यूपी के लिए केंद्र ने दिखाई दरियादिली
नई दिल्ली [राजकेश्वर सिंह]। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस को राज्य में अब सपा की मदद में ही अपना भविष्य दिख रहा है। राष्ट्रपति चुनाव के बहाने समाजवादी पार्टी के साथ परवान चढ़ी उसकी दोस्ती अब केंद्र सरकार के जरिए उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार तक पहुंच गई है। आलम यह है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव तक जो कांग्

नई दिल्ली [राजकेश्वर सिंह]। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस को राज्य में अब सपा की मदद में ही अपना भविष्य दिख रहा है। राष्ट्रपति चुनाव के बहाने समाजवादी पार्टी के साथ परवान चढ़ी उसकी दोस्ती अब केंद्र सरकार के जरिए उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार तक पहुंच गई है। आलम यह है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव तक जो कांग्रेस सपा की राह रोकने के लिए सब कुछ करने पर आमादा थी, अब उसी की केंद्र सरकार को अखिलेश के मुख्यमंत्री रहते उत्तर प्रदेश की ही तरक्की में देश का विकास दिखने लगा है।
केंद्र की नजर में अखिलेश यादव की सरकार की क्या अहमियत है? नमूना देखिए। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया के मुताबिक 12वीं योजना में देश की विकास दर के लक्ष्य को हासिल करने के लिए उत्तार प्रदेश का विकास जरूरी है। उसका प्रदर्शन 12वीं योजना के नतीजों पर असर डालेगा। यह बात तो बुधवार की है, जब उत्तर प्रदेश की वार्षिक योजना को मंजूरी के दौरान मोंटेक ने मुख्यमंत्री की मौजूदगी में प्रदेश के आला अधिकारियों को यह संदेश दिया। जबकि, दस जुलाई को प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव पुलक चटर्जी केंद्र व प्रदेश के डेढ़ दर्जन अफसरों के साथ लगभग साढ़े तीन घंटे की बैठक में उन सभी मामलों में केंद्रीय मदद का रास्ता साफ कर चुके थे, जिन्हें मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को लिखे 38 पत्रों में उठाया था।
सूत्रों के मुताबिक, यह सब यूं ही नहीं है। कांग्रेस उत्तार प्रदेश में बहुत कुछ खोने के बाद भी कम से कम सोनिया की रायबरेली व राहुल की अमेठी में अपनी राजनीतिक जमीन बचाए रखना चाहती है। बीते विधानसभा चुनाव में रायबरेली में कांग्रेस का सफाया हो गया, जबकि अमेठी में भी सपा तीन सीटें जीत गई। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस इसे 2014 के लोकसभा चुनाव में और खतरे के रूप में देख रही है। लिहाजा वह प्रदेश में अपनी राजनीतिक नफा-नुकसान की गणित अभी से लगाकर चल रही है।
सूत्र बताते हैं कि सपा के चुनावी वादों को पूरा करने के मद्देनजर अखिलेश सरकार को केंद्रीय मदद की दरकार के बावजूद पार्टी के प्रमुख नेता भी कांग्रेस के इस रुख से वाकिफ हैं। फिर भी इस लेन-देन में दोनों पक्षों को फिलहाल कोई नहीं दिख रहा है। बताते हैं कि दोस्ती की इस संवेदनशीलता को बनाए रखने के लिए ही सपा ने जिताऊ लोकसभा प्रत्याशी की तलाश के लिए अपने पर्यवेक्षक को रायबरेली भेजने का फैसला महज 24 घंटे में ही टाल दिया। उम्मीद है कि कांग्रेस और सपा में दिल्ली से उत्तार प्रदेश तक एक दूसरे की मदद का यह सिलसिला लोकसभा चुनाव तक चलता रहेगा।
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