इंसानियत की मिसाल, कश्मीरी पंडित के दाह संस्कार के लिए मुस्लिमों ने की मदद
कश्मीर में 1989 में आतंकवाद के शुरू होने के साथ ही अल्पसंख्यक पंडितों को वादी से पलायन करना पड़ा। पंडितों के साढे़ तीन हजार परिवारों ने पलायन नहीं किया।
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। सदियों पुरानी कश्मीरियत की परंपरा को जिहादी चाहे जितना भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश करें, लेकिन जब किसी के लिए दुख की घड़ी आती है तो सभी एक हो जाते हैं। शुक्रवार को श्रीनगर के हब्बाकदल में ऐसा ही कुछ हुआ। एक कश्मीरी पंडित महिला की मौत की खबर जैसे ही फैली स्थानीय मुस्लिम भी पीडि़त परिवार के पास पहुंच गए। सिर्फ दुख जताने नहीं बल्कि दाह संस्कार के लिए यथासंभव मदद करने।
कश्मीर में 1989 में आतंकवाद के शुरू होने के साथ ही अल्पसंख्यक पंडितों को वादी से पलायन करना पड़ा। पंडितों के साढे़ तीन हजार परिवारों ने पलायन नहीं किया। हब्बाकदल कभी कश्मीरी पंडितों का इलाका माना जाता रहा है, जहां अब सात-आठ परिवार ही रहते हैं। इनमें राज पारिमू का परिवार भी है। उसका भाई उसके साथ ही रहता है। उसकी एक बहन सुषमा जो अविवाहित थी, को कुछ दिन पहले ब्रेन हेमरेज हो गया। वादी में हड़ताल चल रही थी। अस्पताल पहुंचना मुश्किल था।
स्थानीय निवासी मुबारक अहमद ने कहा कि हमें जैसे ही पता चला कि सुषमा को अटैक हुआ है, हमने उसे अस्पताल पहुचंाने का प्रयास किया। हमने अथ्रोट एनजीओ से संपर्क किया। उसकी एंबुलेंस से अस्पताल पहुंचाया। शुक्रवार सुबह उसकी अस्पताल में मौत हो गई। दिवंगत के पड़ोसी संजय टिक्कू ने कहा कि सुषमा की मौत पर पूरा मुहल्ला जमा हो गया। यहां सभी मिलकर रहते हैं। स्थानीय मुस्लिम पड़ोसियों ने दिवंगत के दाह संस्कार के प्रबंध में हमारी पूरी मदद की।
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