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    मुजफ्फरनगर के दंगों ने बिगाड़ा सपा का सियासी जायका

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    Updated: Wed, 18 Sep 2013 11:34 AM (IST)

    लखनऊ [जागरण ब्यूरो]। सियासी दांव-पेंच के खेल में मुजफ्फरनगर के दंगों ने समाजवादी पार्टी की बुनियाद को हिला दिया है। सूबे में हालात कुछ ऐसे बन गए हैं कि अब समाजवादी पार्टी और मुसलमानों के बीच रिश्ते की समीक्षा शुरू हो गई है। जाहिर है लोक सभा चुनाव नजदीक है, ऐसे में इस वर्ग को साथ रखना सपा नेतृत्व के लिए चुनौती भरा हो गया है।

    लखनऊ [जागरण ब्यूरो]। सियासी दांव-पेंच के खेल में मुजफ्फरनगर के दंगों ने समाजवादी पार्टी की बुनियाद को हिला दिया है। सूबे में हालात कुछ ऐसे बन गए हैं कि अब समाजवादी पार्टी और मुसलमानों के बीच रिश्ते की समीक्षा शुरू हो गई है। जाहिर है लोक सभा चुनाव नजदीक है, ऐसे में इस वर्ग को साथ रखना सपा नेतृत्व के लिए चुनौती भरा हो गया है।

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    'दंगों के लिए आजम खां भी जिम्मेदार'

    दरअसल, विधानसभा चुनावों में मुसलमानों का तकरीबन एकमुश्त वोट सपा के पक्ष में गया था। जिसे पार्टी ने खुले मंचों से स्वीकारा भी, मगर समाजवादी सरकार बनते ही प्रतापगढ़, कोसीकलां, गाजियाबाद समेत तकरीबन 30 स्थानों पर बड़े सांप्रदायिक उपद्रव हुए, जिसके दंश से सपा और मुसलमानों के रिश्तों पर 'चोट' पहुंची। फिर भी उम्मीद बनी रही कि सरकार उपद्रवियों से सख्ती से निपटेगी। लेकिन, अब मुजफ्फरनगर के दंगों से इस रिश्ते में न सिर्फ अविश्वास पैदा हो गया है, बल्कि मुसलमानों के अलंबरदारों में सपा को समर्थन को लेकर मतभेद भी उभर कर समाने आ रहे हैं।

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    हालात यहां तक पहुंच गए कि पिछले दिनों मुसलमानों का एक दल सपा के खिलाफ शिकायतों को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी मिल चुका है। जिसका नकारात्मक संदेश अल्पसंख्यक समुदाय में जाना काफी अहम माना जा रहा है। वहीं, सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में एक रोड शो के दौरान शिया धर्म गुरु मौलाना कल्बे जव्वाद ने यहां तक कह दिया था कि दंगे नहीं रुके तो सपा को सत्ता से हटा दिया जाएगा। जमीयत अहले हदीस के पूर्व सदर मौलाना अब्दुल वहाब खिलजी कहते हैं कि मुजफ्फरनगर दंगों के असली मुजरिम अब तक गिरफ्तार नहीं हुए। वह खुलेआम घूम रहे हैं। वह सवाल उठाते हैं कि राम विलास वेदांती, कट्टर हिंदूवाद के अगुवा अशोक सिंहल से मुख्यमंत्री और सपा प्रमुख की मुलाकात का सबब क्या था? उसके बाद ही चौरासी कोसी परिक्रमा का एलान, यह संकेत है कि सरकार की नियत ठीक नहीं है। वहीं कुछ का मानना है कि सपा ने यूपी में गैरकांग्रेस, गैरभाजपा सरकार बनाने का नारा दिया है, लिहाजा वह दूसरे धर्मनिरपेक्ष दलों को सियासी संघर्ष से बाहर करने के लिए भाजपा व विहिप के साथ चुनावी 'मैच फिक्स' करने में जुटी है। मुस्लिम पॉलिटिकल काउंसिल के अध्यक्ष डॉ. तसलीम अहमद रहमानी का मानना है कि मुस्लिमों में मायूसी है। कांग्रेस से तो निराशा थी ही और अब सपा ने भी निराश कर दिया है। लोकसभा चुनावों में सपा के साथ खड़े रहने का एलान कर चुके इत्तिहाद मिल्लत के मौलाना तौकीर रजा कहते हैं कि सरकार मुजफ्फरनगर में मुसलमानों पर जुल्म रोकने में नाकाम रही है। कुछ उलमा तो यहां तक कहने लगे हैं कि सपा खुद को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित करने की होड़ में मुसलमानों से किए वादों से मुकर रही है, वह कांग्रेस की तरह 'यथास्थितिवाद' की राह पर चल निकली है। ऐसे में मुसलमानों का साथ छूट जाए तो आश्चर्य नहीं होगा।

    अल्पसंख्यकों के शैक्षिक उत्थान के लिए कार्यरत समाजसेवी अतहर हुसैन का कहना है कि सपा की धर्म निरपेक्षता पर शक नहीं है। लेकिन, फासिस्ट ताकतें इतनी हावी किसकी वजह से हो गई? यह तो मुसलमानों को सोचना भी होगा।

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