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'जीता तो चोटी पर तिरंगा फहराऊंगा और मर गया तो उसी तिरंगे में लिपटा चला आऊंगा'

कारगिल युद्ध में भारत की जीत और उस जीत में देश के महान सपूतों की वीरता की बातों को हम भला कैसे भूल सकते हैं। हमारे वीर जवानों अपनी वीरता से पाकिस्तानी सैनिकों के होश ठिकाने लगा दिए। हमारे वीरों ने अपनी जान देकर देश की शान बढ़ाई। इन वीरों

By Sudhir JhaEdited By: Published: Sat, 25 Jul 2015 10:11 AM (IST)Updated: Sun, 26 Jul 2015 09:41 AM (IST)
'जीता तो चोटी पर तिरंगा फहराऊंगा और मर गया तो उसी तिरंगे में लिपटा चला आऊंगा'

नई दिल्ली। कारगिल युद्ध में भारत की जीत और उस जीत में देश के महान सपूतों की वीरता की बातों को हम भला कैसे भूल सकते हैं। हमारे वीर जवानों अपनी वीरता से पाकिस्तानी सैनिकों के होश ठिकाने लगा दिए। हमारे वीरों ने अपनी जान देकर देश की शान बढ़ाई। इन वीरों और भारत माता के माहन सपूतों में एक थे परमवीर चक्र वीजेता शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा। जिनका कहना था-

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'जीत गया तो चोटी पर तिरंगा फहराऊंगा और अगर मर गया तो उसी तिरंगे में लिपटा हुआ चला आऊंगा लेकिन आऊंगा जरूर'

देश की सुरक्षा को लेकर हमेशा से हमारे सैनिकों का इतिहास गौरवपूर्ण रहा हैं। किसी भी सैनिक का बलिदान कभी छोटा या बड़ा नहीं होता लेकिन फिर भी कभी-कभी हमारे सामने कुछ ऐसे बहादुर और निर्भीक सैनिक एक ऐसा उदहारण स्थापित कर जाते हैं कि जिसे सुनने मात्र से ही हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं और भुजाएं फड़कने लगती हैं। ऐसे ही वीर सैनिक थे परमवीर चक्र विजेता शेरशाह के नाम से मशहूर कारगिल में दुश्मनों की दांत खट्टे करने वाले महावीर विक्रम बत्रा।

हिमांचल प्रदेश के पालमपुर निवासी जी.एल.बत्रा और कमलकांता बत्रा के यहां 9 सितम्बर 1974 को जन्मा था यह शेर। जुलाई 1996 में देहरादून मिलिट्री एकेडमी ज्वाइन किया और दिसंबर 1997 में अपनी शिक्षा समाप्त कर एक लेफिनेंट के तौर पर पहुंच गए जम्मू के सोपोर इलाके में सेना के 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में । तभी से ही शुरू हो गयी थी वीरता और निर्भीकता के एक नए अध्याय की शुरुआत। लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा को युद्ध भूमि में ही उनकी एक के बाद एक मिलती सफलताओं के कारण उन्हें लेफ्टिनेंट से कैप्टन बना दिया गया था।

कैप्टन विक्रम बत्रा और उनके साथियों को 12 जून 1999 को कारगिल के द्रास सेक्टर में दुश्मनों को जवाब देने और उन घुसपैठियों को भारत की भूमि से भगाने के लिए भेजा गया था। विक्रम बत्रा ने जब इस चोटी से रेडियो के जरिए अपना विजय उद्घोष यह दिल मांगे मोर कहा तो सेना ही नहीं बल्कि पूरे भारत में उनका नाम छा गया। इसी दौरान विक्रम के कोड नाम शेरशाह के साथ ही उन्हें कारगिल का शेर की भी संज्ञा दे दी गई। अगले दिन चोटी 5140 में भारतीय झंडे के साथ विक्रम बत्रा और उनकी टीम का फोटो मीडिया में आया तो हर कोई उनका दीवाना हो उठा। इसके बाद सेना ने चोटी 4875 को भी कब्जे में लेने का अभियान शुरू कर दिया। इसकी भी बागडोर विक्रम को सौंपी गई। उन्होंने जान की परवाह न करते हुए लेफ्टिनेंट अनुज नैयर के साथ कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा।

अंतिम समय
मिशन लगभग पूरा हो चुका था जब कैप्टन अपने कनिष्ठ अधिकारी लेफ्टीनेंट नवीन को बचाने के लिये लपके। लड़ाई के दौरान एक विस्फोट में लेफ्टीनेंट नवीन के दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो गये थे। जब कैप्टन बत्रा लेफ्टीनेंट को बचाने के लिए पीछे घसीट रहे थे तब उनकी की छाती में गोली लगी और वे 'जय माता दी' कहते हुये वीरगति को प्राप्त हुए।


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