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    नेता विपक्ष बनने को ममता ने की जया से बात

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    Updated: Wed, 21 May 2014 10:41 PM (IST)

    लोकसभा चुनाव में बुरी हार के सदमे से गुजर रही कांग्रेस को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एक और झटका देने की तैयारी में हैं। संसद में नेता विपक्ष बनने के लिए ममता ने अम्मा को साधने का प्रयास शुरू कर दिया है। तृणमूल प्रमुख तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता से समर्थन के लिए बातचीत कर रही हैं। जबकि कांग्रेस ने अभी मुद्दे पर अपना पत्ता नहीं खोला है। साफ है कि पूरब व दक्षिण का ये मिलन कांग्रेस को संसद में मुख्य विपक्षी दल भी नहीं रहने देगा।

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    नई दिल्ली [जागरण न्यूज नेटवर्क]। लोकसभा चुनाव में बुरी हार के सदमे से गुजर रही कांग्रेस को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एक और झटका देने की तैयारी में हैं। संसद में नेता विपक्ष बनने के लिए ममता ने अम्मा को साधने का प्रयास शुरू कर दिया है। तृणमूल प्रमुख तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता से समर्थन के लिए बातचीत कर रही हैं। जबकि कांग्रेस ने अभी मुद्दे पर अपना पत्ता नहीं खोला है। साफ है कि पूरब व दक्षिण का ये मिलन कांग्रेस को संसद में मुख्य विपक्षी दल भी नहीं रहने देगा।

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    गौरतलब है कि मोदी लहर के बीच ममता बनर्जी ने बंगाल व जयललिता ने तमिलनाडु में शानदार प्रदर्शन किया। तृणमूल कांग्रेस को पश्चिम बंगाल की 42 में से 34 सीटें मिलीं तो जया ने प्रदेश की 39 में से 37 सीटों पर कब्जा जमाया। लोकसभा चुनाव में अब तक के सबसे खराब प्रदर्शन के चलते कांग्रेस को महज 44 सीटें हासिल हुई जो सदन में नेता विपक्ष बनने की आवश्यक संख्या 55 से 11 कम है। सहयोगी दलों को मिलाकर संप्रग के पास 58 सीटें होती हैं लेकिन ममता-जया के साथ आने से उनका संख्या बल 71 पहुंच जाएगा और उसे मुख्य विपक्ष माना जाएगा। सूत्रों के मुताबिक इस मौके को भुनाने के लिए ममता ने जयललिता को सुझाव दिया कि दोनों पार्टियां मिलकर संसद में एक विपक्षी ब्लॉक बनाएं। हालांकि जया ने अभी ममता को इस बाबत कोई आश्वासन नहीं दिया है। गौरतलब है कि भाजपा की जीत पर जया ने तो मोदी को पहले ही बधाई दे दी लेकिन ममता ने अभी तक उन्हें बधाई नहीं दी।

    सूत्रों के मुताबिक इस मामले पर फूंक-फूक कर कदम रख रही कांग्रेस देखो और इंतजार करो की रणनीति अपनाएगी। वैसे पार्टी ने संकेत दिए हैं कि प्रोटेम स्पीकर माने जा रहे कमलनाथ ही पार्टी की ओर से इस दौड़ में हैं।

    क्या हैं नियम

    इस मुद्दे पर दो कानून हैं। संसद में मान्यता प्राप्त दलों और गठबंधन के नेताओं व मुख्य सचेतकों से संबंधित अधिनियिम, 1998 में स्पष्ट कहा गया है कि विपक्षी पार्टी के पास सदन में 55 सदस्यों से कम संख्या नहीं होनी चाहिए। दूसरे कानून [संसद में नेता प्रतिपक्ष का वेतन एवं भत्ता अधिनियम, 1977] के मुताबिक लोकसभा में नेता विपक्ष की व्याख्या सिर्फ इतनी है कि वह उस सदन में सरकार के सामने मौजूद सर्वाधिक सदस्य संख्या वाली विपक्षी पार्टी का नेता हो और उसे लोकसभा अध्यक्ष द्वारा मान्यता प्राप्त हो। लिहाजा इस मामले पर लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका भी अहम होगी।

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