Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    हिंसक प्रदर्शनों से उमर की राह मुश्किल

    By Sudhir JhaEdited By:
    Updated: Thu, 06 Nov 2014 08:38 AM (IST)

    शोपियां कांड और वर्ष 2010 के ¨हसक प्रदर्शन ही जैसे काफी नहीं थे, गत माह वादी में आई विनाशकारी बाढ़ ने रही-सही कसर पूरी करते हुए नेशनल कांफ्रेंस को फिर से सत्ता में लाने की मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की राह को और मुश्किल बना दिया है

    श्रीनगर, जागरण ब्यूरो। शोपियां कांड और वर्ष 2010 के ¨हसक प्रदर्शन ही जैसे काफी नहीं थे, गत माह वादी में आई विनाशकारी बाढ़ ने रही-सही कसर पूरी करते हुए नेशनल कांफ्रेंस को फिर से सत्ता में लाने की मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की राह को और मुश्किल बना दिया है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कश्मीरी सियासत के विशेषज्ञ भी मानते हैं कि गत छह वर्षो के दौरान विधि व्यवस्था का संकट बनने वाली हर छोटी-बड़ी घटना का असर विधानसभा चुनावों पर नजर आएगा।उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली मौजूदा गठबंधन सरकार का कार्यकाल 19 जनवरी, 2015 को समाप्त होगा। उससे पहले 12वीं विधानसभा के गठन के लिए चुनाव प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। उमर के मुख्यमंत्री पद संभालने के चंद माह बाद ही शोपियां में दो युवतियों की रहस्यमय हालात में मौत हुई। इससे वादी में लोग उत्तेजित हो सड़कों पर उतर आए थे।

    हालांकि सीबीआइ जांच में दोनों युवतियों की मौत हादसा निकली लेकिन लोगों की एक बड़ी तादाद आज भी राज्य सरकार पर मामला दबाने का आरोप लगाती है। इसके बाद वर्ष 2010 में कश्मीर में सिलसिलेवार हिंसक प्रदर्शनों में 125 लोग मारे गए। यह प्रदर्शन तुफैल मट्टु नामक एक छात्र की पुलिस फायरिंग में मौत से शुरू हुए थे। राजनीतिक विशेषज्ञ प्रो. नूर मुहम्मद बाबा का कहना है कि बेशक बाढ़, शोपियां कांड, वर्ष 2010 की हिंसा या अफजल गुरु की फांसी के लिए उमर अब्दुल्ला को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन वह सरकार के मुखिया हैं। इसलिए लोग उन्हें ही जिम्मेदार मानते हैं ।

    पढ़ेंः मदद के लिए उमर ने मोदी सरकार का शुक्रिया अदा किया