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मोदी के निशाने पर यूपी के सियासी समीकरण

हवा का रुख बदल रहा है ..यह नरेंद्र मोदी के अल्फाज थे। हवा का रुख किस तरह मुड़ रहा है? इसका जवाब उन्होंने जनता से लिया। जनता ने शोर मचाकर कहा दिल्ली की ओर। मोदी को तो बस इसी शोर की जरूरत थी।

By Edited By: Published: Fri, 24 Jan 2014 03:50 AM (IST)Updated: Fri, 24 Jan 2014 03:55 AM (IST)
मोदी के निशाने पर यूपी के सियासी समीकरण

गोरखपुर, उमेश शुक्ल। 'हवा का रुख बदल रहा है' ..यह नरेंद्र मोदी के अल्फाज थे। हवा का रुख किस तरह मुड़ रहा है? इसका जवाब उन्होंने जनता से लिया। जनता ने शोर मचाकर कहा दिल्ली की ओर। मोदी को तो बस इसी शोर की जरूरत थी। गोरखपुर की विजय शंखनाद रैली में मोदी ने यह जताने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि केंद्र में बदलाव की बयार उनके नेतृत्व में बह चुकी है, उन्हें तो इसमें पूर्वाचल का साथ चाहिए।

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मोदी से पहले भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने जब पूर्वाचल की चर्चा छेड़ी तो उनका लक्ष्य गोरखपुर क्षेत्र की 13 लोकसभा सीटों को साधने का था। इस क्षेत्र में 1998 में भाजपा ने 7 सीटें जीती थी, जबकि उसकी सहयोगी समता पार्टी के खाते में दो सीटें गई थीं। उसके बाद पार्टी इस कामयाबी को दोहरा नहीं सकी। पार्टी का लक्ष्य इन सीटों पर दोबारा परचम लहराने का है। इसीलिए मोदी ने उत्तार प्रदेश की चुनौतियों का जिक्र करते हुए इस अंचल की उन समस्याओं पर फोकस किया जिससे विकास की गति ठहरी हुई है।

उत्तार प्रदेश की सियासत में जातियों का समीकरण क्या है इसे मोदी बखूबी समझते हैं। इसीलिए उन्होंने दलितों, शोषितों के पिछड़ेपन का मुद्दा उठाकर बसपा के साथ सपा के वोट बैंक को साधने की कोशिश की। मोदी का बार-बार दलित-शोषित और पीड़ित शब्दों का प्रयोग करना भी गहरे निहितार्थ वाला है। दरअसल मोदी जानते हैं कि यूपी खासकर पूर्वाचल में दलित-शोषित और पीड़ित का मतलब क्या होता है। इसी बहाने उन्होंने बसपा के वोट बैंक को साधने की भी ललक दिखाई।

मोदी ने अपने भाषण में राष्ट्रीय मुद्दों को तो जगह दी ही, प्रादेशिक और बेहद स्थानीय मुद्दों को उठाकर लोगों के स्वाभिमान को जगाने की कोशिश भी की। इसके जरिये वह उस खोई जमीन को लोकसभा चुनाव में वापस पाना चाहते हैं, जो कभी नब्बे के दशक में भाजपा की हुआ करती थी। प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण होने के बावजूद विपन्नता, प्रतिभा पलायन, खाद कारखाने में लंबे समय से तालाबंदी, बदहाल शिक्षा व्यवस्था सहित अनेक मुद्दों के जरिये मोदी ने लोगों का ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास किया जो नये नहीं थे, लेकिन मोदी के मंच से उन्हें स्वर मिलना नया था।

मोदी ने सबसे पहले हाथ रखा जनता की सबसे दुखती रग बिजली कटौती पर। बिजली का संदर्भ सामने रखकर उन्होंने मुलायम सिंह पर भी हमला बोला। बिजली के बाद मोदी बेरोजगारी और खेती-किसानी के मुद्दे पर आए। विशेषज्ञ के अंदाज में किसानों को तीन तरह से खेती करने की बात समझाकर बताने की कोशिश की कि यदि सरकार किसानों को सुविधाएं दे और उत्साहित करे तो यहां खेती के जरिये आर्थिक तरक्की का सपना सच हो सकता है। खाद कारखाने की बंदी का जिक्र कर मोदी ने इस मुद्दे को फिर जिंदा करने की कोशिश की।

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अब तक नरेंद्र मोदी अपनी चुनावी रैलियों में केंद्र की यूपीए सरकार की नाकामी पर फोकस करते रहे हैं, मगर उत्तार प्रदेश की गोरखपुर रैली में उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से भी राहुल और सोनिया का जिक्र नहीं किया। स्थानीय शासन की नाकामी पर ही उनका फोकस अधिक रहा। केंद्र पर शुरुआती भाषण में तंज किया, मगर वह परंपरागत टेक था। उन्होंने खुद को गरीबी को समझने वाला बताकर यह समझाने की कोशिश की कि चाय वाले का मजाक उड़ाकर कांग्रेस गरीबों का मजाक उड़ा रही है। केंद्र की सियासत में सपा और बसपा को कांग्रेस की ही सहयोगी बताकर यह संकेत दिया कि उनके साथ जाने का मतलब है कांग्रेस को ही समर्थन देना।

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