अटल जैसी नहीं हो सकती मोदी की छवि
कभी नरेंद्र मोदी के विकास मॉडल की प्रशंसा, तो कभी 2002 के दंगों में उन्हें मिली क्लीनचिट का समर्थन। कभी राजग में शामिल होने की अफवाहें तो कभी मोदी को मानसिक रोगी करार देना। कृषि मंत्री शरद पवार वही करने के लिए जाने जाते हैं, जिसके लिए वह बार-बार इन्कार करते रहे हों। मुंबई ब्यूरो प्रमुख ओमप्रकाश तिवारी से श
कभी नरेंद्र मोदी के विकास मॉडल की प्रशंसा, तो कभी 2002 के दंगों में उन्हें मिली क्लीनचिट का समर्थन। कभी राजग में शामिल होने की अफवाहें तो कभी मोदी को मानसिक रोगी करार देना। कृषि मंत्री शरद पवार वही करने के लिए जाने जाते हैं, जिसके लिए वह बार-बार इन्कार करते रहे हों। मुंबई ब्यूरो प्रमुख ओमप्रकाश तिवारी से शरद पवार की बातचीत के अंश..
आपने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा है कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी स्वीकार्य नहीं हो सकते। ऐसा क्यों?
मेरा अनुमान है कि चुनाव के बाद देश में सबसे ज्यादा सीटें लाने वाली दो ही पार्टियां होंगी। एक कांग्रेस और दूसरी भाजपा, लेकिन ये दोनों अपने बलबूते पर सरकार बनाने लायक आंकड़ा नहीं जुटा पाएंगी। जब इन दोनों दलों को सरकार बनाने के लिए अन्य दलों की जरूरत पड़ेगी तो पहले वाजपेयी सरकार में शामिल रहे तृणमूल कांग्रेस जैसे दल शायद इस बार मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के साथ जाना पसंद नहीं करेंगे। एक तो तृणमूल की पृष्ठभूमि कांग्रेसी है। दूसरे पश्चिम बंगाल में उन्हें पसंद करने वाले 25 फीसद से ज्यादा अल्पसंख्यकों को वह नाराज नहीं करना चाहेंगे। दक्षिणी राज्यों में भी कई दल हैं जो भाजपानीत सरकार के बजाय कांग्रेसनीत सरकार में जाना पसंद करेंगे। वाम दल पहले ही संप्रग सरकार को समर्थन देते रहे हैं। जब उनके सामने मोदी के नेतृत्व और किसी अन्य दल के नेतृत्व में एक को चुनने की बारी आएगी तो निश्चित रूप से वह मोदी से अलग रहना ही पसंद करेंगे।
वाजपेयी के नेतृत्व में 24 दलों की सरकार चली थी। इस बार तो चुनावपूर्व ही 25 दलों का गठबंधन बन चुका है। ये कैसे कहा जा सकता है कि लोग मोदी से दूरी रखना चाहते हैं?
जो प्रधानमंद्दी बनना चाहता है, उस पर देश के लोगों का भरोसा होना चाहिए। हिंदू, मुस्लिम, ईसाई सभी वर्गोको यह भरोसा होना चाहिए कि जो देश चलाने वाला है, वह धर्मनिरपेक्ष मानसिकता वाला है। मुझे लगता है कि अल्पसंख्यकों में ऐसा विश्वास मोदी के बारे में नहीं है। वाजपेयी जी की भाषा सभ्यता वाली थी। विपक्ष के लिए भी जब वह बोलते थे, तो उनकी भाषा मर्यादित होती थी। जो छवि अटल जी की थी, मुझे यह स्वीकार करना मुश्किल होगा कि वही छवि मोदी जी की भी हो सकती है।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के चुनाव में जिस प्रकार कमर के नीचे वार करने की होड़ लग गई है, उसे किस रूप में देखते हैं आप?
इसकी शुरुआत भी सबसे पहले मोदी ने ही की। ये तो मानना पड़ेगा कि सबसे पहले चुनाव प्रचार मोदी जी ने ही शुरू किया। उन्होंने पहले दिन से सोनिया गांधी और राहुल गांधी को निशाना बनाना शुरू कर दिया था उन्होंने। राहुल को शहजादा कहना शुरू किया। फिर लोगों ने इसका जवाब देना शुरू किया तो अब कटुता बढ़ती जा रही है। उनका यह कहना भी देश के एक बड़े वर्ग को बहुत बुरा लगा कि देश को कांग्रेसमुक्त बनाना है। इस देश में कई राजनीतिक दल ऐसे हैं, जिनकी मूल विचारधारा कांग्रेसी रही है। जैसे मैंने अलग दल बना लिया, लेकिन हमारी मूल विचारधारा तो कांग्रेसी ही रही है। लोग भले ही स्थानीय स्तर पर कांग्रेस के खिलाफ हों, लेकिन एक देश का इतिहास रही एक विचारधारा को ही खत्म करने की बात करना बहुत से लोगों को बुरा लगा है। वाजपेयी जी ऐसा कभी नहीं कर सकते थे। आज नहीं तो कल सभी राजनीतिक दलों को एक साथ बैठकर सोचना पड़ेगा कि यह रास्ता ठीक नहीं है। लोग इसे स्वीकार नहीं करेंगे।
केंद्र के खिलाफ सबसे ज्यादा गुस्सा महंगाई से है। 10 वर्ष कृषि मंत्री रहकर भी आप महंगाई कम क्योंनहीं कर सके?
ये बात सही है कि दाल, चावल आदि खाद्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ गई। लेकिन ये हमारा एकमत से लिया गया निर्णय था, ताकि किसानों को उनकी उपज की अच्छी कीमत मिल सके। किसानों को सही कीमत दिलाने के लिए हमें महंगाई बढ़ानी पड़ी।, लेकिन गरीबों पर महंगाई का असर न हो, इसके लिए खाद्य सुरक्षा बिल लाया गया। इसकेतहत दो रुपये किलो गेहूं और तीन रुपये किलो चावल दिया जा रहा है। इस प्रकार गरीबों और किसानों दोनों के हितों की रक्षा की है हमने।
उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्य आर्थिक दृष्टि से कमजोर माने जाते हैं। एक कृषि मंत्री के रूप में आपने इन राज्यों को क्यादिया?
एक समय ऐसा था कि गेहूं उत्पादन में पंजाब-हरियाणा, चावल उत्पादन में आंध्र प्रदेश और गन्ना उत्पादन में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का नाम लिया जाता था। आज मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ गेहूं उत्पादन में आगे हैं। ओडिशा, असम और पश्चिम बंगाल में धान की पैदावार अच्छी हो रही है। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार से हमें गेहूं व धान मिलने लगा है। हमने वहां इन अनाजों की खरीद के लिए केंद्र शुरू किए, जिससे किसानों को सही दाम मिले और वह पैदावार बढाने पर ध्यान दें।
नरेंद्र मोदी का आरोप है कि आपके अपने राज्य महाराष्ट्र के कपास किसानों को गुजरात जाना पड़ रहा है?
इसका उलटा हो रहा है। गुजरात से काठियावाड़ी गायों के झुंड महाराष्ट्र में घुसकर हमारी फसलें चर जाते हैं तो हमारे किसान पूछते हैं कि जब गुजरात इतना विकसित है, तो मोदी अपना ये गुजरात मॉडल यहां क्योंभेज देते हैं।
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