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    सांसदों को अयोग्य ठहराने से रोकने को अध्यादेश लाने की तैयारी

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    Updated: Mon, 23 Sep 2013 12:44 AM (IST)

    संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने में अभी तीन महीने हैं। इसे देखते हुए सरकार सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के तहत आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए और दो साल या इससे अधिक सजा पाए सांसदों-विधायकों को तत्काल अयोग्य करार दिए जाने से बचाने के लिए अध्यादेश लाने के विकल्प पर विचार कर रही है। सूत्रों ने क

    नई दिल्ली। संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने में अभी तीन महीने हैं। इसे देखते हुए सरकार सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के तहत आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए और दो साल या इससे अधिक सजा पाए सांसदों-विधायकों को तत्काल अयोग्य करार दिए जाने से बचाने के लिए अध्यादेश लाने के विकल्प पर विचार कर रही है।

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    सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस सांसद राशिद मसूद को भ्रष्टाचार और अन्य आपराधिक मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद से सरकार अध्यादेश के विकल्प पर सोच रही है। उनका कहना है कि अभी इस बारे में कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। अगले माह एक बार जब सीबीआइ अदालत कितनी सजा दी जाती है यह तय कर देगी तो मसूद को राज्यसभा की सदस्यता गंवानी पड़ेगी क्योंकि 10 जुलाई को सुनाया गया सुप्रीम कोर्ट का फैसला अभी कानून के रूप में लागू है। वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद संसद की सदस्यता गंवाने वाले पहले सांसद हो सकते हैं। यह आम धारणा है कि जब तक संसद जन प्रतिनिधित्व (दूसरा संशोधन) विधेयक 2013 पारित नहीं कर देगी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में कानून बनाने वाले सांसद, विधायक और विधान परिषद के सदस्य अपनी सदस्या गंवाना जारी रखेंगे। इसके साथ ही यह महसूस किया जा रहा है कि यदि अध्यादेश लाया जाता है तो विपक्ष शीतकालीन सत्र में सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा क्योंकि एक विधेयक संसद में लटका हुआ है। तकनीकी रूप से अध्यादेश लाने के लिए सरकार स्वतंत्र है क्योंकि दोनों सदनों का सत्रावसान हो चुका है। राजनीतिक दलों की बैठक में विधेयक पेश करने के सरकार के रुख को स्वीकृति मिल चुकी है। जब राज्यसभा में इस विधेयक को पेश किया गया तो उसके शब्दों को लेकर मतभेद थे। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज पहले ही कह चुकी हैं कि इस विधेयक को लेकर अलग-अलग राय है। भाजपा चाहती थी कि इस विधेयक को संसद की स्थायी समिति के पास भेजा जाए।

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