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    पीएम ने भंग किए सभी मंत्री समूह, मंत्रालय अपने स्तर से लेंगे फैसले

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    Updated: Sun, 01 Jun 2014 11:07 AM (IST)

    निजाम बदला है तो शासन के तौर-तरीके भी बदलेंगे। संप्रग सरकार के कार्यकाल में हर फैसला मंत्रिसमूह (जीओएम) या अधिकार प्राप्त मंत्रिसमूह (ईजीओएम) के जरिए करने की परवान चढ़ी परंपरा को खत्म कर दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकार में तेजी से फैसले लेने की आदत डालने की एक अहम कोशिश करते हुए शनिवार को संप्रग का

    नई दिल्ली। निजाम बदला है तो शासन के तौर-तरीके भी बदलेंगे। संप्रग सरकार के कार्यकाल में हर फैसला मंत्रिसमूह (जीओएम) या अधिकार प्राप्त मंत्रिसमूह (ईजीओएम) के जरिए करने की परवान चढ़ी परंपरा को खत्म कर दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकार में तेजी से फैसले लेने की आदत डालने की एक अहम कोशिश करते हुए शनिवार को संप्रग कार्यकाल में गठित सभी जीओएम और ईजीओएम भंग कर दिए हैं।

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    साथ ही सभी मंत्रालयों को निर्देश दिया है कि वे अधिकांश फैसले अपने स्तर पर ही करें। जहां मुश्किल होगी वहां प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) और कैबिनेट सचिवालय की मदद ली जाएगी।

    प्रधानमंत्री ने दो दिन पहले ही प्रशासन के 10 सूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा करते हुए इस बात के संकेत दे दिए थे कि जीओएम और ईजीओएम से फैसला कराने के तरीके को वह पसंद नहीं करते। इसमें कहा गया था कि मंत्रालयों के भीतर अंतर-मंत्रालयीय समितियां बनें, जो अहम फैसले करें। कुछ मंत्रालयों ने तो इस निर्देश के आधार पर अंतर-मंत्रालयीय समिति के गठन की प्रक्रिया शुरू भी कर दी थी।

    पेट्रोलियम, कोयला व बिजली मंत्रालय में इस तरह की समितियां जल्द गठित होने की संभावना है। इस तेजी के बावजूद शनिवार को सरकार की ओर से साफ तौर पर जता दिया गया है कि इस बारे मे सभी मंत्रालयों को तेजी से फैसला करना होगा। इस फैसले के कई आयाम है। मसलन, मंत्रालय के बाबू अब फैसला करने से कतरा नहीं सकते। संप्रग कार्यकाल में सीबीआइ, कैग व अन्य एजेंसियों की वजह से फैसले लेने की रफ्तार धीमी पड़ गई थी।

    अब ऐसे हालात बदलने होंगे। जहां फैसला करने में मुश्किल होगी, वहां कैबिनेट सचिवालय और प्रधानमंत्री कार्यालय मदद करेगा। स्पष्ट है कि पीएमओ के साथ ही कैबिनेट सचिवालय ज्यादा मजबूत होंगे। इससे फैसले जल्द किए जा सकेंगे।

    पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद को बताया था कि संप्रग-दो ने कुल 97 मुद्दों पर ईजीओएम और जीओएम बनाए गए थे। इनमें 40 जीओएम और 17 ईजीओएम ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी, जिसके आधार पर कई फैसले भी हुए, लेकिन संप्रग कार्यकाल के अंतिम समय तक 37 जीओएम या ईजीओएम काम कर रहे थे।

    कुछ मंत्रिसमूह तो ऐसे थे, जिनकी कभी बैठक भी नहीं हो पाई। कुछ मंत्रिसमूह की कई बैठकों के बाद भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके थे। नीतिगत जड़ता की शिकार संप्रग-दो ने अंतिम दो-तीन वर्ष के दौरान लगभग हर मुद्दे पर जीओएम बनाने की परंपरा चला दी थी। सरकार की फैसले लेने की गति इतनी धीमी थी कि जीओएम भी कई मुद्दों का हल नहीं निकाल सके।

    मसलन, पर्यावरण मंत्रालय से संबंधित गो और नो-गो का मामला। उद्योगों को गैस आवंटन का मामला। जल वितरण की राष्ट्रीय आंतरिक नीति बनाने के लिए गठित जीओएम की शायद ही कभी बैठक हुई हो। विडंबना यह है कि जीओएम के पास मामले पहुंचने के बाद उन पर फैसला लेना और मुश्किल हो गया था।

    प्रधानमंत्री का दस सूत्रीय कार्यक्रम

    1. अधिकारियों पर भरोसा, ताकि वह निडर होकर फैसला करें।

    2. अधिकारियों को काम की आजादी। नए विचारों का स्वागत।

    3. शिक्षा, स्वास्थ्य, जल, ऊर्जा और सड़क को प्राथमिकता।

    4. पारदर्शिता को बढ़ावा। ई-ऑक्शन को प्राथमिकता।

    5. जीओएम की जगह अंतर-मंत्रालीय समूह को बढ़ावा।

    6. लोगों के हितों से जुड़ी व्यवस्था तैयार करना।

    7. अर्थंव्यवस्था की चिंताओं का निदान खोजना।

    8. ढांचागत व निवेश संबंधी सुधार।

    9. नीतियों को एक निश्चित समयसीमा में लागू करना।

    10. स्थायी सरकारी नीतियां बनाना।

    दस प्रमुख मुद्दे जिन पर संप्रग ने गठित किए समूह

    1. उर्वरक कीमत

    2. जल प्रबंधन

    3. राष्ट्रीय युद्ध संग्रहालय

    4. प्रशासनिक सुधार

    5. नागरिक उडड्यन

    6. कोयला खनन

    7. राष्ट्रीय दवा नीति

    8. विश्व व्यापार संगठन

    9. द्लि्ली की परिवहन व्यवस्था

    10. ऊर्जा नति

    फैसले से फायदा

    -मंत्रालयों के अफसर फैसले लेने से नहीं कर सकेंगे इन्कार

    -पीएमओ के साथ ही कैबिनेट सचिवालय होगा ज्यादा मजबूत

    -अंतर-मंत्रालयीय समितियों को ही करने होंगे अहम फैसले