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    असहिष्णुता और हिंसा लोकतंत्र के साथ धोखा

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    Updated: Thu, 14 Aug 2014 10:30 PM (IST)

    संसद और न्यायपालिका की साख पर उठते रहे सवालों और भड़काऊ राजनीतिक बयानों के दौर के बीच राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गंभीर चिंता जताई है। स्वतंत्रता दिवस ...और पढ़ें

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    नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। संसद और न्यायपालिका की साख पर उठते रहे सवालों और भड़काऊ राजनीतिक बयानों के दौर के बीच राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गंभीर चिंता जताई है। स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर देश के नाम संबोधन में चुनौतियों का अहसास कराते हुए उन्होंने कहा कि लोकतंत्र शोरगुल का नाम नहीं है। लोकतंत्र उत्तेजित करने वाले भड़काऊ, जहरीले भाषणों का नाम नहीं है। असहिष्णुता और हिंसा लोकतंत्र की मूल भावना के साथ धोखा है। लोकतंत्र को जिम्मेदारी का अहसास है। इसे बनाए रखना है तो संस्थाओं को भी मजबूत करना होगा। कुछ चिंता के ही लहजे में उन्होंने कहा कि क्या संसद में गंभीर विचार मंथन और अच्छी बहस नहीं हो सकती है? क्या अदालतों को हम न्याय का मंदिर नहीं बना सकते हैं?

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    राष्ट्र को संबोधन में अक्सर वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर परोक्ष टिप्पणी करते रहे प्रणब मुखर्जी ने गुरुवार को भी उन मुद्दों को छुआ। तीन दशक बाद पूर्ण बहुमत वाली स्थिर सरकार गठन पर संतोष जताया, तो लोकतंत्र को मजबूत बनाने और विकास के पथ पर अग्रसर होने का फार्मूला भी दिया। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता एक उत्सव है, लेकिन आजादी एक चुनौती है। इन चुनौतियों को समझना जरूरी है। यह भी समझना होगा कि लोकतंत्र का अर्थ शोर शराबा नहीं है।

    गौरतलब है कि पिछले कुछ महीनों में जहां दंगों पर भी राजनीतिक रोटी सेंकने की कोशिशें होती रही, वहीं संसद के अंदर भी आरोप प्रत्यारोप का दौर तेज रहा था। सांप्रदायिक हिंसा को लेकर बहस भी हुई तो तीखे बयानों के तीर चले। राष्ट्रपति ने सीधे सपाट शब्दों में इस पर आपत्ति जता दी। ध्यान रहे कि दो दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी संसद में गंभीर चर्चा की जरूरत पर बल दिया था। उच्चतर न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति में भ्रष्टाचार का आरोप लगता रहा है। गुरुवार को संसद ने कोलेजियम व्यवस्था खत्म कर नई व्यवस्था लागू करने का विधेयक पारित किया है। राष्ट्रपति ने भी उस पर मंजूरी दी है।

    गरीबी उन्मूलन को देश के विकास की बड़ी जरूरत बताते हुए प्रणब ने सुशासन के मुद्दों को भी छुआ और प्रधानमंत्री के उस कथन पर भी मुहर लगा दी जिसमें उन्होंने काम और विश्वास से सफलता का भरोसा जताया था। संस्कृत की कहावत का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा- 'सफलता कर्म से ही उत्पन्न होती है।' 2019 तक भारत को स्वच्छ बनाने के प्रधानमंत्री के आह्वान की प्रशंसा करते हुए प्रणब ने कहा कि यह तभी सफल होगा जब हर भारतीय इसे मिशन बना लें। साथ ही सुशासन का अर्थ भी समझाया। उन्होंने कहा कि सुशासन में विधि के शासन, सहभागिता, पारदर्शिता, तत्परता और जवाबदेही का समावेश होता है। जरूरी है कि राजनीतिक प्रक्रिया में सिविल सोसाइटी की भागीदारी भी हो। राष्ट्रपति के लिए गरीबी सबसे चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि भारत को गरीबी के उन्मूलन से गरीबी के निर्मूलन की समयबद्ध लक्ष्य तय करना होगा।

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