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खांटी भारतीय हैं पूर्वोत्तर की जनजातियां

मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। पूर्वोत्तर की जिन जनजातियों को शेष भारत में चिंकी और चीनी कहकर चिढ़ाया जाता है, वे खांटी भारतीय हैं। ये अपने आप को न सिर्फ रामायण-महाभारत के पात्रों का वंशज मानती हैं, बल्कि अपने पूर्वजों की परंपराओं को जीवित भी रखे हुए हैं। सबसे पहले सूर्यदेव को प्रणाम करने वाले अरुणाचल प्रदेश की 54 जनजातियों म

By Edited By: Published: Thu, 23 Aug 2012 09:43 PM (IST)Updated: Thu, 23 Aug 2012 09:56 PM (IST)
खांटी भारतीय हैं पूर्वोत्तर की जनजातियां

मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। पूर्वोत्तर की जिन जनजातियों को शेष भारत में चिंकी और चीनी कहकर चिढ़ाया जाता है, वे खांटी भारतीय हैं। ये अपने आप को न सिर्फ रामायण-महाभारत के पात्रों का वंशज मानती हैं, बल्कि अपने पूर्वजों की परंपराओं को जीवित भी रखे हुए हैं।

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सबसे पहले सूर्यदेव को प्रणाम करने वाले अरुणाचल प्रदेश की 54 जनजातियों में से एक मिजो मिश्मी जनजाति खुद को भगवान कृष्ण की पटरानी रुक्मिणी का वंशज मानती है। दंतकथाओं के अनुसार रुक्मिणी आज के अरुणाचल क्षेत्र स्थितभीष्मकनगर की राजकुमारी थीं। उनके पिता का नाम भीष्मक एवं भाई का नाम रुक्मंगद था। जब भगवान कृष्ण रुक्मिणी का अपहरण करने गए तो रुक्मंगद ने उनका विरोध किया। दोनों में भीषण युद्ध हुआ। परमवीर रुक्मंगद को पराजित करने के लिए कृष्ण को अपना सुदर्शन चक्र निकालना पड़ा। यह देख रुक्मिणी ने कृष्ण से अनुरोध किया कि वे उनके भाई की जान न लें, सिर्फ सबक सिखाकर छोड़ दें । तब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र को रुक्मंगद का आधा मुंडन करने का आदेश दिया। सुदर्शन चक्र द्वारा किया गया रुक्मंगद का यह अ‌र्द्धमुंडन ही आज का मिलिट्री कट हेयर स्टाइल है। मिजो मिश्मी जनजाति के पुरुष आज भी अपने केश ऐसे ही रखते हैं। मेघालय की खासी जयंतिया जनजाति की आबादी करीब 12 लाख है। यह जनजाति आज भी तीरंदाजी में प्रवीण मानी जाती है। लेकिन तीरंदाजी करते समय यह अंगूठे का प्रयोग नहीं करती। इनमें से बहुतों ने एकलव्य का नाम भी नहीं सुना है। लेकिन इतना जानते हैं कि उनके किसी पुरखे ने अपना दाहिना अंगूठा गुरुदक्षिणा में दे दिया था, इसलिए तीर चलाते समय अंगूठे का उपयोग नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार नगालैंड के एक शहर दीमापुर को कभी हिडिंबापुर के नाम से जाना जाता था। यहां बहुलता में रहनेवाली दिमाशा जनजाति खुद को भीम की पत्नी हिडिंबा का वंशज मानती है। वहां आज भी हिडिंबा का वाड़ा है, जहां राजवाड़ी में स्थित शरतरंज की ऊंची-ऊंची गोटियां पर्यटकों के आकर्षण के केंद्र मानी जाती हैं। कहते हैं कि इन गोटियों से हिडिंबा और भीम का बाहुबली पुत्र घटोत्कच शतरंज खेलता था।

आज-कल चर्चा में चल रही असम की बोडो जनजाति जहां खुद को सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का वंशज मानती है, वहीं असम के ही पहाड़ी जिले कार्बी आंगलंग में रहनेवाली कार्बी जनजाति स्वयं को सुग्रीव से जोड़ती है। म्यांमार से जुड़ने वाले राज्य मणिपुर के जिले उखरूल का नाम उलूपी-कुल का अपभ्रंश माना जाता है, जो अर्जुन की एक पत्नी उलूपी से जुड़ता है। यहां बसनेवाले तांखुल जनजाति के लोग मार्शल आर्ट में प्रवीण माने जाते हैं। अपने जुझारू स्वभाव के कारण ही नगालैंड के अलगववादी गुट एनएससीएन के 40 प्रतिशत सदस्य तांखुल जनजाति के ही होते हैं। अर्जुन की दूसरी पत्नी चित्रांगदा को भी मणिपुर के ही मैतेयी समाज का माना जाता है, जो अब वैष्णव बन चुका है।

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