इस स्कूल में बच्चों का बेहोश होना बन गया है रुटीन
डंपिंग ग्राउंड और छविंद्र म्यूनिसपल स्कूल के बीच 100 मीटर का फासला है लेकिन स्कूल में गंदगी ने इस तरह अव्यवस्था फैला दी है कि हर दिन बच्चों का बेहोश होना रुटीन बन गया है।
मुंबई (मिड डे)। स्कूल के नजदीक पहुंचते ही छाया (बदला हुआ नाम) अपने बैग से प्लास्टिक का कवर निकाल कर सिर पर डाल लेती है ताकि वहां फैले कचड़े से आते तेज बदबू से बच सके। बच्ची को प्लास्टिक कवर के अंदर से रास्ता देखने में परेशानी होती है लेकिन वह ऐसा करने को मजबूर है क्योंकि जगह जगह फैले कचड़े और कीचड़ से आती तेज दुर्गंध उसके पास न पहुंचे। केवल सड़क ही नहीं बल्कि स्कूल पहुंचने पर, अपने प्लास्टिक के कवर को निकाल तो देती है लेकिन उसे अनगिनत मक्खियों का सामना करना पड़ता है।
ठाणे से 20-25 किमी की दूरी पर भिवंडी स्थित चविंद्र गांव के छाया समेत 814 विद्यार्थियों को स्कूल जाते हुए नियमित रूप से ऐसी ही तेज दुर्गंध और गंदगी का सामना करना पड़ता है। गांव का यह एकमात्र म्युनिसिपल स्कूल डंपिंग ग्राउंड से 100 मीटर की दूरी पर है। इस डंपिंग ग्राउंड में गांव की 10 लाख जनसंख्या का पूरा कूड़ा जमा होता है।
पैरेंट्स का आरोप है कि डंपिंग ग्राउंड से हमेशा कूड़ा भरे ट्रक का आना जाना बच्चों के लिए खतरनाक है।
20 साल पहले ही स्कूल की स्थापना हुई थी, अब अपने छात्रों के साथ स्कूल भी गंदगी का शिकार हो गया है। नाले से कचड़ा निकलकर बाहर स्कूल के प्रांगण में आ गया है। हर तरु मच्छरों और मक्खियों का बोलबाला है। कभी-कभार ही यहां सफाई की जाती है और कुछ क्लासरूम में ही लाइट्स काम करते हैं।
इस गंदी व्यवस्था के कारण छात्रों का स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुआ है। अधिकांश शिकायतों में कफ, सांस लेने में परेशानी और वायरल इंफेक्शन है। कक्षा दो में पढ़ रहे छात्र की मां, सारिका सावंत ने कहा, ‘उनकी सात वर्षीय बेटी हफ्ते में एक बार जरूर बीमार होती है। मेरे दो बच्चे पैतृक गांव सतारा में पढ़ते हैं। मेरी बेटी का नामांकन यहां कक्षा 1 में हुआ था। इस साल के बाद उसका नामांकन भी गांव के स्कूल में करा दूंगी।‘
पानी न होने के कारण स्कूल के वॉश बेसिन का उपयोग नहीं किया जाता है।
35 वर्षीय नागेश बालाराम भोइर के पास कक्षा 3 और कक्षा 1 में पढ़ने वाले बेटों राकेश और राहुल को कहीं और भेजने का कोई साधन नहीं। नागेश ने कहा, हमें स्कूल के इस व्यवस्था के बारे में पता है लेकिन यहां आस-पास में कोई किफायती स्कूल नहीं है। या तो स्कूल को कहीं और शिफ्ट कर दिया जाना चाहिए या फिर डंपिंग ग्राउंड को।
यहां के टॉयलेट्स भी शिक्षकों के लिए रिजर्व है और छात्र छात्राओं को बाहर जाना होता है। स्कूल के दौरान कक्षा दो के छात्र को बेहोश देखा गया और उसे घर भेज दिया गया। हर दिन कोई न कोई छात्र या छात्रा बेहोश होता है और उसे घर भेज दिया जाता है।
स्कूल के एक स्टाफ ने कहा कि स्कूल में जमा होने वाले कचड़े की वजह से हमने नालों को ढक दिया था लेकिन मानसून के दौरान यह काम नहीं कर पा रहा है। साथ ही उन्होंने कहा कि म्युनिसिपल अधिकारियों ने इस मानसून स्प्रे और कीटनाशक का छिड़काव भी नहीं कराया है। इस मामले पर बात करने से स्कूल के प्रिंसिपल ने इंकार कर दिया।
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