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    ट्रंप-मोदी की वार्ता पर लगी नासा व इसरो के वैज्ञानिकों की नजरें

    By Sachin BajpaiEdited By:
    Updated: Mon, 26 Jun 2017 07:40 AM (IST)

    डोनाल्ड टंप का मानना है कि जलवायु परिवर्तन को लेकर सारा बखेड़ा चीन का खड़ा किया हुआ है, जिससे अमेरिकी उत्पादों को प्रतिस्पर्धा से बाहर किया जा सके। ...और पढ़ें

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    ट्रंप-मोदी की वार्ता पर लगी नासा व इसरो के वैज्ञानिकों की नजरें

    नई दिल्ली, प्रेट्र: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ पीएम नरेंद्र मोदी वार्ता करेंगे तो इसके नतीजों की सबसे ज्यादा चिंता नासा, इसरो के वैज्ञनिकों को होगी। दोनों अंतरिक्ष एजेंसियां अर्थ इमेजिंग सैटेलाइट के निर्माण की प्रक्रिया शुरू कर चुकी हैं, लेकिन उन्हें पता नहीं कि इसका भविष्य क्या होगा।

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    जलवायु परिवर्तन पर अमेरिका का रुख अलग है तो भारत इस पर अपनी अलहदा राय रखता है। अमेरिका हाल ही में जलवायु परिवर्तन को लेकर हुए पेरिस समझौते को अलविदा कह चुका है। जबकि भारत मानता है कि इसकी पालना बेहद जरूरी चीज है। डोनाल्ड टंप का मानना है कि जलवायु परिवर्तन को लेकर सारा बखेड़ा चीन का खड़ा किया हुआ है, जिससे अमेरिकी उत्पादों को प्रतिस्पर्धा से बाहर किया जा सके।

    उधर, मोदी के विचार एक पुस्तक 'कनवीनिएंट चेंज, कंटीन्यूटी फार चेंज' में पढ़े जा सकते हैं। इसमें इस मुद्दे पर उनके विचार दर्ज किए गए हैं। उधर, अमेरिका मानता है कि भारत पेरिस समझौते में महज इस वजह से बना हुआ है, क्योंकि इससे उसे विकसित देशों से भारी भरकम विदेशी सहायता मिल रही है। इस मसले पर दुनिया के सबसे पहले लोकतंत्र व सबसे बड़े लोकतंत्र में विरोधाभास है।

    अमेरिका में पासाडेना में स्थित जेट प्रोपल्सन लैब के साथ अहमदाबाद के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर के वैज्ञानिकों पर इसका असर पड़ रहा है। दोनों संयुक्त रूप से निसार नाम की सैटेलाइट के निर्माण में जुटे हैं। पासाडेना के वैज्ञानिक पाल ए रोसन का कहना है कि निसार सबसे महंगी अर्थ इमेजिंग सैटेलाइट है। पृथ्वी का अध्ययन करने में यह बेहद कारगर साबित होगी। जिस तरह से ग्लेशियर अपनी शक्ल बदल रहे हैं और आइस शीट्स लगातार यहां से वहां हो रही हैं, उसमें यह बेहद कारगर साबित हो सकती है।

    उनका कहना है कि आज जलवायु में हो रहे परिवर्तन का असर दशकों बाद पता लगेगा। उनका कहना है कि यह रडार दो फ्रीक्वेंसी पर काम करती है। 24 सेंमी के एल बैंड व 13 सेंमी के एस बैंड पर। एल बैंड का निर्माण नासा कर रही है तो दूसरे को इसरो बना रहा है। इसके जरिये सप्ताह में एक बार पृथ्वी की तस्वीरें ली जाएंगी। उनका कहना है कि इससे न केवल भूकंप व सुनामी का पता समय रहते लग जाएगा बल्कि जो बदलाव दिखाई देंगे उसके अनुसार वैश्विक स्तर पर उपाय शुरू हो सकेंगे। सब ठीक रहा तो जीएसएलवी से 2021 में भारत से इसका प्रक्षेपण करेगा, लेकिन वैज्ञानिकों को चिंता साल रही है कि ट्रंप का नजरिया इस रडार के निर्माण के उद्देश्य से लगातार भिन्न हो रहा है।