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सिर्फ विधायी प्रक्रिया के जरिये ही निरस्त किया जा सकता है तलाक-ए-बिद्दत

कानून के जरिये हालात बदले जा सकते हैें। तलाक बिद्दत हनफी पंथ को मानने वाले सुन्नियों के धर्म का अभिन्न हिस्सा है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 23 Aug 2017 06:13 AM (IST)Updated: Wed, 23 Aug 2017 09:49 AM (IST)
सिर्फ विधायी प्रक्रिया के जरिये ही निरस्त किया जा सकता है तलाक-ए-बिद्दत

माला दीक्षित, नई दिल्ली। प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर ने अल्पमत का फैसला लिखते हुए धार्मिक आजादी के हक का हवाला दे एक बार में तीन तलाक यानि तलाक-ए-बिद्दत को असंवैधानिक घोषित करने की मांग तो ठुकरा दी लेकिन सरकार को कानून बनाने पर विचार करने का निर्देश देते हुए कहा कि कानून के जरिये हालात बदले जा सकते हैें। उन्होंने कानून बनने तक एक बार में तीन तलाक रोक लगाने का आदेश देने में सुप्रीम कोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 142 में प्राप्त विशेष शक्तियों का इस्तेमाल किया है। जस्टिस खेहर ने स्वयं और जस्टिस अब्दुल नजीर की ओर से फैसला लिखते हुए कहा है कि तलाक बिद्दत हनफी पंथ को मानने वाले सुन्नियों के धर्म का अभिन्न हिस्सा है। ये उनकी आस्था का मसला है जिसका वे 1400 वर्षो से पालन करते आ रहे हैं। ये उनके पर्सनल लॉ का अभिन्न हिस्सा बन गया है।

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कानून के जरिये बदल सकते हैं हालात:

-प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर और जस्टिस अब्दुल नजीर ने की कानून बनाने की वकालत- कहा सिर्फ विधायी प्रक्रिया के जरिये ही निरस्त किया जा सकता है तलाक ए बिद्दत का प्रचलन

 उन्होंने कहा कि भारत में विभिन्न धर्मो में प्रचलित समाज में अस्वीकार्य परंपराओं को कानून के जरिये ही खत्म किया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 25(2) और अनुच्छेद 44 (साथ में सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची की पांचवी प्रविष्टी) में इस कानूनी दखलंदाजी की इजाजत है।

 जस्टिस खेहर न कहा है कि तलाक ए बिद्दत के प्रचलन को खत्म करने के लिए सिर्फ विधायी प्रक्रिया ही अपनाई जा सकती है। इस पर अंतरराष्ट्रीय संधियों का फर्क नहीं पड़ता क्योंकि तलाक बिद्दत पर्सनल ला का अभिन्न अंग है और इसे संविधान के अनुच्छेद 25 (धार्मिक आजादी) में संरक्षण मिला है। तलाक बिद्दत का प्रचलन अनुच्छेद 25 के उपबंधों का उल्लंघन नहीं करता। ये प्रचलन पब्लिक आर्डर, नैतिकता और स्वस्थ्य के खिलाफ नहीं है। ये प्रचलन अनुच्छेद 14, 15 और 21 का भी उल्लंघन नहीं करता क्योकि ये सिर्फ राज्य की कार्रवाई पर लागू होते हैं।

जस्टिस खेहर व नजीर का मानना है कि तलाक बिद्दत पर्सनल ला का हिस्सा होने के कारण उसका उतना ही महत्व है जितना अन्य मौलिक अधिकारों का है। इस प्रचलन को न्यायिक दखल के जरिये संवैधानिक नैतिकता का विरोधी होने के आधार पर निरस्त नही किया जा सकता। उन्होने ये भी कहा है कि अंतरराष्ट्रीय संधियों और पर्सनल ला के बीच टकराव होने की स्थिति में पर्सनल ला ही लागू होगा।

यह भी पढें: पीएम मोदी: तीन तलाक पर फैसला ऐतिहासिक


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