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मजदूरों की शक्ति की पहचान है मई दिवस

मई दिवस अर्थात करोड़ों हाथों के प्रति वह श्रद्धा और विश्वास जिसके बल पर कोई भी देश विकास की ओर अग्रसर होता है। यही वह दिन है जब विश्व में हर कोई इस श्रमिक वर्ग की देन और इनकी ताकत का लोहा मानता है। पूरे वर्ष यही लोग हैं जिनके दम पर हम अपने दैनिक कायरें को निपटाने की चेष्टा करते हैं।

By Edited By: Published: Tue, 01 May 2012 07:47 AM (IST)Updated: Tue, 01 May 2012 08:55 AM (IST)
मजदूरों की शक्ति की पहचान है मई दिवस

नई दिल्ली। मई दिवस अर्थात करोड़ों हाथों के प्रति वह श्रद्धा और विश्वास जिसके बल पर कोई भी देश विकास की ओर अग्रसर होता है। यही वह दिन है जब विश्व में हर कोई इस श्रमिक वर्ग की देन और इनकी ताकत का लोहा मानता है। पूरे वर्ष यही लोग हैं जिनके दम पर हम अपने दैनिक कायरें को निपटाने की चेष्टा करते हैं। सही मायने में इनकी भूमिका हर किसी के जीवन में बेहद अहम है। मजदूर दिवस के रूप में हर वर्ष एक मई को मनाने वाले इस दिन की परंपरा बेहद पुरानी है। इसके अलावा जैसे देश वैसे ही इसको मनाने की शैली सब कुछ अलग। कहीं इसको वर्ष की शुरुआत के तौर पर मनाने की परंपरा शुरू हुई तो कहीं इस दिन प्रेमी अपनी प्रेमिका को प्रपोज भी करता है। ऐसा है ये मई दिवस।

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एक मई यूरोप में पारंपरिकतौर पर गर्मी के मौसम का पहला दिन माना जाता है। मई दिवस मनाने की परंपरा ईसा पूर्व से है। यूरोप में यह दिन पूर्व में फूलों की देवी फलोरा के दिवस के तौर पर मनाया जाता था।

मई दिवस पर यूरोप और अमेरिका में मई पोल डास और रानी को ताज पहनाने का चलन भी काफी लोकप्रिय है। इस दिन लोग मैदान के बीच में एक खंभा गाड़ देते हैं। इस खंभे को मई पोल कहा जाता है। खंभे को खूब सजाया जाता है। खंभे पर रंग बिरंगे फीते बाधे जाते हैं। फिर लोग इसके चारों ओर नाचते हैं और खुशिया मनाते हैं। नाचने से पहले मौजूद लड़कियों में से मई की रानी का चुनाव होता है जिसे फूलों का ताज पहनाया जाता है।

इंग्लैंड के ब्रेंथम गार्डन और ब्रुमले में हर साल यह आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है। कनाडा के न्यू वेस्टमिनिस्टर में मई दिवस का त्योहार पिछले 140 साल से लगातार मनाया जाता है। जर्मनी में मई दिवस से जुड़ी दिलचस्प परंपरा है। वहा के ग्रामीण इलाके में धारणा है कि मई पोल एक टोटम है जिसे हराया जाना चाहिए। मई दिवस के दिन एक गाव के लोग दूसरे गाव के खंभा को चुराने की कोशिश करते हैं। वही राइन की घाटी में कुछ जगहों पर नवयुवक अपनी प्रेमिकाएं के घर के सामने गाड़ आते हैं और प्रेम का इजहार करते हैं। मई दिवस से जुड़ा एक और लोकप्रिय रिवाज मई बास्केट है। इस परंपरा का जिक्रलुइस एम एलकाट की मशहूर रचना जैक और जिल में मिलता है। मिठाई और फूलों के टोकरियों को लोग गुमनाम रुप से पड़ोसियों के दरवाजे पर छोड़ आते हैं ओर प्रेम का संदेश देते हैं।

मई दिवस जहा एक ओर मजदूरों का मुक्ति गान है तो वहीं दूसरी ओर मई के आगमन और प्रेमपूर्ण रिश्तों को मजबूत करने का भी दिन है। ज्यादातर लोग मानते हैं कि मई दिवस मनाने की परंपरा 19 वीं शताब्दी से पहले शुरू हुई थी। परन्तु ऐसा नहीं है मई दिवस सबसे पहले 19 वीं सदी में अमेरिकी मजदूरों ने अच्छी पगार और काम के लिए बेहतर सुविधाओं की माग के चलते मनाना शुरू किया था जिसे बाद में साम्यवादी देशों ने अपनाया और बाद में पूरी दुनिया में यह दिन मजदूर एकता के प्रतीकार्थ मनाया जाने लगा।

मई दिवस या मजदूर दिवस या श्रमिक दिवस 1 मई को सारे विश्व में मनाया जाता है। मई दिवस के विषय में अधिकांश तथ्य उजागर हो चुके हैं, फिर भी कुछ ऐसे पहलू हैं, जो अभी तक अज्ञात है।

गौरतलब है कि श्रमिक दिवस का उदय मई दिवस के रूप में नहीं हुआ था। वास्तव में अमेरिका में श्रमिक दिवस मनाने की पुरानी परंपरा रही है, जो बहुत पहले से ही चली आ रही थी। मई दिवस भारत में 15 जून, 1923 ई. में पहली बार मनाया गया था।

अमेरिका में मजदूर आदोलन यूरोप व अमेरिका में आए औद्योगिक सैलाब का ही एक हिस्सा था। इसके फलस्वरूप जगह-जगह आदोलन हो रहे थे। इनका संबंध 1770 के दशक की अमरीका की आजादी की लड़ाई तथा 1860 ई. का गृहयुद्ध भी था। इंग्लैंड के मजदूर संगठन विश्व में सबसे पहले अस्तित्व में आए थे। यह समय 18वीं सदी का मध्य काल था।

मजदूर एवं ट्रेंड यूनियन संगठन 19वीं सदी के अंत तक बहुत मजबूत हो गए थे, क्योंकि यूरोप के दूसरे देशों में भी इस प्रकार के संगठन अस्तित्व में आने शुरू हो गए थे। अमेरिका में भी मजदूर संगठन बन रहे थे। वहां मजदूरों के आरंभिक संगठन 18वीं सदी के अंत में और 19वीं सदी के आरम्भ में बनने शुरू हुए।

फिडेलफिया के शूमेकर्स [1] के संगठन, बाल्टीमोर के टेलर्स [2] के संगठन तथा न्यूयार्क के प्रिन्टर्स के संगठन 1792 में बन चुके थे। फर्नीचर बनाने वालों में 1796 में संगठन बने। हड़ताल तोड़ने वालों के खिलाफपूरे अमेरिका में संघर्ष चला, जो उस देश में संगठित मजदूरों का अपनी तरह एक अलग ही आदोलन था। हड़ताल तोड़ना घोर अपराध माना जाता था और हड़ताल तोड़ने वालों को तत्काल यूनियन से निकाल दिया जाता था। क्चक्त्र> अमेरिका में 18वें दशक में ट्रेंड यूनियनों का शीघ्र ही विस्तार होता गया। विशिष्ट रूप से 1833 और 1837 के समय। इस दौरान मजदूरों के जो संगठन बने, उनमें शामिल थे- बुनकर, बुक वाइन्डर, दर्जी, जूते बनाने वाले लोग, फैक्ट्री आदि में काम करने वाले पुरुष तथा महिला मजदूरों के संगठन। इसमें जनरल ट्रेंड यूनियन आफ न्यूयार्क [1833] भी शामिल थी, जो अति सक्रिय थी। इसके पास स्थायी स्ट्राइक फंड भी था, तथा एक दैनिक अखबार भी निकाला जाता था। राष्ट्रव्यापी संगठन बनाने की कोशिश भी की गई थी। न्यू इंग्लैंड के वर्किंग मेन्स एसोसिएशन ने सन् 1832 में काम के घटे घटाकर 10 घटे प्रतिदिन के संघर्ष की शुरुआत की।

1835 तक अमेरिकी मजदूरों ने काम के 10 घटे प्रतिदिन का अधिकार देश के कुछ हिस्सों में प्राप्त कर लिया था। उस वर्ष मजदूर यूनियनों की एक आम हड़ताल फिलाडेलफि़या में हुई। शहर के प्रशासकों को मजबूरन इस माग को मानना पड़ा। 10 घटे काम का पहला कानून 1847 में न्यायपालिका द्वारा पास करवाकर हेम्पशायर में लागू किया गया। इसी प्रकार के कानून मेन तथा पेन्सिल्वानिया राज्यों द्वारा 1848 में पास किए गए। 1860 के दशक के शुरुआत तक 10 घटे काम का दिन पूरे अमेरिका में लागू हो गया।

प्रथम मजदूर राजनैतिक पार्टी सन 1828 ई. में फिनाडेल्फिया, अमेरिका में बनी थी। इसके बाद ही 6 वषरें में 60 से अधिक शहरों में मजदूर राजनैतिक पार्टियों का गठन हुआ। उन्होंने 10 घटे का कार्य दिवस, बच्चों की शिक्षा, सेना में अनिवार्य सेवा की समाप्ति, कर्जदारों के लिए सजा की समाप्ति, मजदूरी की अदायगी मुद्रा में, आयकर का प्रावधान इत्यादि मुद्दों पर संघर्ष किया।

18 मई, 1882 में सेंट्रल लेबर यूनियन ऑफ न्यूयार्क की एक बैठक में पीटर मैग्वार ने एक प्रस्ताव रखा, जिसमें एक दिन मजदूर उत्सव मनाने की बात कही गई थी। उसने इसके लिए सितंबर के पहले सोमवार का दिन सुझाया। यह वर्ष का वह समय था, जो जुलाई और धन्यवाद देने वाला दिन के बीच में पड़ता था।

भिन्न-भिन्न व्यवसायों के 30,000 से भी अधिक मजदूरों ने 5 दिसंबर को न्यूयार्क की सड़कों पर परेड निकाली गई। 1884 में न्यूयार्क सेंट्रल लेबर यूनियन ने मजदूर दिवस परेड के लिए सितंबर माह के पहले सोमवार का दिन तय किया।

सन् 1884 में एफओटीएलयू ने हर वर्ष सिंतबर के पहले सोमवार को मजदूरों के राष्ट्रीय अवकाश मनाने का निर्णय लिया। 7 सितंबर, 1883 को पहली बार राष्ट्रीय पैमाने पर सितंबर के पहले सोमवार को मजदूर अवकाश दिवस के रूप में मनाया गया। इसी दिन से अधिक से अधिक राज्यों ने मजदूर दिवस के दिन छुट्टी मनाना प्रारंभ किया।

मजदूर दिवस मनाने का निर्णय

इन यूनियनों तथा उनके राष्ट्रों की संस्थाओं ने अपने वर्ग की एकता, विशेषकर अपने 8 घटे प्रतिदिन काम की माग को प्रदर्शित करने हेतु 1 मई को मजदूर दिवस मनाने का फैसला किया। उन्होंने यह निर्णय लिया कि यह 1 मई, 1886 को मनाया जायेगा। कुछ राज्यों में पहले से ही आठ घटे काम का चलन था, परन्तु इसे कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं थी। इस माग को लेकर पूरे अमेरिका में 1 मई, 1886 को हड़ताल हुई। मई 1886 से कुछ वषरें पहले देशव्यापी हड़ताल तथा संघर्ष के दिन के बारे में सोचा गया। वास्तव में मजदूर दिवस तथा कार्य दिवस संबंधी आदोलन राष्ट्रीय यूनियनों द्वारा 1885 और 1886 में सितंबर के लिए सोचा गया था। लेकिन बहुत से कारणों की वजह से, जिसमें व्यापारिक चक्र भी शामिल था, उन्हें मई के लिए परिवर्तित कर दिया। इस समय तक काम के घटे 10 प्रतिदिन का संघर्ष बदलकर 8 घटे प्रतिदिन का बन गया।

भारत में मई दिवस

कुछ तथ्यों के आधार पर जहां तक ज्ञात है, मई दिवस भारत में 1923 ई. में पहली बार मनाया गया था। सिंगारवेलु चेट्टियार देश के कम्युनिस्टों में से एक तथा प्रभावशाली ट्रेंड यूनियन और मजदूर तहरीक के नेता थे। उन्होंने अप्रैल 1923 में भारत में मई दिवस मनाने का सुझाव दिया था, क्योंकि दुनिया भर के मजदूर इसे मनाते थे। मद्रास में मई दिवस मनाने की अपील की गयी। इस अवसर पर वहां दो जनसभाएं भी आयोजित की गई तथा दो जुलूस निकाले गए।

मास्को से छपने वाले वैनगार्ड ने इसे भारत में पहला मई दिवस बताया। फिर दुबारा 1927 में सिंगारवेलु की पहल पर मई दिवस मनाया गया, लेकिन इस बार यह उनके घर मद्रास में मनाया गया था। कहा जाता है कि तत्काल लाल झडा उपलब्ध न होने के कारण सिंगारवेलु ने अपनी लड़की की लाल साड़ी का झडा बनाकर अपने घर पर लहराया।

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