दंगा पीड़ितों का पहाड़ सा दर्द और 'सरकार' के नौ मिनट?
मन में दंगे के जख्म और जेहन में खौफनाक मंजर की तस्वीरें। बेबसी और बेहाली इतनी कि उन्हें तिनका भी 'पतवार' लगने लगा है। शायद कहीं से मदद मिले..कोई आकर भरोसा दिला दे.। कुछ यही हाल था इन मुजफ्फरनगर में दंगा पीड़ितों का। उम्मीदों का दामन थामे इन बेबसों को लगा था कि आज 'सरकार' खुद चलकर आई है तो अपनी बात कहेगी और उनका दर्द सुनेगी। कोई अपनी भूख के मायने समझाना चाहता था तो कोई छत का अर्थ, लेकिन पूरा काफिला महज नौ मिनट में सैकड़ों लोगों की बात सुनकर रुख्सत हो गया।
मुजफ्फरनगर [योगेश प्रताप चौहान]। मन में दंगे के जख्म और जेहन में खौफनाक मंजर की तस्वीरें। बेबसी और बेहाली इतनी कि उन्हें तिनका भी 'पतवार' लगने लगा है। शायद कहीं से मदद मिले..कोई आकर भरोसा दिला दे.। कुछ यही हाल था इन मुजफ्फरनगर में दंगा पीड़ितों का। उम्मीदों का दामन थामे इन बेबसों को लगा था कि आज 'सरकार' खुद चलकर आई है तो अपनी बात कहेगी और उनका दर्द सुनेगी। कोई अपनी भूख के मायने समझाना चाहता था तो कोई छत का अर्थ, लेकिन पूरा काफिला महज नौ मिनट में सैकड़ों लोगों की बात सुनकर रुख्सत हो गया।
मुजफ्फरनगर में खुलीं कर्फ्यू की बेड़ियां
कोई दंगाइयों से खौफजदा है तो कोई इस वजह से कि कहीं अगला निशाना वे ही न बन जाएं। शाहपुर क्षेत्र के गांव तावली में बने राहत शिविर में कई गांवों के पीड़ित रह रहे हैं। इस शिविर में सोमवार को प्रधानमंत्री, राज्यपाल समेत कांग्रेस के आला नेता पहुंचे थे। जबसे लोगों ने प्रधानमंत्री के आने की बात सुनी थी, मातम में डूबा शिविर उम्मीदों की रोशनी से नहा उठा था। लगा था प्रधानमंत्री से दिल की बात कह देंगे। कुछ बात रखेंगे तो कुछ वे हमारी सुनेंगे। सोमवार को प्रधानमंत्री, राज्यपाल बीएल जोशी, कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के शिविर में पहुंचने से पहले ही लोग शिविर पंडाल में बैठ गए। किसी के हाथ में कागज था तो कोई मौखिक रूप से अपनी बात कहने को तैयार था।
बड़े नेता, बड़ी बात
नेताओं का काफिला ठीक 11.13 बजे पहुंचा। कैंप के अंदर दाखिल हुआ। इसी के साथ वहां मौजूद लोगों के चेहरे पर उम्मीद की एक किरण तैर गई। दिल की बात जुबां पर रख ली थी ताकि मुखातिब होते ही दर्द बयानी कर सकें। सबसे आगे कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी और उनके राहुल गांधी थे। बाकी लोग पीछे थे। सोनिया और राहुल ने पहले पुरुष कैंप में कुछ लोगों का हालचाल जाना। आगे बढ़ते हुए बातें करने लगे। इस कैंप पर उन्होंने 3-4 मिनट लगाए। एक दो लोगों ने मांगपत्र दिया, जिसे जेब में रख लिया। इसके बाद दो-तीन मीटर के फासले पर बने महिला कैंप की ओर मुड़े। यहां भी सभी ने अपने तरीके से महिलाओं से बातचीत की। बातचीत का मौका उन्हीं लोगों को मिला, जो बैरीकेडिंग से चिपके खड़े थे। समय की कमी के चलते बाकी लोग अपनी बात कह न सके। इसके बाद वे 11.22 बजे कैंप से बाहर निकल लिए। गाड़ियां स्टार्ट हुई और काफिला धूल उड़ाता वापस चल पड़ा।
पीड़ितों ने पीएम को सुनाई खौफनाक दास्तां
गिनती के डग भरे
जहां कार्यक्रम रखा था, जगह बेहद छोटी थी। इसे दो हिस्सों में बांटकर दोनों तरफ टेंट लगाए थे। बीच में निकलने का रास्ता था। गेट से महिला कैंप के आखिरी छोर की लंबाई 15 मीटर से अधिक नहीं होगी। दूसरे कैंप की दूरी भी इतनी ही थी। इस हिसाब से वह कैंप के अंदर 35-40 मीटर से ज्यादा नहीं चले होंगे।
दिल की बात दिल में अटकी
काफिला निकलने के बाद यहां मौजूद महिला चांदो को मलाल है, बोली कि बहुत कुछ बताना चाहती थी, लेकिन मौका ही नहीं मिल पाया। कई अन्य पीड़ितों ने कहा, सब कुछ तैयारी थी। अगर थोड़ा सा वक्त दे देते तो हो सकता है हमारा दर्द ऊपर तक पहुंच जाता। कई लोगों की समस्या पुनर्वास की थी।
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