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    कामयाबी की ओर मंगल मिशन

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    Updated: Mon, 22 Sep 2014 11:43 PM (IST)

    ''प्रक्षेपण और फिर यान को छह कक्षाओं में पहुंचाने के काम को हमने 99 प्रतिशत सफलता के साथ किया है। बुधवार को मंगल की कक्षा में जाना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन हमें पूरा विश्वास है कि हम यह कर लेंगे।'' -कोटेश्वर राव, इसरो के वैज्ञानिक मामलों के सचिव

    अरविंद चतुर्वेदी, नई दिल्ली। देश के साथ दुनिया की निगाहों में आ चुके भारत के मंगल अभियान से जुड़ी उम्मीदों को सोमवार को तब और पंख लग गए, जब इस यान के मेन लिक्विड इंजन को करीब चार सेकेंड के लिए चलाने के साथ उसके मार्ग को भी दुरुस्त किया गया। दस माह से सुप्त अवस्था में पड़े इस इंजन को यह जानने के लिए चलाया गया कि वह सही से काम कर रहा है या नहीं? इस इंजन के जरिये मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश में सहायता मिलेगी। यान ने मंगल ग्रह के गुरुत्वाकर्षण वाले प्रभाव क्षेत्र में भी प्रवेश कर लिया है। इस तरह से 24 सितंबर को उसके मंगल की कक्षा में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त हो गया है। बुधवार को यान को मंगल की कक्षा में भेजने के लिए उसकी गति को 22.2 किमी प्रति सेकेंड से कम कर 4.4 किमी करना होगा और वह भी आधे घंटे में। अगर सब कुछ सही रहा तो इस दिन सारी दुनिया गौर से देखेगी कि ¨हदुस्तान किस तरह सबसे आगे निकल गया। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस ऐतिहासिक पल के गवाह बनेंगे।

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    450 करोड़ रुपये की किफायती लागत वाले इस मंगल अभियान की शुरुआत पांच नवंबर, 2013 को हुई थी। इस दिन श्रीहरिकोटा से मार्स आर्बिटर मिशन ने जरूरी वैज्ञानिक यंत्रों और उपकरणों के साथ 1.2 अरब भारतीयों की उम्मीदों और आकांक्षाओं को लेकर 68 करोड़ किमी दूर मंगल की कक्षा के लिए उड़ान भरी थी। सारी बाधाओं को दूर करता यह यान अपने लक्ष्य की ओर बढ़ चला था। अब मंगल की कक्षा में स्थापित होना ही एक मात्र अंतिम बाधा रह गई है। अगर यह अभियान सफल रहता है तो अपने पहले ही प्रयास में मंगल को फतह करने का कारनामा करने वाले हम पहले देश होंगे। रहस्यमयी लाल ग्रह को जानने-समझने के लिए दुनिया के सभी देशों में होड़ लगी हुई है। 1960 से मंगल फतह के लिए अभियान शुरू हैं। विभिन्न देशों द्वारा अब तक 51 अभियान इस ग्रह पर भेजे गए हैं जिनमें केवल 21 को सफलता मिली है। ऐसे में मंगलयान की सफलता हमें औरों पर न केवल बढ़त दिलाएगी, बल्कि दूसरे जटिल अभियानों के लिए हमें अनुभव भी मिलेगा। कुछ खास किस्म की विचारधारा वाले लोग इसे गरीब भारत का अपव्यय बता रहे हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय पटल पर भारत की धमक गूंजने के लिए ऐसे अभियानों की अहमियत को खारिज नहीं किया जा सकता। इस अभियान की सफलता से भले ही भौतिक रूप से किसी नागरिक को फायदा न पहुंचे,लेकिन उसका मान, सम्मान, प्रतिष्ठा और गर्व बुलंदियों पर होंगे।

    विकासशील और विकसित देश के बीच संक्रमण अवस्था में झूल रहे देश के लिए वैज्ञानिक बिरादरी के योगदान की महती जरूरत है। उनके मनोबल को बढ़ाने में इस सफल अभियान का बड़ा हाथ होगा। हमें कमतर आंकने वाले चंद्रयान के प्रेक्षण नतीजों से चकरा गए थे। लिहाजा मंगल का तिलिस्म तोड़ने को लेकर इस अभियान पर समूचा विश्व आंखें गड़ाए हुए है। ड्यूटीरियम, हाइड्रोजन, मीथेन जैसे प्राकृतिक संसाधनों की पड़ताल के लिए मार्स आर्बिटर मिशन के साथ आवश्यक उपकरण भेजे गए हैं। साथ ही लाल ग्रह के मौसम की जानकारी के लिए भी मिशन के साथ मार्स कलर कैमरा लगा है। कक्षा में स्थापित होने के बाद मार्स आर्बिटर मिशन अगले छह महीने तक लाल ग्रह की परिक्रमा करते हुए वहां से तस्वीरें और वैज्ञानिक आंकड़े भेजेगा। बस, दुआ कीजिए कि यह अभियान अंजाम को पहुंचे।

    क्या थी चुनौती:

    मार्स ऑर्बिटर मिशन (मंगल यान) का 440 न्यूटन लिक्विड अपोजी मोटर (एलएएम) पिछले 300 दिनों से सुप्तावस्था (आइडल स्टेट) में था। आखिरी बार इसे एक दिसंबर 2013 को चलाया गया था। सोमवार को दोपहर दो बजकर 30 मिनट पर इंजन को 3.968 सेकेंड के लिए 2.18 मीटर प्रति सेकेंड की गति से चलाया गया। अब एलएएम को 24 तारीख की सुबह 7 बजकर 17 मिनट 32 सेकेंड पर यान के मंगल की कक्षा में प्रवेश के समय करीब 24 मिनट के लिए चलाया जाएगा। किसी समस्या की स्थिति में आठ छोटे लिक्विड इंजनों को लंबी अवधि के लिए चलाने का इसरो का प्लान बी तैयार है।

    ''प्रक्षेपण और फिर यान को छह कक्षाओं में पहुंचाने के काम को हमने 99 प्रतिशत सफलता के साथ किया है। बुधवार को मंगल की कक्षा में जाना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन हमें पूरा विश्वास है कि हम यह कर लेंगे।''

    -कोटेश्वर राव, इसरो के वैज्ञानिक मामलों के सचिव

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