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    नोटबंदी पर संसद में रण, विपक्ष अब बिना नियम के चाहता है बहस

    By Lalit RaiEdited By:
    Updated: Fri, 09 Dec 2016 06:09 AM (IST)

    संसद के शीतकालीन सत्र में महज कुछ दिन ही बचे हैं। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या सांसद सदन को चलने देंगे।

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    नई दिल्ली, जेएनएन । नोटबंदी के मुद्दे पर केंद्र सरकार पर विपक्ष हमलावर है। सड़क से लेकर संसद तक विपक्ष सरकार को घेरने की कोशिश में जुटा हुआ है। शीतकालीन सत्र का एक बड़ा हिस्सा हंगामे की भेंट चढ़ चुका है। अब जबकि संसद के शीतकालीन सत्र में महज तीन दिन बचे हुए हैं, विपक्ष अपने तेवर को नरम करने की भूमिका में दिखाई दे रहा है।

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    नोटबंदी पर सियासत

    नोटबंदी के मुद्दे पर विपक्ष पहले पीएम की सदन में मौजुदगी चाहता था। लेकिन बाद में नियमों की दुहाई देकर वो बहस में हिस्सा लेने से बचता रहा। पहले नियम 56, फिर बाद में नियम 184 के तहत विपक्ष ने चर्चा की मांग की। इन दोनों नियमों में मतविभाजन की व्यवस्था है, हालांकि केंद्र सरकार ने साफ कर दिया कि वो नियम 193 के तहत चर्चा के लिए तैयार हैं। लेकिन सरकार और विपक्ष के बीच इस नुराकुश्ती का असर ये हो रहा है कि संसद का कीमती समय बर्बाद हो रहा है।

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    पहले नियम, अब बिना नियम चर्चा !

    15 दलों के विपक्षी गठबंधन की मांग है कि नोटबंदी पर चर्चा अब बिना किसी नियम के हो। चर्चा की समाप्ति के बाद सदन की इच्छा के मुताबिक मतविभाजन कराया जाए। गुरुवार को विपक्ष ने काला दिवस मनाया था। राज्यसभा में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साफ साफ कहा कि विपक्ष बहस चाहता ही नहीं है। सरकार ने शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन साफ कर दिया था कि वो हर मुद्दे पर बहस के लिए तैयार है। लेकिन विपक्ष की तरफ से हर रोज एक न एक बहाना कर बहस में रोड़े अटकाए गए।

    राष्ट्रपति ने जताई नाराजगी

    नोटबंदी पर विपक्ष की भूमिका पर राष्ट्रपति ने भी गहरी नाराजगी जताई थी। उन्होंने कहा कि सांसदों का व्यवहार संविधान की भावना के खिलाफ है।जनहित के मुद्दे पर जिस तरह संसद में बहस से सांसद दूर भाग रहे हैं, वो अलोकतांत्रिक है। विपक्षी सांसदों को नसीहत देते हुए उन्होंने कहा कि भगवान के लिए संसद को चलने दें।

    आडवाणी ने साधा था निशाना

    भाजपा मार्गदर्शक मंडल के वरिष्ठ सदस्य और कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि ऐसा लग रहा है कि स्पीकर और संसदीय कार्यमंत्री संसद को चलाने के लिए गंभीर ही नहीं हैं।

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