मेरी रिहाई सियासी सौदेबाजी का नतीजा नहीं: मसर्रत आलम
अपनी रिहाई से कश्मीर से लेकर नई दिल्ली की सियासत में खलबली मचाने वाले कट्टरपंथी नेता मसर्रत आलम ने शुक्रवार को कहा कि उसकी रिहाई किसी सियासी सौदेबाजी का नतीजा नहीं है। मुझे अदालत ने रिहा किया है। करीब 53 माह तक जेल में बंद रहने के बाद वर्ष 2010
जागरण ब्यूरो, श्रीनगर। अपनी रिहाई से कश्मीर से लेकर नई दिल्ली की सियासत में खलबली मचाने वाले कट्टरपंथी नेता मसर्रत आलम ने शुक्रवार को कहा कि उसकी रिहाई किसी सियासी सौदेबाजी का नतीजा नहीं है। मुझे अदालत ने रिहा किया है। करीब 53 माह तक जेल में बंद रहने के बाद वर्ष 2010 के कश्मीर में हिंसक प्रदर्शनों और गो-इंडिया-गो बैक की मुहिम के संचालक मसर्रत आलम को पिछले सप्ताह ही रिहाई मिली है।
मसर्रत ने कहा कि कल तक जो लोग कश्मीर में फर्जी मुठभेड़ों से इन्कार करते थे, अब वह भी मानते हैं कि कश्मीरी नौजवानों को पकड़ कर फर्जी मुठभेड़ में कत्ल किया जाता है। पूर्व एसपी आशिक हुसैन बुखारी का बयान इसकी तस्दीक करता है।
उन्होंने बताया है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि आलम को जिंदा पकड़ने की क्या जरूरत थी। उमर के इस बयान से उसकी दिमागी हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है। आलम ने कहा कि उमर अब्दुल्ला का यह कहना गलत है कि पीडीपी के साथ मेरी रिहाई के लिए सौदेबाजी हुई है। मुझे अवैध तरीके से हिरासत में रखा गया था। मैंने अदालत में अपनी हिरासत को चुनौती दी थी।
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