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    जहां सिद्धार्थ बने महात्मा बुद्ध

    By Edited By:
    Updated: Mon, 08 Jul 2013 02:49 AM (IST)

    मंदिर: बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर दुनिया के प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है। पटना से

    मंदिर:

    बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर दुनिया के प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है। पटना से 96 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लगभग 160 फुट ऊंचे इस मंदिर तथा बोधि वृक्ष के दर्शन के लिए यहां प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। माना जाता है कि इसी बोधि वृक्ष के नीचे महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यह वृक्ष मंदिर के पश्चिम की ओर स्थित है। इतिहासकारों के अनुसार सम्राट अशोक ने 260 ईसा पूर्व में इस मंदिर का निर्माण कराया था। सम्राट ने इस स्थान का दर्शन किया था।

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    महात्म्य:

    बिहार के इस स्थान पर बोधि वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इसके बाद वे भगवान गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए। इस स्थान पर बुद्ध को बोध होने के कारण यह बोधि वृक्ष के नाम जाना जाता है। दुनियाभर के बौद्ध धर्मावलंबियों के साथ यहां देश-विदेश के अन्य समुदाय के दर्शनार्थी भी आते हैं। इसे वर्ष 2002 में यूनेस्को व‌र्ल्ड हेरिटेज घोषित किया गया है। यह मंदिर भारत की ईट निर्मित प्राचीन वास्तुकला का उदाहरण भी प्रस्तुत करता है।

    निर्माण-गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त होने के करीब दो सौ साल बाद सम्राट अशोक ने इस स्थान का दर्शन किया। उन्होंने यहां मंदिर के साथ भगवान बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति स्थल के प्रतीक स्वरूप पर सिंहासन भी बनवाया जिसे वज्रासन कहा जाता है।

    रखरखाव में कमी:

    12वीं सदी के दौरान हिंदुस्तान मुस्लिम आक्रमणकारियों के चपेट में रहा। गया और इससे सटे क्षेत्र भी इन मुस्लिम आक्रांताओं की नजर से नहीं बच सके। इस दौरान मंदिर की ठीक तरह से देखभाल नहीं की जा सकी। स्थानीय लोगों के मालिकाना हक के चलते उस दौरान लंबे समय तक इस मंदिर उचित रखरखाव नहीं हो सका।

    पुनरुद्धार:

    11वीं व 19 वीं सदी में बर्मा के शासकों ने इस मंदिर सहित चारदीवारी का पुनरूद्धार किया। 1880 में अलेक्जेंडर कनिंघम के निर्देश पर ब्रिटिश सरकार की ओर से मंदिर की मरम्मत कराई गई। 1891 में श्रीलंका के बौद्ध धर्म के नेता अनागरिका धर्मपाल ने मंदिर को बौद्ध धर्मावलंबियोंके नियंत्रण में लाने के लिए एक बड़ा अभियान चलाया। 1949 में मंदिर पर नियंत्रण महंत से हटकर बिहार सरकार के हाथ में आ गया। राज्य सरकार ने बाद में एक मंदिर प्रबंधन समिति का गठन किया। इस समिति में सदस्यों की संख्या नौ तय की गई।

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