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    जानिए क्या है ? एनएससीएन-इसाक मुइवा संगठन

    By Amit MishraEdited By:
    Updated: Mon, 03 Aug 2015 10:09 PM (IST)

    एनएससीएन मुइवा संगठन को समझने और ये जानने के लिए कि आखिर यह संगठन क्या है, किस तरह से इसकी गतिविधियां रही हैं और इसकी मांग क्या थी। इसके इतिहास को समझना बेहद जरूरी है। नगालैंड भारत का अहम हिस्सा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के इसी

    नई दिल्ली। एनएससीएन मुइवा संगठन को समझने और ये जानने के लिए कि आखिर यह संगठन क्या है, किस तरह से इसकी गतिविधियां रही हैं और इसकी मांग क्या थी। इसके इतिहास को समझना बेहद जरूरी है। नगालैंड भारत का अहम हिस्सा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के इसी अहम हिस्से पर एक अन्य सरकार भी चलाई जा रही थी। जिसके नेता दूसरे देशों के नेताओं के साथ बैठक करते थे और भविष्य के नागालैंड को लेकर तथा भारत के साथ उसके रिश्तों को लेकर भी सलाह मश्विरा करते थे।

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    एक तरह से देखा जाए तो नागालैंड की समस्या भारत के इतिहास के उस दौर के साथ जुड़ी है जब इस देश को अंग्रेजों से आजादी मिली थी। कहा जा सकता है कि आजादी मिलके के कुछ अरसे बाद ही नगालैंड विद्रोह की राह पर चल पड़ा।

    पढ़ेंः एनएससीएन-सरकार के बीच ऐतिहासिक समझौते का गवाह बना देश

    यहीं से शुरु होती है नगालैंड और उसके विद्रोह की कहनी, आजादी के बाद शुरुआत के दशकों में विद्रोह का असर कम ही देखने को मिला लेकिन अस्सी के दशक के बाद नगा विद्रोह चरम पर रहा।

    कब बना एनएससीएन-इसाक मुइवा संगठन

    एनएससीएन-इसाक मुइवा का गठन 31 जनवरी 1980 को इसाक मुइवा और एसएस खापलांग ने शिलांग समझौते के खिलाफ किया था। शिलांग समझौता नगा नेशनल काउंसिल यानी एनएनसी ने भारत सरकार के साथ किया था। इसके बाद भारत सरकार के साथ वार्ता प्रक्रिया में शामिल होने को लेकर इस संगठन में मतभेद उभर आए और 30 अप्रैल 1988 को एनएससीएन दो गुटों में बंट गया। एक था एनएससीएन-इसाक मुइवा और दूसरा एनएससीएन-खापलांग।

    एनएससीएन के गठन का उद्देश्य ग्रेटर नागालैंड की स्थापना करना था। इसे नागालिम या पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ नागालैंड भी कहा जाता है जो माओ त्से तुंग की विचारधारा पर आधारित है। एनएससीएन में अधिकतर तांगखुल नागा भर्ती हुए जो कि नागालैंड और मणिपुर की पहाड़ियों में बहुसंख्यक हैं। इसका प्रभाव मणिपुर के चार जिलों सेनापती, उखरूल, चंदेल और तामांगलोंग में है। ये नागालैंड के वोखा, फेक, जुनोभोटो, कोहिमा, मोकोकचुंग और तुएनसांग जिलों में फैला हुआ है।

    इसके अलावा असम और अरुणाचल प्रदेश के नागा बहुतायत वाले जिलों में भी अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुका है। एनएससीएन ने एक निर्वासित सरकार भी बना रखी है जो दुनिया भर के संगठनों और मीडिया के साथ औपचारिक और अनौपचारिक बातचीत करता है। इसका तकरीबन 4500 सदस्यों का मजबूत काडर है। इसका वार्षिक बजट 2 से ढाई अरब का है। इसकी आय का मुख्य स्रोत म्यांमार से ड्रग्स की तस्करी है इसके अलावा ये बैंक डकैती, फिरौती आदि से भी पैसा जुटाता है।

    समस्या पुरानी है

    नगा जनजाति के लोगों ने 1956 में पहली बार विद्रोह किया था। लेकिन बाद में उनका संगठन कट्टरुपंथियों और नरमपंथियों में विभाजित हो गया। नरमपंथी इसके बाद जंगलों से बाहर आ गए। भारत सरकार और एनएससीएन (आईएम) के बीच 1997 में युद्धविराम हुआ था लेकिन मतभेद अब भी जारी थे।

    नगालैंड के कुछ संगठनों ने 50 साल पहले नगालैंड को स्वतंत्र घोषित कर दिया था। लेकिन भारत सरकार ने इस क़दम को अपनी मान्यता नहीं दी थी और तब से इलाक़े में संघर्ष होता रहा है। भारतीय सुरक्षा बलों और अलगाववादी गुटों के बीच युद्धविराम से पहले हुए संघर्षों में हजारों लोगों की जानें जा चुकी हैं।

    क्या है एनएससीएन-के

    उग्रवादी संगठन एनएससीएन-के भी 75 साल के खापलांग के नाम पर ही बना है। खापलांग इसके अलावा यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ वेस्टर्न साउथ-ईस्ट को भी चलाता है, जिसमें पूर्वोत्तर क्षेत्र के पांच विद्रोही संगठन शामिल हैं। एनएससीएन-के गुट के प्रमुख एसएस खापलांग का जन्म 1940 में म्यांमार के पंगसाउ के वखथम गांव में हुआ था। बताया जाता है कि उसने कचिन के मैतिकीना में बापटिस्ट मिशन स्कूल ज्वाइन करने से पहले असम के मार्गेरीटा के स्कूल में पढ़ाई की।

    खापलांग पिछले 50 साल से विद्रोहियों का लीडर है। वो दूसरे विश्व युद्ध जैसी घटनाओं से प्रभावित होकर 1964 में नागा डिफेंस फोर्स में शामिल हुआ था। इसके बाद खापलांग ने अपना सफर आगे बढ़ाया और वो ईस्टर्न नागा रिवेलूशनरी काउंसिल का चेयरमैन बना। जिसे उसने और उसके कुछ साथियों ने मिलकर 1965 में खड़ा किया था।