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    जानिए, 36 हजार अन्नदाताओं की मौत का आखिर कौन है कसूरवार

    By Rajesh KumarEdited By:
    Updated: Sat, 06 May 2017 01:04 PM (IST)

    साल 2013 से प्रति वर्ष करीब 12 हजार से ज्यादा किसान मौत को गले लगा रहे हैं।

    जानिए, 36 हजार अन्नदाताओं की मौत का आखिर कौन है कसूरवार

    नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। जो अन्नदाता धरती पर अनाज उगा पूरे देश का पेट भरते हैं आज उन्हीं किसानों की हालत दयनीय बनी हुई है। ये किसान आज देश का पेट तो भरते हैं लेकिन खुद अपना पेट भरने में अक्षम हैं। आलम ये है कि साल 2013 से प्रति वर्ष करीब 12 हजार से ज्यादा किसानों ने मौत को गले लगाया है। ये बात हम नहीं बल्कि केन्द्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है।

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    सात राज्यों में सबसे ज्यादा किसानों की खुदकुशी के मामले

    केन्द्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि किसानों की हालत को सुधारने और उनकी आमदनी बढ़ाने के लिए उठाए गए तमाम प्रयासों के बावजूद साल 2013 से प्रति वर्ष कृषि क्षेत्र में कार्य कर रहे 12 हजार लोगों ने मौत को गले लगाया।

    कुल खुदकुशी का 10% कृषि क्षेत्र से जुड़े लोग

    साल 2015 में कुल कृषि क्षेत्र से जुड़े 12,602 लोगों ने खुदकुशी की। इनमें से आठ हजार सात लोग किसान थे जबकि 4,595 खेतिहर मजदूर थे। ये आंकड़े चौंकानेवाले इसलिए हैं क्योंकि इस साल देश में कुल  1,33,623 लोगों ने खुदकुशी की थी। यानि, खेती से जुड़े 9.4 प्रतिशत लोग मौत का फंदा लगाने को मजबूर हुए।

    महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना में सबसे ज्यादा आत्महत्या

    साल 2015 में देशभर में किसानों की खुदकुशी के सबसे ज्यादा मामले सात राज्यों से आए हैं। इनमें सबसे अव्वल है महाराष्ट्र। यहां चार हजार दो सौ इक्यानवे लोग बेमौत मारे गए। उसके बाद कर्नाटक में 1,569, तेलंगाना में चौदह सौ, मध्य प्रदेश में बारह सौ नब्बे, छत्तीसगढ़ में 954, आंध्र प्रदेश में 916 और तमिलनाडु में छह सौ छह लोगों ने खुदकुशी की। यानि कृषि क्षेत्र से जुड़ी कुल खुदकुशी की घटना 12,602 में से 11,026 मामले इन्हीं सात राज्यों में हुए हैं।

    2014 में 12,360 कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों ने की खुदकुशी

    जबकि, अगर बात साल 2014 की करें तो कुल 12 हजार 360 लोगों ने मौत को गले लगाया। इनमें से खेतिहर किसानों की संख्या 5 हजार 650 थी जबकि खेतिहर श्रमिकों की कुल संख्या 6 हजार सात सौ दस। यानि देश में कुल एक लाख 31 हजार छह सौ छियासठ मामले आत्महत्या के आए जिनमें से 9.4 प्रतिशत कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों ने खुदकुशी की थी।

    2013 में 11,772 कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों ने की आत्महत्या

    तो वहीं अगर साल 2013 की करें तो कृषि क्षेत्र से जुड़े कुल 11,772 लोगों ने आत्महत्या की थी। यानि, इस साल 1,34,779 खुदकुशी के मामले आए थे जिनमें से 8.7 प्रतिशत कृषि क्षेत्र से जुड़े लोग मौत के फंदे को गले लगाया था।

    ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि सरकार की तरफ से किए गए तमाम प्रयासों के बाद भी आज देश में किसानों और इस क्षेत्र से जुड़े लोगों की स्थिति जैसी होनी चाहिए वैसी नहीं हो पायी है। जाहिर सी बात है कि केन्द्र सरकार की तरफ से शुरू किए गए फसल बीमा योजना हो या फिर अन्य योजनाएं धरातल पर उस तरह से नहीं पहुंच पायी है जैसे पहुंचना चाहिए।



    हालत ये है कि आज तमिलनाडु समेत कई राज्यों में किसान सूखे की मार झेल रहे हैं। ऐसे में जरूरत है इस बात की है कि राज्य सरकारें इसे गंभीरता से ले और किसानों को ना केवल सब्सिडी के आधार पर उनकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति कराने में मदद करें बल्कि जो याजनाएं केन्द्र या राज्य सरकार की तरफ से किसानों के लिए चलाई गई है उन योजनाओं को किसानों को लाभ हो रहा है या नहीं इस बात को सुनिश्चित करे।