अमेरिका-रूस में बढ़ा तनाव, शीत युद्ध की आहट से चिंतित दुनिया
ऐसा तो हो नहीं सकता कि रूस पर प्रतिबंध लगे और वह चुपचाप सहन कर ले। अमेरिका ने रूस पर जो प्रतिबंध लगाए है,क्रियान्वयन होने पर तनाव और बढ़ेगा।
अवधेश कुमार
रूस-अमेरिका संबंध का शीतयुद्ध के दौरान की अवस्था में पहुंचना पूरी दुनिया के लिए चिंताजनक स्थिति है। एक ओर अमेरिकी कांग्रेस ने रूस पर और कड़े प्रतिबंधों वाला विधेयक पारित कर दिया तो दूसरी ओर रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका के 755 राजनयिकों को देश छोड़ने का आदेश जारी किया। स्थिति कितनी खतरनाक है इसका प्रमाण है दोनों देशों के नेताओं के बयान।रूसी प्रधानमंत्री दिमित्री मेदवेदेव ने इसे पूरी तरह से आर्थिक युद्ध तक करार दे दिया। स्वयं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्विटर पर लिखा कि रूस के साथ हमारे संबंध अब तक के सबसे निचले और खतरनाक स्तर पर हैं।
ट्रंप के पूरे बयान में अफसोस भी नजर आता है। उन्होंने लिखा कि आप कांग्रेस का शुक्रिया अदा कर सकते हैं। ये वही लोग हैं जो हमें हेल्थ केयर नहीं दे सकते। वास्तव में ट्रंप नहीं चाहते थे कि अमेरिका रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए। लेकिन जब वहां की कांग्रेस (संसद) के ऊपरी सदन सीनेट ने भी अंतत: दो के मुकाबले 98 मतों से रूस के खिलाफ नए और पहले की तुलना में कड़े प्रतिबंधों वाला विधेयक पारित कर दिया तो फिर उन पर दबाव आ गया। न चाहते हुए भी उन्होंने उस पर दस्तखत कर दिए। उन्हें लगा कि दस्तखत न करने की प्रतिक्रिया उनके ज्यादा प्रतिकूल होगी। इस तरह अमेरिका की ओर से रूस पर नए सिरे से कड़े प्रतिबंध लागू हो गए हैं और रूस ने अमेरिका को इसके परिणाम भुगतने की चेतावनी दे दी है। तो होगा क्या? इसका उत्तर देने लिए समय की प्रतीक्षा करनी होगी।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रतिबंध वाले विधेयक पर हस्ताक्षर करने से पहले इसका विरोध किया था। वे नहीं चाहते थे कि अमेरिकी कांग्रेस ऐसा प्रतिबंधकारी विधेयक पारित करें। वे व्यक्तिगत तौर पर रूस के साथ संबंध बेहतर करने के हिमायती रहे हैं। जून में जर्मनी में आयोजित समूह 20 के सम्मेलन में ब्लादिमीर पुतिन एवं ट्रंप के बीच सार्वजनिक तौर पर काफी लंबी बातचीत हुई थी। कहा जाता है कि उस सार्वजनिक मुलाकात के अलावा भी उनकी एक मुलाकात हुई थी। उससे यह संकेत मिलने लगा था कि शायद दोनों देशों के संबंध ठीक हो जाएं। वैसे चुनाव अभियान के दौरान भी ट्रंप ने रूस के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की वकालत की थी। तनाव बढ़ाने की नीतियों को लेकर उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा की तीखी आलोचना भी की थी। लगता है उनके रवैये को देखते हुए ही अमेरिकी कांग्रेस ने अपना रुख ज्यादा कड़ा कर लिया।
सच कहा जाए तो अमेरिकी कांग्रेस ने ट्रंप को रूस के संदर्भ में पुरानी नीतियों को मानने को मजबूर कर दिया है। ट्रंप पहले से ही राष्ट्रपति चुनाव में रूस के उनके पक्ष में कथित हस्तक्षेप के आरोपों को लेकर आलोचना के शिकार हैं। सच कहा जाए तो अपने करीब सात महीनों के कार्यकाल में ट्रंप जिस एक बात को लेकर सबसे ज्यादा निशाने पर हैं, वह रूस के प्रति उनकी नीति ही है। ट्रंप के विरोधियों का कहना है कि रूस द्वारा चुनाव में की गई दखलंदाजी पर ट्रंप हमेशा मॉस्को का बचाव करते आए हैं। यदि इस समय वे कांग्रेस के विधेयक को वीटो करते तो उनके खिलाफ आलोचना और तेज होती। यह राजनीतिक रूप से भी उनके लिए नुकसानदायक हो सकता था।
अमेरिकी कांग्रेस ने रूस पर प्रतिबंध लगाने के दो कारण बताए हैं। इनमें पहला 2014 में रूस द्वारा क्रीमिया को यूक्रेन से अलग करना है तो दूसरा कारण 2016 के अमेरिकी चुनाव में मॉस्को द्वारा की गई कथित दखलंदाजी को बनाया गया है। इनमें पहले मामले में तो अमेरिका ने रूस पर प्रतिबंध लगाया ही हुआ था। इसके बाद पिछले साल दिसंबर में बराक ओबामा ने 35 रूसी राजनयिकों को अमेरिका छोड़कर जाने का आदेश दिया था। तो इस समय उसे और ज्यादा सख्त करने के पीछे क्या कारण हो सकता है? माना जा रहा है कि डेमोक्रेट अपनी उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन की पराजय में रूस की भूमिका देखते हैं। रूस पर अमेरिकी चुनाव में दखलंदाजी करने और डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार हिलरी क्लिंटन के ई-मेल्स व कंप्यूटर हैक कर उन्हें नुकसान पहुंचाने वाली जानकारियां लीक करने का आरोप लगा।
ऐसी कोई कार्रवाई एकपक्षीय तो नहीं हो सकती। साथ ही इसके कुछ न कुछ परिणाम भी आएंगे। अमेरिकी राजनयिकों को रूस से निकालने की घोषणा करते समय पुतिन ने जो कुछ कहा उससे उनके तेवर और रूस की सोच का पता चलता है। उन्होंने कहा कि वॉशिंगटन के गैरकानूनी फैसले के खिलाफ यह मॉस्को की प्रतिक्रिया है। पुतिन ने कहा कि अमेरिका ने बिना किसी उकसावे के हमारे खिलाफ नए प्रतिबंध लगाए हैं। इससे अमेरिका और रूस के संबंध और बिगड़ेंगे। हम पिछले काफी समय से इंतजार कर रहे थे कि शायद अमेरिका और रूस के बीच चीजें बेहतर होंगी। हमें उम्मीद थी कि हालात सुधरेंगे। लेकिन ऐसा लगता है कि अभी आने वाले दिनों में ऐसा कुछ नहीं होने वाला है। अब रूस के लिए यह दिखाने का समय आ गया है कि अगर हमारे साथ कुछ गलत किया जाएगा तो हम इसका जवाब दिए बिना नहीं रहेंगे।
ब्लादिमीर पुतिन के स्वभाव को देखते हुए रूस की प्रतिक्रिया को अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। यद्यपि सैन्य शक्ति के अलावा रूस अमेरिका से कई मायने में कमजोर है, लेकिन पुतिन दुनिया में यह संदेश देना चाहते हैं कि उनकी हैसियत दुनिया में अमेरिका के समकक्ष ही है। किंतु अगर वे ऐसी सोच नहीं रखते तो भी प्रतिबंधों के बाद उन्हें मुखर जवाबी कार्रवाई तो करनी ही थी। ऐसा तो हो नहीं सकता कि रूस पर प्रतिबंध लगे तथा वह चुपचाप सहन कर ले। अमेरिका ने जो प्रतिबंध लगाए हैं उसे क्रियान्वयन करने की दिशा में वह और आगे बढ़ेगा और उससे दोनों में तनाव भी बढ़ेंगे।
मसलन रूस की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार तेल तथा हथियारों की बिक्री है। अमेरिका इसे रोकने की कोशिश करेगा। यानी ज्यादा से ज्यादा देश उससे तेल आयात न करें, हथियार न खरीदें इसके लिए वह कदम उठाएगा। कितने देश उसकी बात मानेंगे यह देखना होगा। किंतु इसकी प्रतिक्रिया में रूस कुछ न कुछ तो करेगा ही। तो कुल मिलाकर अत्यंत ही खतरनाक स्थिति पैदा हो गई है। ऐसे समय में जब दुनिया के अनेक क्षेत्रों में आंतरिक संघर्ष हो रहे हैं या संघर्ष होने की स्थिति पैदा हो रही है, दुनिया की अर्थव्यवस्था को स्थिर और सामान्य बनाने की चुनौती सामने है तब उसमें अमेरिका और रूस का आपसी तनाव स्थिति को और जटिल बनाने वाला साबित होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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