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फूलन देवी: कभी विरोधी उनके नाम से थर-थर कांपते थे

दस्यु सुंदरी से राजनेता बनी फूलन देवी का जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव गोरहा का पूर्वा में 10 अगस्त 1

By Edited By: Published: Fri, 08 Aug 2014 05:28 PM (IST)Updated: Sat, 09 Aug 2014 08:46 AM (IST)
फूलन देवी: कभी विरोधी उनके नाम से थर-थर कांपते थे

दस्यु सुंदरी से राजनेता बनी फूलन देवी का जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव गोरहा का पूर्वा में 10 अगस्त 1963 को हुआ था।

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11 वर्ष की छोटी उम्र में ही उनकी शादी कर दी गई लेकिन पति और उसके परिवार वालों ने उन्हें छोड़ दिया। कहा जाता है कि काफी प्रताड़ना और कष्ट झेलने की वजह से ही उनका झुकाव डकैतों की ओर हुआ। धीरे-धीरे फूलनदेवी ने अपने खुद का एक गिरोह खड़ा कर लिया और उसकी नेता बन गईं। कहा जाता है कि कभी लोग उनके नाम से थर-थर कांपते थे।

गिरोह बनाने से पहले गांव के कुछ लोगों ने कथित तौर पर फूलन के साथ दुष्कर्म किया था। इसी का बदला लेने की मंशा से फूलन ने बीहड़ का रास्ता अपनाया। डकैत गिरोह में उसकी सर्वाधिक नजदीकी विक्रम मल्लाह से रही। माना जाता है कि पुलिस मुठभेड़ में विक्रम की मौत के बाद फूलन टूट गई।

आमतौर पर फूलनदेवी को डकैत के रूप में [रॉबिनहुड] की तरह गरीबों का पैरोकार समझा जाता था। 1981 में वह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तब सुर्खियों में आई जब उन्होने ऊंची जाति के 22 लोगों को एक नरसंहार में मौत के घाट उतार दिया। मारे गए सभी लोग ठाकुर जाति के जमींदार थे, लेकिन बाद में उन्होने इस नरसंहार में शामिल होने की बात से इन्कार किया था।

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की पुलिस व प्रतिद्वंदी गिरोहों ने फूलन को पकड़ने की काफी कोशिशें की। इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने [1983] में उनसे समझौता किया की उन्हें मृत्यु दंड नहीं दिया जायेगा और उनके परिवार के सदस्यों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जायेगा तब फूलनदेवी ने इस शर्त के तहत आत्मसमर्पण कर दिया।

बिना मुकदमा चलाये ग्यारह साल तक जेल में रहने के बाद फूलन को 1994 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने रिहा कर दिया। ऐसा उस समय हुआ जब दलित लोग फूलन के समर्थन में गोलबंद हो रहे थे और फूलन इस समुदाय के प्रतीक के रुप में देखी जा रही थी। फूलन ने अपनी रिहाई के बाद बौद्ध धर्म अपना लिया। 1996 में फूलन ने उत्तर प्रदेश के भदोही सीट से [लोकसभा] का चुनाव जीता और वह संसद पहुंच गईं। 25 जुलाई 2001 को दिल्ली में उनके आवास पर ही फूलन की हत्या कर दी गई।

1994 में शेखर कपूर ने फूलन पर आधारित एक फिल्म बैंडिट क्वीन बनाई जो काफी चर्चित और विवादित रही। फूलन ने इस फिल्म पर कई आपत्तियां दर्ज कराईं जिसके बाद सरकार द्वारा भारत में इस फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगा दी गई।

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