हर चौथे आदमी को सता रहा है कालेधन की वापसी का डर
आम आदमी की आशंका से विपक्षी दलों के इस आरोप को बल मिलता है कि 2000 का नोट कालेधन की व्यवस्था को और अधिक मजबूत करेगा।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। मोदी सरकार की नोटबंदी की सर्जिकल स्ट्राइक से कालेधन का साम्राज्य भले ही ध्वस्त हो गया हो, लेकिन इसके दोबारा खड़ा होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। सर्वे में शामिल हुए लोगों में एक चौथाई का मानना है कि कालेधन का कारोबार फिर से पनप सकता है। कस्बों के बजाय मेट्रो शहरों में ऐसा मानने वालों की संख्या ज्यादा है। वैसे दर्जन भर में एक आदमी ऐसा भी है, जो इसके दूरगामी परिणाम के बारे में अनभिज्ञ है। आम आदमी की आशंका से विपक्षी दलों के इस आरोप को बल मिलता है कि 2000 का नोट कालेधन की व्यवस्था को और अधिक मजबूत करेगा।
मेट्रो शहरों की तुलना में छोटे शहरों के लोग कालेधन के साम्राज्य के हमेशा के लिए खत्म होने को लेकर ज्यादा आश्वस्त दिखते हैं। मेट्रो के हर तीसरे आदमी को लगता है कि कालेधन की जल्द ही पुनर्वापसी होगी। जबकि छोटे शहरों में पांच में एक व्यक्ति ही ऐसा मानता है। देश की राजधानी दिल्ली और आर्थिक राजधानी मुंबई में तो लगभग हर दूसरे आदमी को लग रहा है कि कालाधन फिर से खड़ा हो जाएगा। कोलकाता और विजयवाड़ा जैसे मेट्रो शहरों की भी यही स्थिति है। लेकिन बेंगुलरू और इंदौर में ऐसा मानने वाले काफी कम है। लखनऊ में भी सात में केवल एक आदमी कालेधन की वापसी को लेकर आशंकित दिखता है।
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अधिकांश घरों में आर्थिक फैसले अब भी भले ही पुरुष लेते हों, लेकिन कालेधन की वापसी की आशंका जताने वालों में महिलाओं की संख्या पुरुषों से कहीं ज्यादा है। यही नहीं, कालेधन पर दूरगामी प्रभाव पर महिलाओं की राय पुरुषों की तुलना ज्यादा स्पष्ट है। जागरण-एमडीआरए सर्वे में आयु के हिसाब से देखें तो कमाने वाले उम्र (36-50 साल) के लोग कालेधन की वापसी की आशंका से ज्यादा ग्रस्त हैं। जबकि 35 साल से कम के युवा अपने बड़ों की तुलना में ज्यादा आशांवित दिखते हैं।
इसी तरह अनपढ़ लोगों को नोटबंदी पर ज्यादा भरोसा है, जबकि कम पढ़े लिखे लोग इसको लेकर अधिक आशंकित हैं। वहीं उच्च शिक्षा पाने वाले में भी कालेधन की वापसी की आशंका जताने वालों की संख्या अपेक्षाकृत कम है। व्यापारी और नौकरीपेशा वर्ग में भी लगभग हर तीसरा आदमी मानता है कि कालेधन की वापसी को रोकना मुश्किल है।
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