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    जूवेनाइल एक्ट: नाबालिग की परिभाषा की समीक्षा करेगा सुप्रीम कोर्ट

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    Updated: Mon, 04 Feb 2013 10:03 PM (IST)

    जुवेनाइल जस्टिस एक्ट [किशोर न्याय कानून] के तहत किसी को 18 वर्ष की आयु तक किशोर माना जाना अब सुप्रीम कोर्ट पर निर्भर है। वह जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में क ...और पढ़ें

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    नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट [किशोर न्याय कानून] के तहत किसी को 18 वर्ष की आयु तक किशोर माना जाना अब सुप्रीम कोर्ट पर निर्भर है। वह जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में किशोर की उम्र तय करने की धाराओं पर विचार करने के लिए तैयार हो गया है। सोमवार को कोर्ट ने हत्या और दुष्कर्म जैसे गंभीर अपराधों में किशोर आरोपी को अपराध की तुलना में दंड दिए जाने और सजा तय करने में न्यायाधीश को विवेकाधिकार दिए जाने की मांग वाली याचिका पर विचार करने की मंजूरी दे दी। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म कांड के परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण है। इस कांड में आरोपी नाबालिग का मुकदमा जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में चल रहा है और उसे बहुत कम सजा मिलने की संभावना है। जबकि पुलिस की मानें तो छह आरोपियों में सबसे जघन्य भागेदारी इसी की थी। हालांकि जस्टिस वर्मा समिति ने नाबालिग की उम्र घटाए जाने पर असहमति जताई है।

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    सोमवार को न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन व न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की पीठ ने जनहित याचिका पर 3 अप्रैल से सुनवाई की मंजूरी देते हुए अटार्नी जनरल को याचिका का जवाब दाखिल करने और मामले से जुड़े दस्तावेज पेश करने का निर्देश दिया। यह याचिका दो वकीलों कमल कुमार पांडेय व सुकुमार ने दाखिल की है। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर केंद्र सरकार को गत एक फरवरी को नोटिस जारी किया था और याचिकाकर्ता से याचिका की एक प्रति अटार्नी जनरल को भी देने का निर्देश दिया था। मामले पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 2 (के), 10 व 17 का विरोध करते हुए कहा कि इस कानून में दी गई किशोर की परिभाषा अन्य कानूनों के खिलाफ है। वैसे भी 18 वर्ष तक के व्यक्ति को किशोर माना जाना अतार्किक है। इससे ज्यादा अच्छी श्रेणियां तो भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) में दी गई हैं। आइपीसी की धारा 82 कहती है कि सात साल से कम उम्र के बच्चे द्वारा किया गया अपराध अपराध नहीं माना जाएगा। धारा 83 कहती है कि वह अपराध नहीं माना जाएगा जो 7 साल से 12 वर्ष तक के बच्चे ने किया हो या जिसमें अपराध की प्रकृति समझने की समझ पैदा न हुई हो। वकील का कहना था कि आइपीसी में सजा तय करने का विवेकाधिकार जज को दिया गया है, ऐसा ही इस कानून में भी होना चाहिए। जज को किशोर की अपराध समझने की प्रकृति और अपराध की गंभीरता के हिसाब से सजा तय करने का विवेकाधिकार होना चाहिए। इस पर पीठ ने कहा कि यह उम्र तय करने का और कानून से जुड़ा मुद्दा है। इसलिए इस पर वे विचार करेंगे। उम्र तय करते समय अपराध की गंभीरता पर भी विचार होना चाहिए।

    अटार्नी जनरल जीई वाहनवती ने कहा कि इस मामले पर कई पक्षों, गैर सरकारी संगठनों और राज्यों आदि को भी सुना जाना चाहिए। इस पर पीठ ने कहा कि वह इस मामले में केंद्र सरकार का रुख जानना चाहती है। वाहनवती ने जस्टिस वर्मा की रिपोर्ट का भी हवाला दिया। पीठ ने अटार्नी जनरल को याचिका का जवाब दाखिल करने और संबंधित दस्तावेज पेश करने का निर्देश देते हुए मामले को 3 अप्रैल को फिर सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया।

    'उम्र तय करते समय अपराध की गंभीरता पर भी विचार होना चाहिए।'-सुप्रीम कोर्ट

    महिलाओं की सुरक्षा देने को सरकार ने बनाया नया चार्टर

    नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर जनाक्रोश का निशाना बनने के बाद सरकार ने अब सुधार का चरणबद्ध कार्यक्रम तैयार किया है। महिलाओं की सुरक्षा के कानूनी प्रावधानों को मजबूत करने के लिए अध्यादेश लागू करने के साथ ही सरकार ने विभिन्न मंत्रालयों के तहत महिलाओं को हिफाजत का अहसास दिलाने वाले उपायों की योजना बनाई है। इसमें पुलिस व प्रवर्तन एजेंसियों की जवाबदेही पर जोर होगा।

    कैबिनेट सचिवालय ने केंद्र सरकार के सात मंत्रालयों के सचिवों के साथ बैठक कर 28 उपायों की फेहरिस्त जारी की है। साथ ही प्रावधान किया है कि सातों मंत्रालयों के सचिव इनके अमल पर व्यक्तिगत निगरानी रखेंगे। साथ ही कैबिनेट सचिवालय व प्रधानमंत्री कार्यालय को हर माह रिपोर्ट भी देंगे। इन उपायों में पुलिस व्यवस्था में बदलाव, मोटर वाहन अधिनियम की समीक्षा, महिलाओं के प्रति अपराधों से निपटने की कार्रवाई को ज्यादा प्रभावी व संवेदनशील बनाने के उपाय और अन्य प्रशासनिक कदम शामिल हैं।

    सुरक्षा के उपाय

    -महिलाओं से दु‌र्व्यवहार करने वाले अपराधियों की जानकारी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की वेबसाइट पर उपलब्ध होगी।

    -थाना क्षेत्र पर ध्यान दिए बिना जल्द एफआइआर दर्ज करने की सुविधा।

    -पीड़िता की मदद के लिए आगे आने वालों को दिक्कत का सामना न करना पड़े।

    -केवल महिलाओं के लिए बस सेवा शुरू की जानी चाहिए।

    -वर्तमान मोटर वाहन नियमों की समीक्षा की जाएगी।

    -सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय तकनीकी विशेषज्ञों व पुलिस प्रतिनिधियों के साथ सलाह-मश्विरा कर फैक्ट्री फिटिड शीशों में रंग की स्वीकार्य सीमा तय करेंगे। सार्वजनिक वाहनों में पर्दो पर भी गौर किया जाएगा।

    -दिल्ली में सार्वजनिक वाहन चला रहे ड्राइवर/कंडक्टर/हेल्पर /पूरे कर्मीदल के लिए शत-प्रतिशत सत्यापन जरूरी है, जिसमें बायोमीट्रिक पहचान शामिल होगी।

    -बस के मालिक/ड्राइवर के विवरण व परमिट और लाइसेंस की जानकारी बस के अंदर और बाहर स्पष्ट रूप से दिखाना जरूरी होगा। बस परिचालन नियंत्रण कक्ष गठन के साथ सार्वजनिक वाहनों में जीपीएस अनिवार्य। सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय जारी करेगा राज्यों को परामर्श।

    -परमिट शर्तो के उल्लंघन पर जुर्माना राशि में बढ़ोतरी।

    -दिल्ली सरकार सार्वजनिक वाहनों के परमिटों में संशोधन की मसौदा अधिसूचना जारी करेगी। अंतिम अधिसूचना एक महीने में जारी की जाएगी। दिल्ली के बाद राज्यों में इसी तर्ज पर वाहन परमिट में संशोधन लागू होंगे।

    -थाने में तैनात व्यक्तियों की संवेदनशीलता और महिला अपराधों की शिकायतों को दर्ज करने में थाने/एसएचओ के रिकॉर्ड को निरीक्षण अधिकारी दर्ज करें।

    -महिलाओं के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया अथवा निरीक्षण संबंधी दायित्वों की लापरवाही करने वाले पुलिसकर्मियों व अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई होगी।

    -बीट ड्यूटी अथवा पुलिस स्टेशन पर तैनात सिपाही के स्तर पर लिंग संवेदनशीलता बनाए रखी जाए। निरीक्षण अधिकारी को जवाबदेह ठहराया जाएगा।

    -सभी स्तरों पर पुलिसकर्मी की वार्षिक निष्पादन मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार करते समय उसकी महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता पर टिप्पणी की जाए। इसे पदोन्नति के समय देखा जाएगा।

    -गृह मंत्रालय चालू वित्त वर्ष के दौरान दिल्ली पुलिस में महिलाओं की बड़ी संख्या में भर्ती के बारे में मंजूरी लेने की कार्रवाई करेगा। राज्यों में भी पुलिस में महिलाओं की भर्ती होगी। इस पर गृह मंत्रालय चार सप्ताह में प्रस्ताव योजना तैयार करेगा।

    -दिल्ली पुलिस की ओर से 370 पीसीआर वैन को इसी वित्त वर्ष स्वीकृति मिलेगी।

    -शिक्षण संस्थानों, सिनेमाघरों, मॉल और बाजार वाले इलाकों की पीसीआर वैन में महिला पुलिसकर्मियों की तैनाती प्रस्तावित है। ऐसे थाने भी बनाए जाएंगे जहां सिर्फ महिलाएं काम करेंगी।

    -व्यापारिक संघ, आरडब्ल्यू, व्यावसायिक कार्यालय भवन के प्रबंधक, मॉल, सिनेमाघर, एनजीओ के सहयोग से सीसीटीवी लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

    -नगर निकायों में सार्वजनिक स्थानों में सड़कों पर प्रकाश व्यवस्था की समीक्षा हो।

    -महिला व बाल विकास विभाग यौन हिंसा पीड़ितों को मुआवजा देने की योजना तथा मनोवैज्ञानिक व अन्य सहायता उपलब्ध कराने को चुनिंदा अस्पतालों में आपदा राहत केंद्र स्थापित करने की योजना लागू करेगा। प्रस्तावित योजना 2013-14 से प्रायोगिक आधार पर देश के 100 जिलों में लागू होगी।

    -देश में 100 नंबर की तर्ज पर सभी आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए देशव्यापी तीन अंकों का नंबर शुरू करने का प्रस्ताव किया है। गृह मंत्रालय दूरसंचार विभाग के साथ मिलकर फरवरी 2013 के आखिर तक इस संबंध में व्यवस्था करने और उसे संचालित करने के बारे में मूल परिकल्पना तैयार करेगा।

    -एक ऐसी हेल्पलाइन होगी जो मुसीबत में फंसी महिलाओं के लिए समर्पित होगी। पूरे देश में 181 पर यह सुविधा शुरू की जा सकती है।

    -शिक्षा के हर स्तर पर स्त्री-पुरुष समानता से संबंधित विषय शामिल होंगे।

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