कांग्रेस भी नहीं मानती 28 रुपये खर्च वालों को गरीब
देश में गरीबी घटाने के ताजा सरकारी आंकड़ों पर राजनीतिक दल और अर्थशास्त्री कुछ भी कहें, लेकिन कांग्रेस संतुष्ट ही नहीं, बल्कि इसे उपलब्धि मानकर सरकार की पीठ भी थपथपा रही है। कांग्रेस को यह मानने में हिचक नहीं है कि गांवों में प्रति दिन 27 रुपये खर्च करने वाला गरीब नहीं है और मौजूदा दौर में भी मुंबई जैसे
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। देश में गरीबी घटाने के ताजा सरकारी आंकड़ों पर राजनीतिक दल और अर्थशास्त्री कुछ भी कहें, लेकिन कांग्रेस संतुष्ट ही नहीं, बल्कि इसे उपलब्धि मानकर सरकार की पीठ भी थपथपा रही है। कांग्रेस को यह मानने में हिचक नहीं है कि गांवों में प्रति दिन 27 रुपये खर्च करने वाला गरीब नहीं है और मौजूदा दौर में भी मुंबई जैसे शहर में सिर्फ 12 रुपये में पेटभर भोजन किया जा सकता है।
गांवों में रोजाना 27.20 रुपये और शहरों में प्रतिदिन 33.30 रुपये खर्च करने वालों को गरीब नहीं मानना किसी को नहीं पच रहा है। सरकार की नई परिभाषा को कांग्रेस ने बुधवार को अपने तरीके से जायज ठहराया। कांग्रेस प्रवक्ता राज बब्बर ने यह कहकर इसे सही ठहराने की कोशिश की कि 1993 से 2004-05 तक की तुलना में संप्रग के सात साल में गरीबी ज्यादा तेजी से घटी है। 2004-05 से पहले तब गरीबी घटने की दर 0.75 प्रतिशत थी, जबकि उसके बाद 2011-12 तक गरीब 2.18 प्रतिशत की दर से घटी है। बब्बर ने कहा, 'मुंबई जैसे शहर में आज भी 12 रुपये में पेटभर चावल, दाल, सांभर खाया जा सकता है'।
उन्होंने कहा, 'यह सच है कि महंगाई बढ़ी है। उससे आंखें नहीं चुराई जा सकतीं लेकिन इसे किसी तरह से ढंकने की जरूरत भी नहीं है, क्योंकि प्रति व्यक्ति आय में इजाफा भी हुआ है। इससे लोगों के खर्च करने की क्षमता बढ़ी है। 2004 की तुलना में 2011 तक प्रति व्यक्ति आय में 15 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई'। उन्होंने यह भी तर्क दिया, 'केरल (शहरी क्षेत्र) में 2004 में प्रति व्यक्ति मासिक आय औसतन जहां 1372 रुपये थी। 2012 में वह बढ़कर 3408 रुपये तक हो चुकी थी।
कांग्रेस का दावा किसी को न भाया
कांग्रेस का नया दावा विपक्ष तो क्या सत्तापक्ष को भी नहीं पच रहा है। हर दल की ओर से यह आरोप लगने लगे हैं कि गरीबी न घटाकर सरकार ने नई परिभाषा के जरिये गरीबों की संख्या घटा दी है। जरा देखिए ये टिप्पणियां :
- वर्तमान माहौल में अधिक संवेदनशील होकर गरीबी के आकलन का तौर तरीका बदलना चाहिए : प्रफुल्ल पटेल, राकांपा
- आंकड़े भ्रामक हैं। सरकार गरीबों के घाव पर नमक छिड़क रही है: बृंदा करात, माकपा
- गरीबी के सरकारी आंकड़े गलत है। देश में गरीबों की संख्या बहुत अधिक है, आकलन की तरीका गलत है: जय पांडा, बीजद
- परिभाषा बदलकर गरीबी नहीं घटाई जा सकती है। मैं किसी भी मंच पर सरकार के इस दावे को ध्वस्त कर सकता हूं : प्रकाश जावडेकर, भाजपा
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