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जानें दक्षिण पूर्वी एशिया को संकट में डालने वाले उत्‍तर कोरिया से कैसे हैं भारत के संबंध

भारत अपने दोस्‍तों के ही वक्‍त पड़ने पर दुश्‍मनों को भी मानवीय आधार पर मदद करने से पीछे नहीं हटता है। फिर वो चाहे उत्‍तर कोरिया ही क्‍याें न हो। हालांकि वह भारत का दुश्‍मन नहीं है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 14 May 2017 02:21 PM (IST)Updated: Wed, 17 May 2017 10:27 AM (IST)
जानें दक्षिण पूर्वी एशिया को संकट में डालने वाले उत्‍तर कोरिया से कैसे हैं भारत के संबंध
जानें दक्षिण पूर्वी एशिया को संकट में डालने वाले उत्‍तर कोरिया से कैसे हैं भारत के संबंध

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। दक्षिण पूर्वी एशिया में लगातार युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं। इसकी वजह उत्‍तर कोरिया बना हुआ है। उत्‍तर कोरिया द्वारा किया गया ताजा मिसाइल परीक्षण इस संकट को फिर हवा देने का काम कर रहा है। सभी विरोधों को दरकिनार कर उत्‍तर कोरिया बार-बार इस तरह के परीक्षणों को अंजाम देता रहा है। अमेरिका से उत्‍तर कोरिया का शुरू से ही छत्‍तीस का आंकड़ा रहा है। इन सभी के बीच उत्‍तर कोरिया के सवाल पर अक्‍सर कई देशों की राय देखी और सुनी जाती रही है, लेकिन भारत की राय शायद ही कभी सामने आई हो। मुमकिन यह भी है कि भारत सिर्फ खामोशी से चीजों को देख रहा हो या फिर इसके पीछे कुछ ये वजह भी हो सकती हैं। इन सभी के बीच यह भी सच है कि उत्‍तर कोरिया के बुरे समय में भारत ने ही उसको कई बार मदद की है।

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भारत और उत्‍तर कोरिया के व्‍यापारिक संबंध

भारत और नॉर्थ कोरिया के बीच काफी समय से व्‍यापारिक और राजनयिक संबंध है। भारत का प्‍योंगयोंग में दूतावास है जबकि उत्‍तर कोरिया का नई दिल्‍ली में दूतावास है। उत्‍तर कोरिया के लिए भारत सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर होने के साथ-साथ बड़ा फूड प्रोवाइडर भी है। सीआईआई के मुताबिक वर्ष 2013 में दोनों देशों के बीच 60 मिलियन यूएस डॉलर का व्‍यापार हुआ था।

कुछ मुद्दों पर नाराजगी

बेहतर व्‍यापारिक रिश्‍तों के बावजूद कुछ मुद्दों पर भारत की उत्‍तर कोरिया से नाराजगी रही है। इनमें से सबसे बड़ा मुद्दा उत्‍तर कोरिया का परमाणु कार्यक्रम है, जिसका भारत पहले से विरोध करता रहा है। भारत का मानना है कि इस परमाणु कार्यक्रम से क्षेत्रीय संतुलन बुरी तरह से गड़बड़ा जाएगा और यह अन्‍य पड़ोसी देशों के लिए घातक साबित होगा। इसके अलावा उत्‍तर कोरिया का पाकिस्‍तान को समर्थन देना भारत की नाराजगी की दूसरी बड़ी वजह है। इतना ही नहीं उत्‍तर कोरिया लगातार जम्‍मू कश्‍मीर के मुद्दे पर पाकिस्‍तान का साथ देता रहा है। इसके अलावा पाकिस्‍तान की मदद से उत्‍तर कोरिया का शुरू होने वाला परमाणु मिसाइल प्रोग्राम भी इस नाराजगी की एक बड़ी वजह रहा है।

जब भारत ने किया था सैन्‍य कार्रवाई का समर्थन

यहां एक बात और ध्‍यान रखने वाली है और वह ये है कि कोरियन युद्ध के दौरान भारत ने संयुक्‍त राष्‍ट्र के उस प्रस्‍ताव का समर्थन किया था जिसमें उत्‍तर कोरिया के खिलाफ सैन्‍य कार्रवाई करने की बात कही गई थी। भारत का कहना था कि वह कोरिया को एकजुट रखने का पक्षधर है, वहीं अतिक्रमण के खिलाफ है। उत्‍तर कोरिया में सैन्‍य कार्रवाई का समर्थन करने के साथ-साथ भारत ने उस वक्‍त वहां पर मानवता के आधार पर अपने डॉक्‍टरों की पूरी टीम भेजी थी। वर्ष 1947 में भारत संयुक्‍त राष्‍ट्र द्वारा गठित उस कमीशन में भी शामिल था जिसका काम वहां पर हो रहे चुनाव की निगरानी करना था। इसके बाद 1973 में भारत ने उत्‍तर कोरिया के साथ राजनयिक संबंध कायम किए थे।

पेट्रोलियम प्रोडेक्‍ट और ऑटो पार्ट्स

हाल के कुछ वर्षों में भारत और उत्‍तर कोरिया के बीच में लगातार व्‍यापार बढ़ा है। वर्ष 2000 तक जो व्‍यापार 10 मिलियन यूएस डॉलर तक था वह 2013 तक बढ़कर करीब साठ मिलियन यूएस डॉलर हो गया था। भारत मूलत: उत्‍तर कोरिया को रिफाइंड पेट्रोलियम प्रोडेक्‍ट्स बेचता है, वहीं उत्‍तर कोरिया से भारत को ऑटो पार्ट्स और सिल्‍वर इंपोर्ट किया जाता है। भारत यहां पर इंटरनेशनल ट्रेड फेयर में भी शामिल होता रहा है। वर्ष 2010 में दोनों देशों के बीच व्‍यापार को बढ़ाने के लिए कई बैठकें भी की गई हैं।

भारत ने की कई बार मदद

भारत ने वर्ष 2002 और 2004 में उत्‍तर कोरिया को दो हजार टन के करीब खाद्यान्‍न की मदद दी थी। उस वक्‍त यहां पर अकाल की स्थिति पैदा हो गई थी। 2010 में भी भारत उत्‍तर कोरिया की मदद के लिए आगे आया था और यूएन के वर्ल्‍ड फूड प्रोग्राम के तहत करीब एक मिलियन यूएस डॉलर की 1300 टन दाल और गेहूं वहां भिजवाया था।

न्‍यूक्लियर प्रोग्राम को नहीं मिला साथ

2015 में उत्‍तर कोरिया के विदेश मंत्री रि सू योंग ने अपनी भारत यात्रा के दौरान विदेश मंत्री सुषमा स्‍वराज से मुलाकात की थी। इस दौरान उन्‍होंने अपने न्‍यूक्लियर प्रोग्राम के लिए मानवीय मदद की दरकार की थी। हालांकि पाकिस्‍तान को समर्थन के चलते इस बाबत दोनों देशों के बीच कोई समझौता नहीं हुआ था, लेकिन व्‍यापार को बढ़ाने को लेकर दोनों ने ही सहमति जताई थी।
 


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