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    मेरी पतंग उलझती नहीं: मोदी

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    Updated: Tue, 14 Jan 2014 02:35 PM (IST)

    गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने 'पतंग' पर लिखी एक कविता अपनी बेवसाइट पर पोस्ट की है।

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    नई दिल्ली। गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने 'पतंग' पर लिखी एक कविता अपनी बेवसाइट पर पोस्ट की है। 80 के दशक में लिखी इस कविता के प्रदेश में मनाए जा रहे उत्तरायण के अवसर पर पोस्ट करने के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। इसकी एक-एक लाइन में गूढ़ता का अहसास है और लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इसके अलग-अलग मतलब निकाले जा सकते हैं।

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    ट्विटर पर मोदी ने ट्विट किया है गुजरात उत्तरायण मना रहा है! आसमान रंगीन पतंगों से भर जाएगा। उत्तरायण पर मेरी हार्दिक शुभकामना। मैं अपनी कविता शेयर कर रहा हूं..। मोदी की इस कविता की कई लाइनों जिनमें 'मेरा पतंग उलझता नहीं.. वृक्षों की डालियों में फंसता नहीं.., आकाश का अनुभव है,' का खास मतलब निकाला जा रहा है।

    कुछ देर बाद ही मोदी ने दूसरा ट्विट किया। जिसमें उन्होंने लिखा, मेरे कई मित्रों ने मुझसे पूछा मैंने पतंग पर कविता कब लिखी। इसे 80 के दशक में लिखा गया है।

    मोदी की यह कविता सोशल मीडिया में तेजी से शेयर से की जा रही है। मोदी की यह कविता आप भी पढि़ए..

    उत्सव

    पतंग..मेरे लिए उ‌र्घ्वगति का उत्सव,

    मेरा सूर्य की ओर प्रयाण।

    पतंग..मेरे जन्म-जन्मांतर का वैभव,

    मेरी डोर मेरे हाथ में..

    पदचिन्ह पृथ्वी पर,

    आकाश में..

    विहंगम दृश्य सेसा,

    मेरा पतंग..अनेक पतंगों के बिच,

    मेरा पतंग उलझता नहीं..

    वृक्षों की डालियों में फंसता नहीं..

    पतंग..मानो मेरा गायत्री मंत्र,

    धनवान हो या रंक,

    सभी को..

    कटी पतंग एकत्र करने का आनंद होता है।

    बहुत ही अनोखा आनंद,

    कटी पतंग के पास..

    आकाश का अनुभव है.

    हवा की गति और दिशा का ज्ञान है..

    स्वयं एक बार ऊंचाई तक गया है वहां कुछ क्षण रुका है।

    इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

    पतंग..मेरा सूर्य की ओर प्रयाण..

    पतंग का जीवन उसकी डोर में है।

    पतंग का आराध्य (शिव) ब्योम (आकाश) में..

    पतंग की डोर मेरे हाथ में..

    मेरी डोर शिव जी के हाथ में..

    जीवन रूपी पतंग के लिये (हवा के लिये),

    शिव जी हिमालय में बैठे हैं।

    पतंग के सपने (जीवन के सपने),

    मानव से ऊंचे..

    पतंग उड़ती है, शिव जी के आस-पास,

    मनुष्य जीवन में बैठा - बैठा ..

    उसको (डोर) सुलझाने में लगा रहता है।

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