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    कांग्रेस की 'रेहड़ी पटरी' पर केजरीवाल का कब्जा

    By Edited By:
    Updated: Tue, 21 Jan 2014 09:06 PM (IST)

    अरविंद केजरीवाल का नया आंदोलन घोषित तौर पर तो पुलिस के तौर-तरीके और उसे दिल्ली सरकार के अधीन करने को लेकर है, लेकिन इसी बहाने कांग्रेस की 'रेहड़ी पटरी' पर भी कब्जा करने की कोशिश शुरू हो गई है। पिछले आंदोलनों से परे इस बार गायब युवा वर्ग की जगह केजरीवाल ने उन रेहड़ी पटरी वालों को जोड़ लिया है,

    आशुतोष झा, नई दिल्ली। अरविंद केजरीवाल का नया आंदोलन घोषित तौर पर तो पुलिस के तौर-तरीके और उसे दिल्ली सरकार के अधीन करने को लेकर है, लेकिन इसी बहाने कांग्रेस की 'रेहड़ी पटरी' पर भी कब्जा करने की कोशिश शुरू हो गई है। पिछले आंदोलनों से परे इस बार गायब युवा वर्ग की जगह केजरीवाल ने उन रेहड़ी पटरी वालों को जोड़ लिया है, जिनका विधेयक अब तक संसद में लंबित है। दरअसल, यह दोनों के लिए फायदेमंद है। रेहड़ी वाले भी केजरीवाल का साथ लेकर फरवरी में संसद से विधेयक पारित करवाने के लिए सरकार पर दबाव बनाना चाहते हैं।

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    रेहड़ी पटरी वालों को नियमित करने के लिए लंबे समय से अटके विधेयक को कुछ ही माह पहले सरकार ने लोकसभा से पारित करवाया। इसका महत्व इससे समझा जा सकता है कि खाद्य सुरक्षा विधेयक की तरह ही खुद सोनिया गांधी ने इसके लिए हस्तक्षेप किया था। दरअसल, अकेले दिल्ली में करीब साढ़े तीन लाख लोग रेहड़ी चलाते हैं। पूरे देश में इनकी संख्या एक करोड़ परिवार से कुछ ज्यादा है। जाहिर है कि कांग्रेस इसका चुनावी लाभ भी देख रही थी। लेकिन आम चुनाव से पहले केजरीवाल ने उन पर डोरा डाल दिया है। कुछ पुलिस वालों पर कार्रवाई की मांग कर रहे केजरीवाल ने रेहड़ी पटरी वालों से भी आंदोलन में शामिल होने की अपील की थी। रेहड़ी वालों ने भी देर नहीं लगाई। उनकी संस्था से जुड़े एक कार्यकर्ता के अनुसार हर, दिन अलग-अलग बाजार से तीन-चार सौ रेहड़ी पटरी वाले आंदोलन में हिस्सा लेंगे।

    हालांकि उन्हें इसका भरोसा नहीं है कि दिल्ली सरकार के अधीन आने पर पुलिस का तौर तरीका बदलेगा, लेकिन केजरीवाल के सहारे ही वह अपने विधेयक को अंजाम तक पहुंचाना चाहते हैं। दरअसल, यह विधेयक राज्यसभा में अभी अटका है। 5 फरवरी से शुरू हो रहे सत्र में विधेयक पारित नहीं हुआ तो वह रद हो जाएगा। दरअसल, यह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार का आखिरी सत्र होगा। लिहाजा रेहड़ी वालों ने जोर लगा दिया है, जबकि लोकसभा के लिहाज से केजरीवाल के लिए यह अच्छा अवसर है।

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