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    अब मुजाहिदीन के पूर्व कमांडर डॉ. फख्तू की रिहाई की अटकलें तेज

    By Rajesh NiranjanEdited By:
    Updated: Tue, 10 Mar 2015 10:26 AM (IST)

    अलगाववादी नेता मसर्रत आलम की रिहाई से पैदा हुआ विवाद अभी थमा भी नहीं कि राज्य सरकार द्वारा कश्मीर में जिहाद और अलगाववाद के नायक बन चुके जमायत-उल-मुजाहिदीन के पूर्व कमांडर डॉ. आशिक हुसैन उर्फ कासिम फख्तू को रिहा किए जाने की अटकलें तेज हो गई हैं। डॉ. फख्तू महिला

    श्रीनगर, [नवीन नवाज]। अलगाववादी नेता मसर्रत आलम की रिहाई से पैदा हुआ विवाद अभी थमा भी नहीं कि राज्य सरकार द्वारा कश्मीर में जिहाद और अलगाववाद के नायक बन चुके जमायत-उल-मुजाहिदीन के पूर्व कमांडर डॉ. आशिक हुसैन उर्फ कासिम फख्तू को रिहा किए जाने की अटकलें तेज हो गई हैं। डॉ. फख्तू महिला अलगाववाद का चेहरा कहलाने वाली आसिया अंद्राबी के पति हैं और पिछले 23 सालों से जेल में बंद हैं।

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    जम्मू-कश्मीर में पहली मार्च को सरकार के गठन के एक दिन बाद ही मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद ने राज्य पुलिस महानिदेशक को बुलाकर सभी राजनीतिक कैदियों की रिहाई के संदर्भ में आवश्यक कदम उठाने को कहा था। इसी निर्देश के बाद मसर्रत आलम को पिछले सप्ताह रिहा किया गया था।

    आलम की रिहाई के बाद अब जेल में बंद डॉ. फख्तू की रिहाई को लेकर कश्मीर में चर्चाएं जोरों पर हैं। डॉ. फख्तू कितने कट्टर हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह कश्मीर के पाकिस्तान में विलय इस्लाम के आधार पर करते हैं। वह कश्मीर में उसी तरह का इस्लामिक राज चाहते हैं, जैसे आतंकी गुट आइएसआइएस चाहता है।

    डॉ. फख्तू के दादा गुलाम अहमद फख्तू भी अलगाववादी थे। वह भी कश्मीर के भारत विलय के खिलाफ थे। इसके बाद वह गुलाम कश्मीर भाग गए और वहीं उनकी मौत हुई थी।

    श्रीनगर सेंट्रल जेल में आजीवन कारावास काट रहे डॉ. फख्तू को कश्मीर की युवा जिहादी पीढ़ी, पत्थरबाज और जेल में बंद आतंकी अपना मजहबी नायक भी मानते हैं। कश्मीर में आतंकी हिंसा शुरू होते ही हिजबुल मुजाहिदीन के प्रवक्ता रह चुके डॉ. फख्तू ने एसपी कॉलेज श्रीनगर से ग्रेजुएशन किया। इसके बाद उन्होंने कश्मीर विश्वविद्यालय से एमए और पीएचडी डिग्री भी हासिल की। दस किताबें लिख चुके जिहादी कमांडर ने उस समय जमायत-उल-मुजाहिदीन का दामन थामा था जब हिज्ब के तत्कालीन चीफ कमांडर अहसान डार ने कहा था कि उनका गुट जमायत ए इस्लामी का फौजी बाजू है। डॉ. फख्तू के इशारे पर ही कश्मीरी पंडित मानवाधिकार कार्यकर्ता हृदयनाथ वांचू की हत्या कर दी गई थी। दो दशकों से ज्यादा समय से जेल में बंद फख्तू को पहली बार 1993 में पकड़ा गया था। छह साल बाद टाडा अदालत ने उन्हें रिहा कर दिया। वर्ष 2003 में उन्हें वांचू की हत्या के सिलसिले में उम्र कैद की सजा सुनाई गई। डॉ. फख्तू का नाम चार साल पहले कश्मीर में लश्कर-ए-तैयबा द्वारा मौत के घाट उतारे गए जमायत-ए-अहल-ए-हदीस के तत्कालीन चेयरमैन मौलाना शौकत की हत्या में भी आया था।

    डॉ. फख्तू ने अपनी कारावास की सजा को वर्ष 2008 में चुनौती भी दी थी। इसके बाद राज्य सरकार ने उनके मामले की समीक्षा के लिए एक समिति का भी गठन किया था, लेकिन पुलिस और सीआइडी की रिपोर्ट के आधार पर उनकी रिहाई टल गई। इसके बाद वर्ष 2012 में राज्य हाईकोर्ट ने उनकी रिहाई की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि उम्रकैद का मतलब सारी उम्र जेल।

    अब पत्थरबाजों की रिहाई की तैयारी

    श्रीनगर, जागरण ब्यूरो। प्रमुख अलगाववादियों की रिहाई की प्रक्रिया शुरू करने के बाद अब राज्य सरकार ने पत्थरबाजी के आरोप में पीएसए के तहत जेलों में बंद युवकों के खिलाफ दायर मामलों को वापस लेने की योजना पर विचार शुरू कर दिया है। उच्च प्रशासनिक सूत्रों ने बताया कि राज्य गृह विभाग ने सभी पुलिस थाना और विभिन्न जेलों के संबंधित अधिकारियों से ऐसे सभी युवकों का ब्योरा मांगा है, जिन पर पत्थरबाजी के मामले दर्ज हैं और जेलों में बंद हैं।

    पीएसए के तहत गृह विभाग ही संबंधित लोगों को जेल में बंद रखने की समयावधि तय करते हुए उनका डोजियर जारी कराता है। इसमें अदालत की भूमिका नहीं रहती है। अलबत्ता, पीएसए के खिलाफ अदालत में अपील जरूर होती है और अदालत भी इसे खारिज कर सकती है। सूत्रों ने बताया कि पत्थरबाजी के कारण पीएसए के तहत बंद होने वाले अधिकांश युवक श्रीनगर, बारामुला और अनंतनाग से संबंधित हैं। इस समय कश्मीर की सभी जेलों में औसतन चार से पांच युवक पीएसए के तहत बंद हैं। इन युवकों से संबंधित मामलों पर गृह विभाग की सलाहकार समिति द्वारा गौर किया जाएगा। इसके बाद समिति इनकी रिहाई और इनसे संबंधित मामलों को वापस लिए जाने की सिफारिश करेगी।

    राज्य पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि गत वर्ष चुनाव प्रक्रिया के दौरान भी श्रीनगर में 50-60 युवकों को पत्थरबाजी, हिंसा फैलाने और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में संलिप्तता के आरोप में हिरासत में लिया गया था। लेकिन चुनावों के बाद इनमें से अधिकांश को एक तहसीलदार के समक्ष दाखिल किए मुचलके के आधार पर छोड़ दिया गया।

    जेलों में पीएसए और पत्थरबाजी के तहत बंदी युवकों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में जो भी जानकारी हमारे पास थी, हमने संबंधित प्रशासन को उपलब्ध करा दी है।

    ''इतिहास गवाह है कि किसी भी कौम को आजादी बातचीत से नहीं मिली है। उन्होंने कहा कि नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच अब तक 100 से ज्यादा बार बातचीत हो चुकी है। लेकिन नतीजा शून्य रहा है।'' -डा. कासिम फख्तू

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