आतंक की होड़ में पिस रहा पेशावर
कोई झंडा इतना बड़ा नहीं हो सकता जो पेशावर के स्कूल से निकली बच्चों की लाशों को ढंक सके। ये बच्चे पाकिस्तान ही नहीं इंसानियत की अमानत थे। इनकी हिफाजत करना हमारी फौजों की जिम्मेदारी थी। हमें मानना होगा कि अपनी इस जिम्मेदारी को निभाने में हमसे चूक हुई है।
कोई झंडा इतना बड़ा नहीं हो सकता जो पेशावर के स्कूल से निकली बच्चों की लाशों को ढंक सके। ये बच्चे पाकिस्तान ही नहीं इंसानियत की अमानत थे। इनकी हिफाजत करना हमारी फौजों की जिम्मेदारी थी। हमें मानना होगा कि अपनी इस जिम्मेदारी को निभाने में हमसे चूक हुई है। इसका दर्द आज पेशावर ही नहीं हर पाकिस्तानी की आंखों में नजर आ रहा है। हर दिन नई तालिबानी तंजीमें खड़ी हो रही हैं, जिनमें अपने को घिनौना और बर्बर साबित करने की होड़ लगी है। खामियाजा भुगत रही हैं वो मासूम जानें जो अब चीख-चीख के कह रही हैं... खुदा के लिए यह अच्छे और बुरे तालिबान का खेल बंद करिए। इस मुल्क को इन दङ्क्षरदों से आजादी चाहिए।
बीते कुछ समय में पेशावर दङ्क्षरदगी की अजीब होड़ से रूबरू है। हर दिन नई तालिबानी तंजीमें खड़ी होती हैं। सभी खौफनाक वारदातों को अंजाम देकर आतंक की दुनिया में उभरी आइएस जैसी ताकत का ध्यान खींचने की होड़ में लगी है। हर कोई दङ्क्षरदगी की लकीर बड़ी करना चाहता है। ऐसे में पेशावर की आम आवाम के लिए धमाके और हमले किस्मत बन गए हैं। लेकिन छावनी के करीब बने आर्मी पब्लिक स्कूल पर हुए हमले ने शहर की कमर तोड़ दी है। सुबह इसकी खबर फैलते ही हर कोई बेतहाशा अपने बच्चे की सुध लेने के लिए दौड़ पड़ा। उदासी और आंसुओं से भरी अफरा-तफरी के बीच हर किसी की जुबान पर रह-रहकर यही बात आती है कि अब इंतहा हो गई।
दरअसल, पेशावर बीते कई दशकों से ऐसे हमलों का दर्द झेल रहा है। अफगानिस्तान में सोवियत फौजें दाखिल हुईं तो हमले पेशावर ने झेले। 9/11 के बाद अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई छेड़ी तो आफत यहां आई। अब जबकि पाकिस्तानी फौज कामयाबी से तालिबानी तंजीमों के खिलाफ ऑपरेशन चला रही है, तो भी हमले पेशावर झेल रहा है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि तालिबानी तंजीमों की कमर टूट रही है। अपना वजूद बचाने के लिए ही वे ऐसे हमलों को अंजाम दे रहे हैं। सो, पलटवार का डर हर किसी को था। ऐसे में शायद यह रणनीतिक चूक है कि फौजी अभियान चलाने के साथ हम अपने नाजुक और कमजोर निशानों की हिफाजत मुकम्मल करने में चूक गए। छावनी के करीब स्कूल पर ऐसी दङ्क्षरदगी भरा हमला सुरक्षा इंतजामों की ऐसी ही चूक है। 80 के दशक में पेशावर के गवर्नमेंट हाई स्कूल पर टाइम बम लगाकर हमला हुआ था जिसमें पांच बच्चे मारे गए थे। आज फिर एक स्कूल से लाशें निकली हैं, तो दिल चीखकर कहता है, मजहब के नाम पर तालिबानियों/ आतंकवादियों की यह मारकाट... माय फुट! अब इनका सफाया जरूरी हो गया है।
[डॉ. सैयद हुसैन शाहिद सोहरावर्दी/एसोसिएट प्रोफेसर, पेशावर विश्वविद्यालय]
[प्रणय उपाध्याय से बातचीत पर आधारित]
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