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    जम्‍मू बार्डर के गांवों में लौटी जिंदगी, वापस आए 15,000 से अधिक लोग

    By Monika minalEdited By:
    Updated: Thu, 13 Oct 2016 01:07 PM (IST)

    भारत द्वारा किए गए सर्जिकल स्‍ट्राइक के कारण पाकिस्‍तान की ओर से बार-बार सीमा के उल्‍लंघन को देखते हुए सीमा से सटे इलाकों के ग्रामीणों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचा दिया गया था।

    नई दिल्ली (आइएएनएस)। भारत-पाकिस्तान के बीच फायरिंग के रुकने के करीब एक हफ्ते बाद जम्मू में एलओसी के पास वापस जीवन सामान्य हो गया है। जम्मू, सांबा और कथुआ के के 15000 से अधिक ग्रामीण अपने घर लौट आए।

    लौटे ग्रामीण

    भारत द्वारा किए गए सर्जिकल स्ट्राइक के कारण पाकिस्तान की ओर से लगातार हो रहे हमले के कारण ये ग्रामीण सुरक्षित जगहों पर चले गए थे। हालांकि महिलाएं और बच्चे अभी अधिकारियों द्वारा उपलब्ध कराए गए सुरक्षित पनाहगाहों में ही हैं। पुरुषों को अपने खेत के कारण लौटना पड़ा।

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    फसलें हो जातीं बर्बाद

    आरएस पुरा सेक्टर के 45 वर्षीय निवासी बलदेव ने बताया, ‘सबसे बड़ा खतरा इस बात का था कि पकी फसलों को नहीं काटा गया तो ये बर्बाद हो जाएंगे।‘ उन्होंने आगे कहा कि ‘30 सितंबर के बाद जिस तरह हमारे घरों और खेतों पर गोलियां बरसायी जा रही थीं अगर हालात वैसे होते तो हम फसलों को काटने की हिम्मत भी नहीं कर पाते।‘ न केवल चावल और अन्य अनाज बल्कि सीमा से सटे सब्जियों के खेत को भी देखभाल की जरूरत थी।

    पुरानी है यह कहानी

    खौर तहसील में गांव के बाजारों को भी दोबारा खोल दिया गया जहां शहरों से ट्रैक्टर में भरकर सब्जियां आ रही हैं। कथुआ जिलेे के हीरा नगर 57 वर्षीय निवासी सतपाल ने बताया, ‘जब हम भारत या पाकिस्तान से फायरिंग की आवाज सुनते, हमें लगता कि समय आ गया है कि हम सामान समेट वहां से भाग चलें।‘ सतपाल ने बताया कि जब से मैंने जन्म लिया है तब से यही कहानी है।

    लोगों को बना दिया साहसी

    इसके बावजूद इस तरह के खतरों ने वहां के लोगों को साहसी बना दिया है। आरएस पुरा के 80 वर्षीय हरजीत सिंह ने कहा,’ऐसा कभी नहीं होता कि वाहे गुरु उसे अच्छे के लिए नहीं बदल सकते। जब जीना और मरना उनके हाथ में है तो चिंता क्यों करना।‘

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