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    कश्मीर में भी मोदी चुनावी मुद्दा

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    Updated: Tue, 25 Mar 2014 01:59 AM (IST)

    सर्द हवाओं के बीच राज्य में चढ़ रहे सियासी बुखार की गर्मी इस बार सबसे अलग है। न स्वायत्ता का शोर है, न सेल्फ रूल का हंगामा और न ही धारा 370 को भंग करन ...और पढ़ें

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    जम्मू [नवीन नवाज]। सर्द हवाओं के बीच राज्य में चढ़ रहे सियासी बुखार की गर्मी इस बार सबसे अलग है। न स्वायत्ता का शोर है, न सेल्फ रूल का हंगामा और न ही धारा 370 को भंग करने का खुमार। प्रदेश में सभी सियासी दल इस बार परंपरागत मुद्दों की सियासत से बच रहे हैं। यहां चुनाव पूरी तरह मोदी बनाम अन्य हो चुका है।

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    दिसंबर में जब नरेंद्र मोदी की जम्मू में रैली हुई थी तब यह तय माना जा रहा था कि नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) स्वायत्ता पर और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) सेल्फ रूल पर राज्य में विशेषकर कश्मीर में और जम्मू संभाग के ऊपरी मुस्लिम बहुल इलाकों में मतदाताओं को रिझाने का प्रयास करेगी। दोनों पार्टियां धारा 370 के भंग होने का भय मतदाताओं को दिखाएंगी, जबकि कांग्रेस बीच का कोई रास्ता निकालते हुए भाजपा को देश का सबसे बड़ा शत्रु करार देगी।

    चुनावों का शंखनाद होने के बाद भाजपा कहीं भी पुराने नारे लगाती दिखाई नहीं दे रही है। नेकां ने भी धारा 370 के खिलाफ या स्वायत्ता का कोई ज्यादा हंगामा नहीं किया। पीडीपी के संरक्षक मुफ्ती मुहम्मद सईद भी सेल्फ रूल के सवाल पर शोर नहीं मचा रहे हैं।

    नेकां पूरी तरह संप्रग के साथ खड़ी है। पीडीपी और भाजपा अलग-अलग अपने-अपने बूते मैदान में हैं। कांग्रेस और नेकां मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। वर्ष 2009 के संसदीय चुनावों में पीडीपी और भाजपा की उम्मीदों के विपरीत करारी शिकस्त हुई थी।

    राज्य में वह युवा मतदाता आज हताश हैं, जिन्होंने 2008 के विधानसभा चुनावों में और उसके बाद 2009 के संसदीय चुनावों उमर और राहुल की जोड़ी से एक नए दौर की शुरुआत की उम्मीद में वोट किया था। सत्तासीन कांग्रेस-नेकां का गठबंधन अपनी जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं है। भ्रष्टाचार, लगातार बिगड़ती कानून व्यवस्था, अफस्पा पर किसी तरह की पहल न होना, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के लिए इन चुनावों में चिंता का सबसे बड़ा कारण हैं। यही कारण है कि नव अक्षय ऊर्जा मंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद को मैदान में उतारना पड़ा है।

    कांग्रेस और भाजपा स्वायत्तता, सेल्फ रूल, धारा 370 पर इस बार यहां लगभग चुप हैं। नेकां और पीडीपी कहीं भी कांग्रेस व भाजपा के खिलाफ स्पष्ट तौर पर कोई अभियान नहीं चला रही हैं, लेकिन मोदी को जरूर निशाना बनाया जा रहा है। ऐसा लग रहा है कि जैसे यह चुनाव नरेंद्र मोदी बनाम अन्य हो चुका है। भाजपा भी अपने प्रत्याशियों का नहीं बल्कि मोदी का ही प्रचार कर रही है।

    भाजपा और कांग्रेस दोनों को उम्मीद है कि चुनावों के बाद अगर उन्हें नेकां या पीडीपी से सहयोग लेना पड़ा तो उस समय धारा 370 से लेकर स्वायत्ता व अफस्पा और सेल्फ रूल की बात उठ सकती है। जबकि नेकां व पीडीपी को पता है कि उन्हें अगले कुछ महीनों बाद राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों में नई दिल्ली के आशीर्वाद की ज्यादा जरूरत होगी। इसलिए पीडीपी के संरक्षक मुफ्ती मुहम्मद सईद मोदी की निंदा तो कर रहे हैं, लेकिन एनडीए के शासनकाल की सराहना कर रहे हैं। नेकां भी अटल बिहारी वाजपेयी की सराहना करती है। केंद्रीय मंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने भी मोदी को सराहा था। कुल मिला कर मोदी के कारण जम्मू-कश्मीर के लोगों को बेशक अस्थायी तौर पर ही सही लेकिन अफस्पा, स्वायत्ता, धारा 370 और सेल्फ रूल जैसे पुराने नारों से आजादी मिल गई है।