कांग्रेस में नए-पुराने की लड़ाई निर्णायक दौर में
कांग्रेस आलाकमान की सख्ती के बाद पार्टी में असंतोष विधानसभा चुनाव परिणाम आने तक थम गया है। मीडिया में पार्टी उपाध्यक्ष के लिए वफादारी का दम भर रहे नेताओं को मीडिया में बात न रखने की ताकीद की गई है। वही वरिष्ठ नेताओं को भी युवा सचिवों के ज्ञापन का हवाला देकर बयानों में संवेदनशीलता बरतने की हिदायत दी गई है। हालांकि, बदलाव से पहले की इस लड़ाई में कांग्रेस का अनुशासन तार-तार हो गया है।
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। कांग्रेस आलाकमान की सख्ती के बाद पार्टी में असंतोष विधानसभा चुनाव परिणाम आने तक थम गया है। मीडिया में पार्टी उपाध्यक्ष के लिए वफादारी का दम भर रहे नेताओं को मीडिया में बात न रखने की ताकीद की गई है। वही वरिष्ठ नेताओं को भी युवा सचिवों के ज्ञापन का हवाला देकर बयानों में संवेदनशीलता बरतने की हिदायत दी गई है। हालांकि, बदलाव से पहले की इस लड़ाई में कांग्रेस का अनुशासन तार-तार हो गया है।
कांग्रेस ने इस पूरे मामले को आतंरिक लोकतंत्र बताकर इसे सामान्य प्रक्रिया कहा है। पार्टी प्रवक्ता सलमान खुर्शीद ने कहा कि सचिव समय- समय पर महासचिवों को राय मशविरा देते रहते हैं, इसे इसी तरह देखा जाना चाहिए। हालांकि, उन्होंने यह कहकर कि 'एक बच्चा ही भविष्य में पिता बनता है' स्वीकार किया कि पार्टी में 'ओल्ड गार्ड' व 'न्यू गार्ड' की लड़ाई निर्णायक दौर में पहुंच गई है। पार्टी के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने भी सचिवों की राय से अपनी राय जोड़कर परिवर्तन की मांग को अपनी मांग बताया। हालांकि, कुछ समय पहले प्रधानमंत्री मोदी की उम्र से राहुल की उम्र की तुलना करते हुए मोदी के युवाओं में ज्यादा लोकप्रिय होने और राहुल की चुप्पी पर सवाल उठाया था। लोकसभा चुनावों में मिली पराजय के बाद पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी के प्रयोगों और उनकी 'टीम' को निशाना बना रहे वरिष्ठ नेताओं को घेरने निकले युवा सचिवों की बात सुनी तो गई लेकिन नसीहत के साथ। संगठन महासचिव जर्नादन द्विवेदी ने कार्यसमिति सदस्यों, पार्टी महासचिवों, अनुसांगिक संगठन के प्रमुखों, प्रदेश अध्यक्षों व राज्य विधानसभा में पार्टी नेताओं को पार्टी सचिवों के पत्र को अग्रसारित करते हुए लिखा है सार्वजनिक बातचीत में नेतृत्व को लेकर संवेदनशील रहे। द्विवेदी ने शिकायत करने वाले सचिवों को भी भविष्य में मीडिया के जरिये सलाह न देने की ताकीद भी की है। हालांकि, अमेठी में राहुल के बयान के बाद पार्टी में अंदरखाने का संघर्ष तेज हो गया है। पार्टी के युवा महासचिव अचानक पार्टी दफ्तर में न सिर्फ समय देने लगे हैं बल्कि भविष्य को लेकर जोड़-तोड़ में भी जुट गए हैं।
आलाकमान के इशारे और संगठन में होने वाले परिवर्तन के मद्देनजर सूत्रों के मुताबिक संगठन को अपने हिसाब से बदलने में जुटे राहुल ने आलोचना की परवाह न करते हुए संगठन में होने वाले चुनावों को लेकर विवादों में आए प्राईमरी प्रयोगों को जारी रखने का फैसला किया है। साल भर के भीतर होने वाले इन चुनावों में राहुल ने हर जिले में ब्लॉक चयनित कर इस प्रयोग को आजमाने का निर्णय लिया है। जाहिर है कि लोकसभा चुनावों में आलोचना के केंद्र में रही योजना को इस तरह से लागू करने को लेकर एक बार फिर विवाद होना तय है। यही नही 'टीम राहुल' की तरफ से संकेत मिले हैं कि विधानसभा चुनावों के बाद होने वाले परिवर्तन में पार्टी में राज्यों का प्रभार रखने वाले महासचिवों को लेकर उम्र सीमा तय कर दी जाएगी। जाहिर है कि राहुल इस घटनाक्रम से अविचलित हैं और अपने प्रयोगों से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।
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