कारगिल युद्ध पर कोर्ट ने की सरकार की खिंचाई
सुप्रीमकोर्ट ने सरकार की ओर से कारगिल युद्ध में शुरुआती प्रतिक्रिया को धीमी बताए जाने पर कड़ा ऐतराज जताया। कोर्ट ने कहा कि जो लोग शहीद हो गए हैं उनके लिए धीमी प्रतिक्रिया की बात कहना ठीक नहीं।
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। सुप्रीमकोर्ट ने सरकार की ओर से कारगिल युद्ध में शुरुआती प्रतिक्रिया को धीमी बताए जाने पर कड़ा ऐतराज जताया। कोर्ट ने कहा कि जो लोग शहीद हो गए हैं उनके लिए धीमी प्रतिक्रिया की बात कहना ठीक नहीं।
ये टिप्पणियां न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने सेना की नई प्रोन्नति नीति के मामले में सुनवाई के दौरान की। पीठ ने जब सरकार से सवाल किया कि नई प्रोन्नति नीति की जरूरत क्यों पड़ी तो केंद्र सरकार की ओर से पेश एएसजी ने कहा कि कारगिल युद्ध के दौरान महसूस दिया गया कि शुरुआती प्रतिक्रिया धीमी थी। जस्टिस ठाकुर ने दलील पर आपत्ति जताते हुए कहा कि जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी उनकी प्रतिक्रिया को धीमा कहना अच्छा नहीं लगता।
पीठ ने कहा कि जब ताबूत घोटाला हुआ था तब सरकार कहां थी। कोर्ट की टिप्पणी का जवाब देते हुए एएसजी ने कहा कि यहां शहीद लोगों की शहादत को कम करके नहीं आंका जा रहा है। ये बात तो वे कारगिल युद्ध के बाद गठित को कमेटियों की रिपोर्ट के आधार पर कही जा रही है। दोनों कमेटियों का निष्कर्ष था कि अगर प्रतिक्रिया ज्यादा त्वरित रही होती तो कम सैनिकों को अपनी जान गंवानी पड़ती। एएसजी ने कहा कि अजय विक्रम सिंह की रिपोर्ट में कहा गया था कि फील्ड कमांड और ज्यादा युवाओं को दिए जाने की जरूरत है।
ताबूत घोटाले पर एएसजी ने कहा कि उस समय देश मे धातु के ताबूत नहीं बनते थे इसलिए उन्हें शहीदों के लिए बाहर से मंगाया गया था जिसमें घोटाला होने की बात कही गई। जब कोर्ट ने पूछा कि देश में क्यों नहीं बनते थे तो एएसजी ने कहा कि वर्तमान सरकार का जोर मेक इन इंडिया पर है, लेकिन उस समय ये उपलब्ध नहीं था।
पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि वह एक सप्ताह में हलफनामा दाखिल कर बताए कि क्या सरकार ने सेना की कमांड एक्जिट नीति को मंजूरी दी है। कोर्ट ने पूछा कि क्या सरकार ने सशस्त्र बल ट्रिब्युनल के समक्ष इस बारे में कोई हलफनामा दाखिल किया था। पीठ ने सरकार से कहा है कि वह हलफनामें में बताए कि क्या सरकार ने अजय विक्रम सिंह कमेटी की कमांड एक्जिट नीति को मंजूरी दी थी। सरकार प्रोन्नति नीति का पूरा ब्योरा देने के साथ यह भी बताए कि अगर उसने अजय विक्रम सिंह कमेटी की कमांड एक्जिट नीति को मंजूरी नहीं दी थी तो क्या रक्षा मंत्रालय ने यह मुद्दा सेना के समक्ष उठाया था या नहीं।
सेना में प्रोन्नति की कमांड एक्जिट पालिसी 2009 में अपनाई गई थी। इसका मकसद यह था कि सीमा पर यूनिट्स की कमान ऐसे अफसरों को दी जाए जिनकी उम्र कम हो। हालांकि इसके चलते बख्तरबंद कोर, मैकेनाइज्ड इनफैंट्री, सिग्नल्स कोर, आर्डिनेंस कोर के अधिकारियों के लिए कर्नल और उससे ऊंचे पद आर्टिलरी और इनफैंट्री के अपने समकक्षों के मुकाबले कठिन हो गया।
पिछले महीने सशस्त्र बल ट्रिब्युनल ने समानता के अधिकार के उल्लंघन की दलील पर इस नई प्रोन्नति नीति को रद कर दिया था। केंद्र सरकार ने ट्रिब्युनल के फैसले को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी है।