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खाद्य सुरक्षा की पहली बाधा पार

ऐन लोकसभा चुनाव से नौ माह पहले कांग्रेस का बड़ा सियासी ट्रंप कार्ड माना जा रहा खाद्य सुरक्षा विधेयक सोमवार को लोकसभा से पारित हो गया। इसके साथ ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भूख और कुपोषण भगाओ के नारे के साथ आम चुनाव में कूदने की जमीन तैयार कर ली है। वहीं, मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने संघीय ढांचे और विधेयक के 'आधे-अधूरे' प्रावधानों को तो पूरी ताकत से उठाया, लेकिन सबको पेट भर भोजन की गारंटी के रास्ते में नहीं आई। नतीजतन यह विधेयक सोनिया और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की गैरमौजूदगी में भी ध्वनिमत से पारित हो गया। दरअसल, वोटिंग के दौरान तबीयत अचानक बिगड़ने से सोनिया को एम्स में भर्ती कराना पड़ा।

By Edited By: Published: Mon, 26 Aug 2013 11:58 PM (IST)Updated: Tue, 27 Aug 2013 04:46 AM (IST)
खाद्य सुरक्षा की पहली बाधा पार

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। ऐन लोकसभा चुनाव से नौ माह पहले कांग्रेस का बड़ा सियासी ट्रंप कार्ड माना जा रहा खाद्य सुरक्षा विधेयक सोमवार को लोकसभा से पारित हो गया। इसके साथ ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भूख और कुपोषण भगाओ के नारे के साथ आम चुनाव में कूदने की जमीन तैयार कर ली है। वहीं, मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने संघीय ढांचे और विधेयक के 'आधे-अधूरे' प्रावधानों को तो पूरी ताकत से उठाया, लेकिन सबको पेट भर भोजन की गारंटी के रास्ते में नहीं आई। नतीजतन यह विधेयक सोनिया और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की गैरमौजूदगी में भी ध्वनिमत से पारित हो गया। दरअसल, वोटिंग के दौरान तबीयत अचानक बिगड़ने से सोनिया को एम्स में भर्ती कराना पड़ा।

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पढ़ें: सोनिया को एम्स से मिली छुट्टी

खास बात यह भी रही कि सोनिया की प्रतिष्ठा से जुड़े इस विधेयक के लिए सत्ता पक्ष के प्रबंधन के आगे विपक्ष का कोई भी संशोधन लोकसभा में पारित नहीं हो सका। यह अलग बात है कि जिस विधेयक के लिए सोनिया पहले अपनी सरकार से जूझीं और संसद तक लाईं, उसे पारित कराने के लिए वह संसद में मौजूद नहीं रह सकीं। अचानक सदन में ही तबीयत बिगड़ने से राहुल गांधी को उन्हें ले जाकर एम्स में भर्ती कराना पड़ा। लिहाजा, जिस समय कांग्रेस का सबसे बड़ा सियासी दांव सफल रहा, उस समय पार्टी के दोनों प्रमुख नेता लोकसभा में मौैजूद नहीं रह सके।

इससे पहले विधेयक के समय, इसके प्रावधानों और कानून लागू करने लायक साधन व व्यवस्था न होने के सवालों व चुनाव से ऐन पहले लाने के सियासी दांव पर उठे सवालों के जवाब में सोनिया ने विशुद्ध सियासी व भावनात्मक भाषण दिया। सोनिया ने विरोधी दलों के सवालों के जवाब में कहा, 'कुछ लोग सवाल उठाते हैं कि क्या हमारे पास इसके लिए साधन हैं। मैं उनसे कहना चाहती हूं कि सवाल साधनों का नहीं है। हमें इसके लिए साधन जुटाने ही होंगे। कुछ पूछते हैं कि क्या यह किया जा सकता है। सवाल यह नहीं है कि हम क्या कर सकते हैं या नहीं, हमें यह करना ही है। कुछ सवाल उठाते हैं कि क्या बिल किसानों के हित में है। मैं कहना चाहती हूं कि कृषि और किसान हमारी नीतियों के प्रमुख अंग हैं। हमने उनकी जरूरतों को हमेशा सबसे ऊपर रखा है।' सोनिया ने पीडीएस की खामियों को मानते हुए कहा कि देश के भूखे लोगों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने का ऐतिहासिक मौका है, जिसमें सभी को साथ देना चाहिए।

इससे पहले विपक्ष की ओर से सबसे पहले वरिष्ठ भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी ने बिल की खामियां गिनाई। उन्होंने कहा कि सरकार चार साल से इस बिल को लेकर बैठी है, फिर भी कई खामियां छोड़ दी हैं। सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए जोशी ने पूछा कि सरकार यह विधेयक दूसरे कार्यकाल के चौथे वर्ष में ही क्यों लाई। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने विधेयक का समर्थन तो किया, लेकिन कहा कि इसमें मुख्यमंत्रियों की अनदेखी की गई है। विधेयक बिना उनकी सलाह लिए तैयार किया गया है। गौरतलब है कि हाल में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री और सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर यह मुद्दा उठाया था। मुलायम के अलावा जदयू के शरद यादव व विपक्ष से अन्य नेताओं ने भी गरीबों की संख्या पर सवाल उठाते हुए पूछा कि इससे राज्यों पर जो बोझ पड़ेगा उसकी भरपाई कैसे होगी। बहरहाल, विपक्ष की तरफ से कुल 318 संशोधन पेश किए गए थे। कई बार मतविभाजन भी हुआ, लेकिन एक भी पारित नहीं हो सका। हालांकि, चर्चा से पहले ही विधेयक में कई संशोधनों पर सरकार और कुछ विपक्षी दलों के बीच सहमति बन गई है।

किसने, क्या कहा

'यह समय दुनिया को बताने का है कि भारत सभी देशवासियों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी ले सकता है। देश से भूख और कुपोषण को खत्म करना ही हमारा लक्ष्य है। हमें इसके लिए साधन जुटाने ही होंगे।'

-सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष

'अगर हमारे संशोधनों को ले लिया जाता तो यह विधेयक अच्छा हो जाता, लेकिन सरकार नहीं मानी। ऐसे में हम इस इंतजार के साथ इस आधे-अधूरे विधेयक को ही समर्थन देते हैं कि हम सत्ता में आकर इसे दुरुस्त करेंगे।'

-सुषमा स्वराज, लोकसभा में नेता विपक्ष

'विधेयक पेश करने के समय से स्पष्ट है कि केंद्र सरकार 'फूड सिक्योरिटी नहीं, वोट सिक्योरिटी बिल' लाई है। 2009 में तत्कालीन राष्ट्रपति ने अपने वक्तव्य में इस विधेयक का जिक्र किया था, तो इसे संप्रग के दूसरे कार्यकाल के अंत में ही क्यों लाया गया।'

-मुरली मनोहर जोशी, भाजपा नेता

'स्पष्ट है कि सरकार इस विधेयक को चुनावों को ध्यान में रखकर ला रही है। केंद्र ने उस समय इस बिल को पेश क्यों नहीं किया जब गरीब भूख से मर रहे थे। कांग्रेस हर चुनाव से पहले कुछ बड़ा करती है। इसमें भी गरीबों के लिए कुछ नहीं है।'

-मुलायम सिंह, सपा अध्यक्ष

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