मछलियों के साथ प्लास्टिक तो नहीं खा रहे, शोध करेंगे वैज्ञानिक
तकाडा के अनुसार नदियों में बहाए जा रहे प्लास्टिक या माइक्रोप्लास्टिक ही समंदर तक पहुंचते हैं।
पणजी, प्रेट्र। भारत में पाई जाने वाली मछलियों के शरीर पर वैज्ञानिक शोध करेंगे। दरअसल जापान समेत दक्षिण एशियाई देशों की मछलियों में माइक्रोप्लास्टिक पाए जाने की पुष्टि हो चुकी है। अब भारत में इसपर काम होगा। पता लगाया जाएगा कि क्या यहां की मछलियों के शरीर में भी माइक्रोप्लास्टिक है। इसपर अध्ययन के लिए जापान की टोक्यो यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी (टीयूएटी) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओसियनोग्राफी (एनआइओ) ने समझौता किया है। एनआइओ की गोवा में अपनी प्रयोगशाला है।
टीयूएटी प्रयोगशाला के प्रमुख प्रोफेसर हिडेशिगे तकाडा ने कहा, 'हम मछली के साथ-साथ प्लास्टिक भी खा रहे हैं। कई शोधों के बाद यह स्पष्ट हुआ है कि मछलियों के पेट में माइक्रोप्लास्टिक पाए जाते हैं जिन्हें खाने के बाद यह प्लास्टिक हमारे शरीर में प्रवेश कर जाता है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। भारत में इसका पता लगाने के लिए एनआइओ व टीयूएटी ने समझौता किया है।'
मालूम हो कि तकाडा की टीम और अमेरिकी वैज्ञानिकों के अलग-अलग शोध में जापान, इंडोनेशिया, चीन और इसके आसपास के क्षेत्र मे पाई जाने वाली 80 फीसद से ज्यादा मछलियों के पेट में हानिकारक माइक्रोप्लास्टिक का पता चला है। तकाडा के अनुसार नदियों में बहाए जा रहे प्लास्टिक या माइक्रोप्लास्टिक ही समंदर तक पहुंचते हैं। ज्ञात हो कि प्लास्टिक बैग, बोतल के ढक्कन, टूथपेस्ट, सौंदर्य प्रसाधनों में मौजूद प्लास्टिक के अत्यंत छोटे आकार में बिखरना या टूटना ही माइक्रोप्लास्टिक है। इनमें कई हानिकारक रसायन होते हैं। ये पशु-पक्षी और पेड़ के लिए बहुत खतरनाक होते हैं।
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