी शर्तों के अधीन न्यायालय के समक्ष ला सकते हैं। निजी व्यक्ति को विवाद का पक्ष नहीं बनाया जा सकता है। न्यायालय में विश्व की प्रमुख वैधानिक व्यवस्थाओं का प्रतिनिधित्व होता है तथा किसी भी राष्ट्र के दो न्यायाधीशों को नहीं चुना जाता है। किसी भी न्यायाधीश को राजनीतिक या प्रशासनिक गतिविधियों में भाग लेने की स्वीकृति नहीं दी जाती। न्यायाधीशों को अपेक्षित सेवा शर्तों के उल्लंघन की स्थिति में ही पदच्युत किया जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय तीन वर्षीय कार्यकाल हेतु अपने अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का चुनाव करता है।
न्यायालय का अधिकार क्षेत्र निम्नलिखित चार पद्धतियों द्वारा सुनिश्चित होता है-
- दो या अधिक राज्य विशेष समझौतों के माध्यम से अपने पारस्परिक विवादों को न्यायालय के सामने ला सकते हैं।
- किसी बहुपक्षीय संधि में यह प्रावधान किया जा सकता है कि संधि की व्याख्या से जुड़े मामालों पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ही विचार-विमर्श किया जा सकेगा।
- किसी द्वि-पक्षीय संधि द्वारा किसी विशिष्ट मामले की सुनवाई अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में कराये जाने की व्यवस्था की जा सकती है।
- न्यायालय में प्रक्रिया शुरू होने के बाद अनौपचारिक रूप से किसी मामले में न्यायालय का अधिकार क्षेत्र विस्तृत हो सकता है।
- अपने अधिकार क्षेत्र से जुड़े विवाद को न्यायालय स्वयं ही सुलझाता है। न्यायालय द्वारा सामान्य सिद्धांतों, पूर्व न्यायिक फैसलों तथा प्रख्यात विधिशास्त्रियों के विचारों के प्रकाश में मामलों का न्याय-निर्णयन किया जाता है।
जानकार की राय
रक्षा मामलों के जानकार पी के सहगल ने बताया कि इसे भारत की बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा जाना चाहिए। इंटरनेशनल कोर्ट का एक हिस्सा होने के बावजूद भारत द्विपक्षीय मामलों के अंतरराष्ट्रीयकरण से बचता रहा है। लेकिन कुलभूषण के मामले में पाक का रवैया कुछ ऐसा था कि भारत ने अपनी बात अदालत के सामने रखी। हरीश साल्वे द्वारा पेश भारतीय पक्ष को जजों ने सुना और ये फैसला किया कि पाकिस्तान एकतरफा कार्रवाई नहीं कर सकता है। अब पाकिस्तान को भी अपनी दलील पेश करनी होगी जिसकी सुनवाई 14 सदस्यीय जजों की बेंच करेगी। सहगल के मुताबिक अदालत ने माना है कि पाकिस्तान ने जिनेवा और विएना कन्वेंशन का उल्लंघन किया है। अब भारत की कांसुलर एक्सेस की मांग को पाकिस्तान ठुकरा नहीं सकता है।
अब आगे क्या हो सकता है
रक्षा विशेषज्ञ पी के सहगल ने बताया कि अंतरराष्टीय अदालत के सामने भारत और पाकिस्तान दोनों अपने पक्ष को रखेंगे। अगर फैसला पाकिस्तान के खिलाफ जाता है तो वो सुरक्षा परिषद में अपील कर सकता है। सुरक्षा परिषद अगर पाकिस्तान के पक्ष में फैसला सुनाता है तो अंतरराष्ट्रीय अदालत का फैसला अमान्य होगा। लेकिन इसकी संभावना न के बराबर होगी।
नाकाम रहा है सुरक्षा परिषद
निकारागुआ और अमेरिका के मामले में 1986 में अमेरिका ने उसे अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन का दोषी करार देने वाले ICJ के आदेश के क्रियांव्यन पर वीटो लगा दिया था। उस मामले में अंतरराष्ट्रीय अदालत ने पाया था कि अमेरिका ने निकारागुआ सरकार के खिलाफ खड़े विद्रोहियों का समर्थन किया था। हालांकि यह लातिन अमेरिकी देश वीटो लगने की वजह से उस आदेश को तामील नहीं करा सका था।
वहीं कुलभूषण जाधव के मामले में अगर मान लें कि ICJ का आदेश पाकिस्तान के खिलाफ जाता है, तो भी इसे अमल में लाना मुश्किल ही होगा। इस मामले में उसे सुरक्षा परिषद से मदद की दरकार होगी।हालांकि पाकिस्तान का सहयोगी चीन भी इस शक्तिशाली समूह का सदस्य हैं। ऐसे में आंशका है कि वह ICJ के आदेश पर वीटो लगा सकता है। जिससे इसे लागू करवा पाना मुश्किल ही प्रतीत होता है।
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