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रिटायरमेंट के बाद दो साल तक कोई पद स्वीकार न करें जज

भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस आरएम लोढा ने सलाह दी है कि सेवानिवृत्ति के बाद जजों को कम से कम दो साल तक कोई पद स्वीकार नहीं करना चाहिए। सीजेआइ का यह बयान ऐसे वक्त आया है जब विवादों के बीच पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एस. सतशिवम केरल के राज्यपाल का पद संभाल चुके हैं।

By Edited By: Published: Thu, 25 Sep 2014 10:18 PM (IST)Updated: Thu, 25 Sep 2014 10:18 PM (IST)
रिटायरमेंट के बाद दो साल तक कोई पद स्वीकार न करें जज

नई दिल्ली। भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस आरएम लोढा ने सलाह दी है कि सेवानिवृत्तिके बाद जजों को कम से कम दो साल तक कोई पद स्वीकार नहीं करना चाहिए। सीजेआइ का यह बयान ऐसे वक्त आया है जब विवादों के बीच पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एस. सतशिवम केरल के राज्यपाल का पद संभाल चुके हैं।

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जस्टिस लोढा ने एक साप्ताहिक पत्रिका दिए साक्षात्कार में कहा कि इस स्थिति [जजों द्वारा पद स्वीकार करने] से निपटने के लिए ट्रिब्यूनल और आयोगों की अध्यक्षता जजों से कराने वाले कानूनी प्रावधानों को समाप्त करने की जरूरत है। उन्होंने इससे जुड़े कानून में संशोधन की वकालत भी की। बतौर सीजेआइ पांच महीने के कार्यकाल के बाद शनिवार को सेवानिवृत्ता हो रहे जस्टिस लोढा ने कहा, 'मेरे विचार में मुख्य न्यायाधीश या जजों को संवैधानिक या अन्य तरह के पदों को नहीं स्वीकार करना चाहिए..पद छोड़ने के कम से कम दो साल तक तो कोई पद नहीं ही लेना चाहिए।' जजों द्वारा राज्यपाल की जिम्मेदारी संभालने के मुद्दे पर सीजेआइ ने कहा, भारत के मुख्य न्यायाधीश या सुप्रीम कोर्ट के जज या हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को रिटायरमेंट के बाद कोई भी पद लेने से बचना चाहिए।

सीजेआइ ने सलाह दी कि रिटायरमेंट से पहले जजों को विकल्प दिया जाना चाहिए कि वह पेंशनभोगी बनना चाहते हैं या मौजूदा वेतन लेने के इच्छुक हैं। पेंशन का चयन करने वाले जजों को सरकारी पद लेने की दौड़ से बाहर कर दिया जाना चाहिए। इसके बाद वह जो चाहें कर सकते हैं। पूरे वेतन का विकल्प अपनाने वालों का नाम पैनल में रखा जाना चाहिए और जब कोई रिक्ति हो तो मुख्य न्यायाधीश की सलाह से उन्हें नियुक्त किया जाना चाहिए। इससे पक्षपात के आरोपों से भी बचा जा सकता है।

यह पूछे जाने पर कि क्या न्यायिक जवाबदेही और न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक कार्यपालिका द्वारा न्यायपालिका को बांधने की कोशिश तो नहीं है? जस्टिस लोढा ने कहा कि जब तक वे [विधेयक] न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अखंडता को प्रभावित नहीं करते तब तक चिंता नहीं करनी चाहिए। विपक्ष के नेता पर दिए निर्णय पर उन्होंने कहा कि मुख्य सतर्कता आयोग, लोकपाल आदि की नियुक्ति में विपक्ष के नेता की जरूरत होती है। कोर्ट सिर्फ यह जानना चाहता था कि इस समस्या से कैसे निपटा जाएगा।

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