जानें, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अयोध्या दौरे के क्या हैं सियासी मायने
योगी सरकार को सत्ता में आए अभी दो महीने का वक़्त ही हुआ है, लेकिन अयोध्या और राम मंदिर की गूंज एक बार फिर से सियासी गलियारों में जोऱ शोर से सुनाई देने लगी है।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड जीत और उसके बाद हिन्दुत्व के बड़े चेहरों में से एक योगी आदित्यनाथ को जब 19 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई उसके बाद से ही यह क़यास लगाए जाने लगे थे कि राम मंदिर का मुद्दा जोर शोर से उठेगा। बमुश्किल योगी सरकार को अभी सत्ता में आए दो महीने का वक़्त ही बीता हो, लेकिन अयोध्या और राम मंदिर की गूंज एक बार फिर से सियासी गलियारों में जोर शोर से सुनाई देने लगी है।
क्यों फिर उठ रहा है राम मंदिर मुद्दा
दरअसल, राम मंदिर एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है। कहा जाता है कि राम नाम के सहारे ही भारतीय जनता पार्टी सत्ता तक पहुंची थी। इसलिए जहां यह एक आम लोगों से जुड़ा भावनात्मक मुद्दा है तो वहीं दूसरी तरफ एक सियासी मुद्दा भी है जिसे खारिज नहीं किया जा सकता है। वरिष्ठ पत्रकार शिवाजी सरकार ने Jagran.com से ख़ास बातचीत में बताया कि भाजपा के लिए राम मंदिर का मुद्दा चर्चा में बनाए रखना बेहद ज़रुरी है। उन्होंने बताया कि योगी आदित्यनाथ के लिए अयोध्या दौरा भले ही एक व्यक्तिगत श्रद्धा हो, लेकिन राजनाथ सिंह के बाद वह दूसरे प्रदेश के ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने 15 वर्षों के बाद वहां का दौरा किया है। ऐसे में योगी के वहां जाने के बाद अयोध्या मुद्दे की गूंज सियासी गलियारे में सुना जाना लाजिमी है।
क्यों अयोध्या मुद्दे को चर्चा में बनाए रखना चाहती है भाजपा
यह सवाल इसलिए इस वक़्त उठ रहा है क्योंकि 30 मई यानि मंगलवार को बाबरी विध्वंस केस में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती जैसे बड़े नेताओं पर आरोप तय होने के महज 24 घंटे के अंदर बुधवार को यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ अयोध्या के दौरे पर पहुंचे और वहां रामलला का दर्शन किया। दरअसल, शिवजी सरकार की मानें तो योगी के अयोध्या दौरे के बाद खुद-ब-खुद राम मंदिर का मुद्दा चर्चा में जाएगा भले ही वह इस बारे में कुछ बोलें या ना बोलें क्योंकि मुख्यमंत्री के वहां जाने मात्र से ही उसका कहीं ना कहीं एक राजनीतिक संदेश लोगों में जाता है।
क्या 2019 में फिर राम मंदिर बनेगा बड़ा मुद्दा
ये बात इसलिए यहां उठ रही है क्योंकि पिछले कई चुनावों में राम मंदिर की जगह भारतीय जनता पार्टी ने विकास को अपना प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया और अयोध्या मुद्दे को बहुत ज्यादा तूल नहीं दिया गया। राजनीतिक विश्लेषक शिवाजी सरकार का कहना है कि यह मुद्दा फिलहाल अदालत में है इसलिए सरकार बहुत ज्यादा कुछ करने की हालत में नहीं है। लेकिन, जिस तरह अभी से राम मंदिर को उठाया जा रहा है वह भविष्य में इस बात के सियासी संकेत हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में अयोध्या एक बड़ा मुद्दा बनेगा।
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राजनीतिक दलों के लिए कितना महत्वपूर्ण है राम मंदिर मुद्दा
दरअसल, राम मंदिर राजनीतिक दलों के लिए कितना अहमियत रखता है इस बात का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि देश के बहुसंख्यकों का समर्थन साल 1985 तक पूरी तरह से कांग्रेस के साथ रहा। कांग्रेस को उस वक़्त के दौर में हिन्दुवादी पार्टी कही जाती थी। राजीव गांधी ने राम मंदिर का ताला भी खुलवाया था जिसका मक़सद भी कहीं ना कहीं राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश थी। लेकिन, कांग्रेस अयोध्या मुद्दे को लोगों के बीच नहीं भुना पायी।
क्यों कांग्रेस राम मंदिर को नहीं भुना पायी
वरिष्ठ पत्रकार शिवाजी सरकार से जब यह बात पूछी गई तो उनका कहना है कि इसकी एक बड़ी वजह है कांग्रेस की तुष्टिकरण की राजनीति। कांग्रेस हमेशा से दो नावों पर सवार होने की कोशिश करती रही। यही वजह है कि भारत के बहुसंख्यक लोगों के बीच राम मंदिर मुद्दे को भुनाने में तुष्टिकरण के चलते उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा और उसके अपने वोटर उनका हाथ छोड़ते चले गए। जबकि, भारतीय जनता पार्टी ने इस मुद्दे को भले ही ठंडे बस्ते में डाल दिया लेकिन भाजपा ने हमेशा यह बात कही कि राम मंदिर का मुद्दा देश के बहुसंख्यक लोगों की आस्था से जुड़ा है और वह जरूर बनना चाहिए। भाजपा ने इस मुद्दे पर कभी भी तुष्टिकरण की राजनीति नहीं की। यही वजह रही कि लगातार लोगों का भाजपा की ओर जुड़ाव होता चला गया।
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