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    29 भारतीय शहरों पर जबरदस्त खतरा, दुश्मन एक; निशाने पर करोड़ों लोग

    By Lalit RaiEdited By:
    Updated: Tue, 01 Aug 2017 09:52 AM (IST)

    टेक्टोनिक प्लेटों में जबरदस्त तनाव है। तनाव का असर ये होता है कि जब धरती के अंदर से ऊर्जा बाहर निकलती है,तो वो धरती के सतह पर जबरदस्त तांडव करती है।

    29 भारतीय शहरों पर जबरदस्त खतरा, दुश्मन एक; निशाने पर करोड़ों लोग

    नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । धरती के अंदर थोड़ी सी हलचल का असर ये होता है कि हम सभी दहशत में आ जाते हैं। अपने घरों से लोग बाहर निकल कर सुरक्षित जगहों की तलाश करते हैं। धरती में हुए कंपन की जबरदस्त चर्चा होती है। लोग अपने परिचितों की खोज खबर में लग जाते हैं, और कुछ समय के बाद सबकुछ सामान्य हो जाता है। लेकिन हकीकत ये है कि हम हर पल एक मौत के मुहाने पर हैं। ये पता नहीं होता है कि जलजला रूपी वो दुश्मन कितने परिवारों को तबाह करने की फिराक में है।

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    खतरे में करोड़ों लोग

    एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में उस जलजले की जद में तीन करोड़ से ज्यादा लोग हैं, जो देश के 29 शहरों में रहते हैं। इनमें राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत नौ राज्यों की राजधानियां शामिल हैं। यह दावा नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी, एनसीएस ने अपनी रिपोर्ट में किया है। रिपोर्ट के मुताबिक सर्वाधिक संवेदनशील शहर और कस्बे हिमालयी पर्वत श्रृंखला क्षेत्र में बसे हैं। यह दुनिया में भूकंप का सर्वाधिक संवेदनशील इलाका है।

     

    जोन चार और पांच के संवेदनशील शहर

    अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र

    जोन 4- जम्मू कश्मीर का कुछ हिस्सा, दिल्ली सिक्किम, उत्तरी उत्तर प्रदेश पश्चिम बंगाल, गुजरात और महाराष्ट्र का कुछ हिस्सा

    जोन 5- समूचा पूर्वोत्तर, जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्से हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात में कच्छ का रण, उत्तर बिहार के हिस्से अंडमा न निकोबार द्वीप समूह क्षेत्र पांच में आते हैं।

    गुजरात का भुज जोन चार और पांच दोनों में आता है। 2001 के भूकंप में करीब 20 हजार लोगों की मौत हुई थी। चंडीगढ़, अंबाला, लुधियाना और रुड़की भी जोन चार और पांच में शामिल हैं।

    एनसीएस भारतीय मौसम विभाग के अधीन है। भूकंप के मापन और शहरों में उसके आने की संभावनाओं पर यही शोध केंद्र काम करता है। नई दिल्ली और कोलकाता पर एनसीएस माइक्रोजोनेशन प्रक्रिया के तहत शोध कर रहा है। इसके अंतर्गत भूकंप की संवेदनशीलता वाले बड़े क्षेत्र को संवेदनशीलता के विभिन्न पैमानों के आधार पर छोटे हिस्सों में विभाजित किया जाता है।


    पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम रामजीवन के मुताबिक देश में इस समय शोध के लिए 84 वेधशालाएं हैं। अगले साल मार्च तक देश में 31 नई वेधशालाएं स्थापित की जाएंगी। इनके जरिए भूकंप आने से पहले ही सटीक चेतावनी जारी की जा सकेगी। इसके साथ ही डाटा रिकॉर्ड करने और उसे मापने में आसानी होगी। देश में ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड में भूकंप के संवेदनशील क्षेत्रों को जोन दो से लेकर पांच तक बांटा हुआ है। भूकंप के रिकॉर्ड, टेक्टोनिक प्लेटों की गतिविधियों और उनकी क्षति के अनुसार जोन में बांटा गया है। जोन दो में सबसे कम संवेदनशील है जोन तीन, जोन दो से अधिक। जोन चार अतिसंवेदनशील और जोन पांच सर्वाधिक सक्रिय व संवेदनशील है।
     

    भूकंप के कारण

    प्राचीन काल से ही भूकंप मानव जाति के लिए एक समस्या बनकर दस्तक देता रहा है। प्राचीन काल में इसे दैवीय प्रकोप समझा जाता रहा है। अरस्तू (384 ई. पू.) का विचार था कि जमीन के अंदर की वायु जब बाहर निकलने का प्रयास करती है, तब भूकंप आता है। 16वीं और 17वीं शताब्दी में लोगों का अनुमान था कि पृथ्वी के अंदर रासायनिक कारणों से तथा गैसों के विस्फोटन से भूकंप होता है। 1874 ई में वैज्ञानिक एडवर्ड जुस ने अपनी खोजों के आधार पर कहा था कि भूकंप भ्रंश की सीध में भूपर्पटी के खंडन या फिसलने से होता है। ऐसे भूकंपों को टेक्टोनिक भूकंप (Tectonic Earthquake) कहते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं।

    सामान्य उद्गम भूकंप- उद्गम केंद्र की गहराई 48 किमी तक हो।

    मध्यम उद्भूगम उद्गम केंद्र की गहराई 48 से 240 किमी हो।

    गहरा उद्गम (Deep Focus), जबकि उद्गम केंद्र की गहराई 240 से 1200 किमी तक हो।

    इनके अलावा दो प्रकार के भूकंप और होते हैं ज्वालामुखीय (Volcanic) और निपात (Collapse)।

    एक खतरा पांच जोन

    - भूकंप की आशंका के आधार पर देश को पांच जोन में बांटा गया है।

    - उत्तर-पूर्व के सभी राज्य, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्से जोन-5 में आते हैं। यह हिस्सा सबसे ज्यादा संवेदनशील कहा जा सकता है।

    - उत्तराखंड के कम ऊंचाई वाले हिस्सों से लेकर उत्तर प्रदेश के ज़्यादातर हिस्से और दिल्ली जोन-4 में आते हैं। इन्हें भी कम संवेदनशील नहीं कहा जा सकता है।

    - लेकिन यह एक मोटा वर्गीकरण है। दिल्ली में कुछ इलाके हैं, जो जोन-5 की तरह खतरे वाले हो सकते हैं। इस प्रकार दक्षिण राज्यों में कई स्थान ऐसे हो सकते हैं जो जोन-4 या जोन-5 जैसे खतरे वाले हो सकते हैं।

    - दूसरे जोन-5 में भी कुछ इलाके हो सकते हैं, जहां भूकंप का खतरा बहुत कम हो और वे जोन-2 की तरह कम खतरे वाले हों।

    - मध्य भारत अपेक्षाकृत कम खतरे वाले हिस्से जोन-3 में आता है,

    - जबकि दक्षिण भारत के ज़्यादातर हिस्से सीमित खतरे वाले जोन-2 में आते हैं।

    - इस मामले में बिहार ही एक ऐसा राज्य है, जहां लगभग सभी भूकंपीय जोन हैं। इसकी जांच के लिए भूकंपीय माइक्रोजोनेशन की जरूरत होती है। माइक्रोजोनेशन वह प्रक्रिया है जिसमें भवनों के पास की मिट्टी को लेकर परीक्षण किया जाता है और इसका पता लगाया जाता है कि वहां भूकंप का खतरा कितना है।

    रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता और प्रभाव

    0 से 1.9 - सिर्फ सीज्मोग्राफ से ही पता चलता है।

    2 से 2.9 - हल्का कंपन।

    3 से 3.9- कोई ट्रक आपके नजदीक से गुजर जाए, ऐसा असर।

    4 से 4.9 - खिड़कियां टूट सकती हैं। दीवारों पर टंगी फ्रेम गिर सकती हैं।

    5 से 5.9- फर्नीचर हिल सकता है।

    6 से 6.9 - इमारतों की नींव दरक सकती है। ऊपरी मंजिलों को नुकसान हो सकता है।

    7 से 7.9- इमारतें गिर जाती हैं। जमीन के अंदर पाइप फट जाते हैं।

    8 से 8.9 - इमारतों सहित बड़े पुल भी गिर जाते हैं।

    9 और उससे ज्यादा पूरी तबाही। कोई मैदान में खड़ा हो तो उसे धरती लहराते हुए दिखाई देगी। यदि समुद्र नजदीक हो तो सुनामी आने की पूरी आशंका रहती है।

    भूकंप से कैसे करें बचाव

    भूकंप आने के पहले

    भूकंप आने से पहले तैयारी कर लेने से आपके घर और कारोबार को होने वाली क्षति कम करने और आपको जीवित बचने में मदद मिलती है। एक घरेलू आपातकालीन योजना तैयार करें। अपने घर में अपने आपातकालीन बचाव वस्‍तुएं व्यवस्थित करें और इनका सही रखरखाव बनाए रखें, साथ ही एक साथ ले जाने योग्‍य गेटअवे किट (बचाव किट) भी तैयार करें। गिरने, ढंकने और अपने आपको थामने का अभ्यास करें। अपने घर में, स्‍कूल या कार्यस्थल में सुरक्षित जगहों को पहचानें। सुरक्षा और धनराशि के संदर्भ में अपनी घरेलू बीमा पॉलिसी की जांच करें। यह सुनिश्चित करने के लिए कि आपका घर अपनी नीवों पर सुरक्षित है, किसी योग्य विशेषज्ञ से सलाह लें।भारी फर्नीचर वस्तुओं को फर्श या दीवार से मजबूती से जोड़ कर रखें।

    भूकंप आने के दौरान

    यदि आप किसी भवन के अंदर हैं तो कुछ कदम से अधिक न चलें, खुद को गिराएं, ढंकें और थामे रखें। कम्‍पन थम जाने तक अंदर ही रहें और बाहर तभी निकलें जब आप यह निश्चित कर लें कि अब ऐसा करना सुरक्षित है। यदि आप किसी एलिवेटर पर हैं तो खुद को गिराएं, ढंकें और थामे रखें। कंपन थमने पर नजदीकी फर्श पर जाने की कोशिश करें यदि आप सुरक्षित रूप से ऐसा कर सकें। यदि आप बाहर हैं, तो इमारतों, पेड़ों, स्ट्रीट लाइट और बिजली की लाइन के पास न जाएं। यदि आप किसी बीच पर तट के निकट हैं तो खुद को गिराएं, ढंकें और थामे रखें और यदि सुनामी की आशंका हो तो तत्काल ऊंची जमीन की ओर जाएं। यदि आप वाहन चला रहे हैं, तो किसी खुली जगह तक जाएं, रुकें और वहीं ठहरें और अपनी सीटबेल्‍ट को तब तक कसे रखें जब तक कि कंपन बंद न हो जाए। एक बार कंपन थमने के बाद आगे बढ़ें और उन पुलों या ढलानों पर न जाएं जो क्षतिग्रस्त हो चुके हों। यदि आप किसी पर्वतीय क्षेत्र में या अस्थिर ढलानों या खड़ी चट्टानों पर हैं, तो मलबा गिरने या भूस्खलन होने के प्रति सचेत रहें। 

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